Monday, 27 June 2011

6- दोहे

                 "बिदेशी-बैंक"
घोंघे करके मर गए, जोंकों संग व्यापार |
खून चूस भेजा किये, सात समंदर पार ||

लील रहा तब से पड़ा, दुष्ट अघासुर कोष |
जोंकों को कोंसे उधर, या घोंघो का दोष || 

                  " वंशवाद"
कंगारू सी कर रही बावन हफ्ते मौज  |
बेटे को थैली धरे, लीड कराती फौज ||

बेटा  बैठा  गोद  में, चलेगा कैसे  वंश |
वंशवाद  की  देवकी, मारे समया-कंस || 

                "बड़ी-कम्पनी" 
केंचुआ दो टुकड़े हुआ, धरती धरे धकेल |
बढ़ी  उर्वरा  शक्ति से,   खूब  बटोरें  तेल ||  

रात  चौगुनी वृद्धि हो, धीरू-धीरज-धीर |
राज-काज के राज से, बाढ़े  बहुतै  वीर ||

7 comments:

  1. आप खोल रहे काव्य से कहाँ कहाँ की पोल
    अब तो लगे बज जायेगा भ्रष्टाचार का ढोल.

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  2. दोहा अच्छा बन पड़ा है |
    पहले मेरे दोहों में गड़बड़ हो रही थी,
    फिर नवीन जी का मार्ग-दर्शन मिला,
    अब ८०% ठीक हो रहे हैं |
    उन्होंने बताया की पहले एवं तीसरे चरण में १३-१३
    और दूसरे एवं चौथे में ११-११ मात्राएँ आनी चाहिए |

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  3. सटीक दोहे सुन्दर दोहे....

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  4. इन जोंको को अब केवल नमक खिलाओ उसी में रखो -सटीक दोहे -सुन्दर

    भ्रमर ५

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  5. bahut sundar likha hai
    hamare blog me bhi aaye

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  6. बहुत सुन्दर ... सटीक कटाक्ष है

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  7. perfect poetry
    thanks for visiting my blog

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