भूमि-बन्दन कर, धरा पर-- पैर धरता है |
हस्त-दर्शन कर, निबटकर--सैर करता है ||
फिर नहाके पाठकर, बासी चपाती से
न्यूज-ताज़ी को निगलते, पेट भरता है ||
जद्दोजहद से बेखबर जब किस्मत सोती है
बेहतरी की कोशिशें, नाकाम होती है ||
खर्च घर का चल रहा सम्पूर्ण, वेतन से
कुछ कमाई और करता रोज टयूशन से ||
खर्च मुश्किल से ही पूरे, पूरे मास का
दाग रक्खे दूर लेकिन अपने दामन से ||
कड़ी मेहनत 'रविकर' सुबहो-शाम होती है
बेहतरी की कोशिशें, नाकाम होती है ||
bahut achcha likha hai
ReplyDeleteकड़ी मेहनत 'रविकर' सुबहो-शाम होती है
ReplyDeleteबेहतरी की कोशिशें, नाकाम होती है ||
satya kaha hai
स्पष्ट चित्र खींचा है।
ReplyDeleteये पैसों की भूख जो कभी ना खत्म हो,
ReplyDeletethanks,
ReplyDeleteमुश्किल है प्राइवेट शिक्षक का jivan.
मास्टर जी के हालात खराब हैं।
ReplyDeleteThanks God
ReplyDeleteगवर्नमेंट जॉब है . और बेटा MNNIT, इल्लाहाबाद से B Tech कर आबुधाबी में है, बेटी 16 जून को NIT दुर्गापुर से B Tech करके TCSL ज्वाइन कर रही है.
पर सचमुच------
@ मास्टर जी के हालात खराब हैं।
प्राइवेट शिक्षक का सच्चा दर्द,बहुत बढ़िया, लाजवाब!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
vivek jee
ReplyDeletethanks