कोठर में सोई गौरैया , मार झपट्टा बाज उठाये |
बिन प्रतिरोध सभी चूजों को , वो अपना आहार बनाए ||
पाण्डव के बच्चे सोये थे, अश्वस्थामा महाकुकर्मी |
गला रेत कर, बहुतै खुश हो, दुर्योधन को खबर सुनाये ||
उस भारत की दुखती घटना, नव-भारत फिर से दोहराए
राम की लीला से घबरा कर, आत्मघात हित कदम उठाये |
पागल सा भटकेगा शापित, जन्म से शोभित मणि छिनाये--
सदा खून माथे से बहता, अश्वस्थामा नजर चुराए ||
रविकार जी बहुत sateek likha hai .aabhar
ReplyDeleteसत्य बात की कवित्व से भरी सुन्दर अभिव्यक्त i.
ReplyDeletenice poem
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDeleteखास चिट्ठे .. आपके लिए ...
आप सभी का आभार .
ReplyDelete१० मिनट पहले ही बोध-गया से लौटा हूँ, पहले आपसब की नई पोस्ट का रसास्वादन कर लूँ फिर---
बहुत खूब!
ReplyDeleteबिम्बों के माध्यम से सारी व्यथा कह दी आपने!
उस भारत की दुखती घटना, नव-भारत फिर से दोहराए
ReplyDeleteराम की लीला से घबरा कर, आत्मघात हित कदम उठाये |
पागल सा भटकेगा शापित, जन्म से शोभित मणि छिनाये--
sahi likha hai aapne bimb kamalke hain
rachana
बहुत-बहुत आभार,
ReplyDeleteसटीक और संदर्भित व्यंग्य -रविकार जी ,कायल हो गए हमभी आपके ,बहुत साहित्यक शैली में बहुत असरदार वजनी बात कह दी आप ।
ReplyDeleteतुलसी के पत्ते सूखे हैं और कैक्टस आज हरें हैं ,
आई राम को भूख लगी है रावण के भण्डार भरे हैं .
वीरू भाई सादर नमन ||
ReplyDeleteआपका ब्लाग पर बारम्बार स्वागत है |
आपने बड़ी सुन्दर पंक्तियों को पढने का अवसर दिया ||
आभार ||
उस भारत की दुखती घटना ,नवभारत फिर से दोहराए
ReplyDeleteराम की लीला से घबरा कर आत्म- घात फिर कदम उठाए .
बहुत हृदय स्पर्शी प्रसंग दुर्घटना को मूर्त करता -
याद आ गईं दो पंक्तियाँ -
हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था ,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है .(दुष्यंत कुमार )।
बाज़ जाने जिस तरह हमसे/हमको ये समझाता रहा ,
क्यों परिंदों के दिलों से उसका डर जाता रहा (नसीम चसवाल ,मेरे पूर्व सहयोगी ,अब उस लोक में ).
श्रीमान जी !
ReplyDeleteलगता है यह जुगल बंदी
अब जरुर रंग लाएगी |
आपके द्वारा प्रेषित पंक्तियाँ
मेरी लेखनी की धार
शर्तिया पैनी कर पाएंगी ||
संजय भास्कर जी का
ReplyDeleteभी बहुत-बहुत आभार ||