21 वीं शती
पति परमेश्वर की तरह, छवि आदर्श बनाय |कन्धे पर बन्दूक धर, पीछे खड़ीं लुकाय ||
त्यागी और महान हैं, बिलकुल न बेईमान |
पति की सम्पत्ति पुत्र का, देती नेक बयान ||
प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
लेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||
बैंकों में खाता खुला, खता कहाँ से मोर |
बड़े मियां छोटे मियां, जानें रिश्वत-खोर ||
स्वामी, दत्ता अमल दा, जेठ मलानी लोग |
के जी बी, एक्सप्रेस भी, करें भयंकर ढोंग ||
गर इतना धन है जमा, जाऊं इटली भाग |
पहचाने दुर्भाग्य निज, लगा रहे जो दाग ||
लिश्तेंस्ती से बैंक का, हमने सुना न नाम |
कौन-कौन से केश का, पैसा जमा तमाम ||
हत्यारों पर भी रहम, बच्चों में पुरजोर |
मानहानि के केश में, रही रूचि न मोर ||
कश्मीर (1947)
चाचा चालें चल चुके, चौपट चम्प-गुलाब |
शालीमार-निशात सब, धूल-धूसरित ख़्वाब ||
चारों दिशा उदास हैं, फैला है आतंक |
जिम्मेदारी कौन ले, मारे शासन डंक ||
भ्रष्टाचार
भूमंडलीय फिनोमिना (1983 )
माता के व्यक्तव्य से, बाढ़ा हर दिन लोभ |
भ्रष्टाचारी देव को, चढ़ा रहे नित भोग ||
पानी ढोने का करे, जो बन्दा व्यापार |
मुई प्यास कैसे भला, सकती उसको मार ||
काजल की हो कोठरी, कालिख से बच जाय |
हो कोई अपवाद गर , तो उपाय बतलाय ||
मिस्टर क्लीन (1989)
माता के उपदेश को , भूले मिस्टर क्लीन,
राज हमारा बनेगा , भ्रष्टाचार विहीन |
भ्रष्टाचार विहीन, नहीं मैं माँ का बेटा,
भ्रष्टाचार विहीन, नहीं मैं माँ का बेटा,
सारे दागी लोग , अगरचे नहीं लपेटा |
पर"रविकर"आदर्श, बड़ा वो चले दिखाने |
दागै लागे तोप, उन्हीं पर कई सयाने ||
प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
ReplyDeleteलेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||
सटीक .
mr.clean
ReplyDeletebeautiful poems.
स्वामी, दत्ता अमल दा, जेठ मलानी लोग |
के जी बी, एक्सप्रेस भी, करें भयंकर ढोंग
बहुत-बहुत स्वागत महोदया आपका |
ReplyDeleteबहुत-बहुत स्वागत महोदय आपका |
सही कटाक्ष किये हैं रविकर जी!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और ज़बरदस्त पोस्ट! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
स्वागत महोदया / महोदय आपका |
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteमहोदया|
टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteमहोदया|