Tuesday, 21 June 2011

आफिस-आफिस

हर  इंसान चहेता है, 
जो माल खिलाये |
हर वो  भैंस  दुलारी है, 
जो दूध पिलाये ||
साहब तो मगरूर है | दुनिया का दस्तूर है ||

 
मुर्गी है तो अंडा दे--
मुर्गा-बकरा कट जाये |
किन्तु नहीं कुछ पल्ले  तो-
हट जाये, बस हट जाये--
पद के मद में चूर है | दुनिया का दस्तूर है ||

अंधेर है,अंधेर है


4 comments:

  1. बात कही भरपूर है
    परफ़ैक्शन की दिल्ली
    अभी दूर है, अभी दूर है।

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत आभार |
    दर्शन पाकर धन्य हुआ ||

    ReplyDelete
  3. हम भ्रष्टों के ,भ्रष्ट हमारे ,
    क्या कर लेंगें राम दुलारे !

    ReplyDelete
  4. बहुत बहुत आभार |

    ReplyDelete