(1)
दुश्मन ने घर आग लगाईं, सूखा हो या बाढ़ बहाई |
करते साहब खुब पहुनाई , राहत आई राहत आई ||
भूलते प्रियतम हमारे, प्यार पर प्रतिबन्ध प्यारे |
बन्द खिड़की-धूप-तारे, आत्मा हा-हा पुकारे |
छोड़ के आगार-कारे, तोड़ के सम्बन्ध सारे--
छोड़ के आगार-कारे, तोड़ के सम्बन्ध सारे--
मिल मुझे मेरे सहारे, आ गई दर पे तुम्हारे |
तुम रहे क्यूँ न कुंआरे, क्यूँ मुझे बे-मौत मारे ||
तुम रहे क्यूँ न कुंआरे, क्यूँ मुझे बे-मौत मारे ||
(2)
दुश्मन ने घर आग लगाईं, सूखा हो या बाढ़ बहाई |
रेल लड़ी या बस टकराई, जब भी कोई विपदा आई |
राजकोष करता भरपाई, घायल-मन की व्यथा बढाई|
तड़प-तड़प मरती तरुणाई, करी दवाई, कड़ी - दबाई |
करते साहब खुब पहुनाई , राहत आई राहत आई ||
दोनों षटपदी छंद बहुत बढ़िया हैं!
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ReplyDeletemereblog ka pata http://chhotawriters.blogspot.com
ReplyDeletebahut badhiya hai aapka blog yaha bhi aaye yaha bhi aaye
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteमहोदय|
रविकर जी,
ReplyDeleteमैं आपकी कवित्व प्रतिभा पर मोहित हो गया हूँ. आपने आशुत्व की झलक पाता हूँ
जितनी सरलता से आप भावों को शब्दों में पिरो लेते हो.... लगता है कि आपके पास अकूत संपदा है शब्दों की...
मेरे मस्तिष्क का गुप्तचर विभाग पता लगाना चाहता है कि आखिर कितनी काली-दौलत (काले-अक्षर) है आपके पास.
मुझे आपकी कविताओं में अपनी छंद-चर्चा के पाठों के लिये सर्वोत्तम उदाहरण नज़र आने लगे हैं.
again :
ReplyDeleteआपमें आशुत्व की झलक पाता हूँ ...
जबरदस्ती कुछ शब्द ठूँसे हैं | कठिन विधा है --
ReplyDeleteहै अगर दम |
करिए इनमे हुई गलतियाँ ख़त्म ||
आभार माननीय प्रतुल जी ||
आपके स्नेह से
अभिमादित हुआ जा रहा हूँ |
माल के पीछे ताल देकर के भाग रहा
मिथ्या जगत तब मनुवा भरमाया है
फ़ोकट में ठाठ की बात रहे जोह तुम
काल ने भी कोठरी में काम करवाया है
मिलन की बेला में अब करो मत खेला यूँ
ले लो आगोश में तो ये तेरा हमसाया है
कार और प्यार की दूल्हा जी ख्वाहिश जब
घुंघटे की तिजोरी में बंद सरमाया है
वाह ...बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeleteaabhaar NUTAN JEE
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