"बिदेशी-बैंक"
घोंघे करके मर गए, जोंकों संग व्यापार |
खून चूस भेजा किये, सात समंदर पार ||
लील रहा तब से पड़ा, दुष्ट अघासुर कोष |
जोंकों को कोंसे उधर, या घोंघो का दोष ||
" वंशवाद"
कंगारू सी कर रही बावन हफ्ते मौज |
बेटे को थैली धरे, लीड कराती फौज ||
बेटा बैठा गोद में, चलेगा कैसे वंश |
वंशवाद की देवकी, मारे समया-कंस ||
"बड़ी-कम्पनी"
केंचुआ दो टुकड़े हुआ, धरती धरे धकेल |
बढ़ी उर्वरा शक्ति से, खूब बटोरें तेल ||
रात चौगुनी वृद्धि हो, धीरू-धीरज-धीर |
रात चौगुनी वृद्धि हो, धीरू-धीरज-धीर |
राज-काज के राज से, बाढ़े बहुतै वीर ||
आप खोल रहे काव्य से कहाँ कहाँ की पोल
ReplyDeleteअब तो लगे बज जायेगा भ्रष्टाचार का ढोल.
दोहा अच्छा बन पड़ा है |
ReplyDeleteपहले मेरे दोहों में गड़बड़ हो रही थी,
फिर नवीन जी का मार्ग-दर्शन मिला,
अब ८०% ठीक हो रहे हैं |
उन्होंने बताया की पहले एवं तीसरे चरण में १३-१३
और दूसरे एवं चौथे में ११-११ मात्राएँ आनी चाहिए |
सटीक दोहे सुन्दर दोहे....
ReplyDeleteइन जोंको को अब केवल नमक खिलाओ उसी में रखो -सटीक दोहे -सुन्दर
ReplyDeleteभ्रमर ५
bahut sundar likha hai
ReplyDeletehamare blog me bhi aaye
बहुत सुन्दर ... सटीक कटाक्ष है
ReplyDeleteperfect poetry
ReplyDeletethanks for visiting my blog