सात अरब लोगों का बोझ, अलग दूसरी दुनिया खोज |
हुआ यहाँ का चक्का जाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 1 !
क्राइस्ट-काल का जोड़ा अबतक, पूरा चालीस लाख हो चुका |
पेड़ लगा पाया बस दो ठो, लेकिन चालीस लाख खो चुका |
भीषण युद्ध, क्रुद्ध रोगाणु , सत्यानाशी बीज बो चुका |
सूखा - बाढ़ अकाल सुनामी, जीवन बारम्बार रो चुका||
सूखा - बाढ़ अकाल सुनामी, जीवन बारम्बार रो चुका||
सिमटे वन घटते संसाधन, अटक गया राशन उत्पादन |
बढ़ते रहते हर दिन दाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 2 !
जीवन शैली में परिवर्तन, चकाचौंध, भौतिकता भोग |
खाना - पीना मौज मनाना, काम- क्रोध- मद- लोभी लोग |
वर्तमान पर नहीं नियंत्रण, कर अतीत पर नव - प्रयोग |
जीव-जंतु का दुष्कर जीना, लगा रही धरती अभियोग||
बढे मरुस्थल बाढ़े ताप, धरती सहती मानव पाप |
अब भूकंपन आठों-याम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 3 !
स्वार्थ में अँधा मानव करता, सागर के अन्दर विस्फोट |
करे सुनामी पैदा खुद से, रहा मौत को हरदम पोट |
विकिरण का खतरा बढ़ जाये, पहुंचा रहा चोट पे चोट |
जियो और जीने दो भूला, चला छुपाता अपनी खोट |
हिमनद मिटे घटेगा पानी, कही बवंडर की मनमान |
करे सुनामी काम-तमाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 4 !
बढ़ा रहे धरती पर बोझ, नदियों पर ये बाँध विशाल |
गर्भ धरा का घायल करके, चला बजाता अपने गाल |
एवरेस्ट पर पिकनिक करके, छोड़े करकट करे बवाल |
मानव पर है सनक सवार, ऊँचे टावर ऊँचे मॉल |
जीव - जंतु के कई प्रकार, रहा प्रदूषण उनको मार |
दोहन शोषण हुआ हराम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 5 !
कई जातियाँ ख़त्म हो चुकी, कई ख़त्म होने वाली |
मानव अपना शत्रु बन चुका, काट रहा खुद की डाली |
दिन-प्रतिदिन संसाधन चूसे, जिन से धरा उसे पाली |
भौतिक-सुख दुष्कर्म स्वार्थ का, मानव अब गन्दी गाली |
जहर कीटनाशक का फैले, नाले-नदी-शिखर-तट मैले |
सूक्ष्म तरंगो का कोहराम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 6 !
गंगा का पानी जुड़ता था, प्रीतम की जिन्दगानी से |
मारक गैसों की भरमार, करते बम क्षण में संहार |
गंगा का पानी जुड़ता था, प्रीतम की जिन्दगानी से |
हर बाला देवी की प्रतिमा जुडती मातु भवानी से |
दुष्टों ने मुहँ मोड़ लिया पर गौरव-मयी कहानी से |
जहर बुझी जिभ्या नित उगले, उल्टा-पुल्टा वाणी से |
मारक गैसों की भरमार, करते बम क्षण में संहार |
सूरज सा जहरीला घाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 7 !
आरुषि - प्यारी, कांड निठारी, ममता बच्चे को मारे |
कितने सारे बुजुर्ग हमारे, सिर पटकें अपने द्वारे |
आरुषि - प्यारी, कांड निठारी, ममता बच्चे को मारे |
कितने सारे बुजुर्ग हमारे, सिर पटकें अपने द्वारे |
खून - खराबा, मौत - स्यापा, मानवता हरदम हारे |
काम-बिगाड़े किन्तु दहाढ़े, लगा जोर जमकर नारे |
मानव - अंगों का व्यापार, सत्संगो का सारोकार|
बिगढ़ै पावन तीरथ धाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 8 !
जीवन शैली में परिवर्तन, चकाचौंध, भौतिकता भोग |
ReplyDeleteखाना - पीना मौज मनाना, काम- क्रोध- मद- लोभी लोग |
वर्तमान पर नहीं नियंत्रण, कर अतीत पर नव - प्रयोग |
जीव-जंतु का दुष्कर जीना, लगा रही धरती अभियोग||
बढे मरुस्थल बाढ़े ताप, धरती सहती मानव पाप |
अब भूकंपन आठों-याम, बचा लो धरती, मेरे राम !
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बहुत सुन्दर हर छंद में सन्देश सार्थक निहित है!
बढ़ा रहे धरती पर बोझ, नदियों पर ये बाँध विशाल |
ReplyDeleteगर्भ धरा का घायल करके, चला बजाता अपने गाल |
एवरेस्ट पर पिकनिक करके, छोड़े करकट करे बवाल |
मानव पर है सनक सवार, ऊँचे टावर ऊँचे मॉल |
सारी पंक्ति आपने लिखी एक से बढ़कर एक कमाल,
वाहवाही जो हम न कर सकें तो फिर होगें बहुत सवाल .
वाह वाह बहुत सटीक
ha! ha! ha!
ReplyDeleteवाह वाह बहुत सटीक
आनंदित हुआ ||
बहुत बहुत -आभार ||
गंगा का पानी जुड़ता था, प्रीतम की जिन्दगानी से |
ReplyDeleteहर बाला देवी की प्रतिमा जुडती मातु भवानी से |
दुष्टों ने मुहँ मोड़ लिया पर गौरव-मयी कहानी से |
जहर बुझी जिभ्या नित उगले, उल्टा-पुल्टा वाणी से |
प्रिय रविकर जी बड़ी मेहनत भरा कार्य सुन्दर सार्थक सटीक रचना
इसीलिए तो भेजा तुमको दुनिया की रखवाली में
देखो रौंद न कोई जाए सुन्दर फूल व् डाली को !!
राम के ऊपर क्या क्या छोड़े
कहाँ कहाँ वे भटकेंगे
पाखंडी जिद्दी मूरख हैं
खुद का नाश किये जाते
कितना क्या समझा पाओगे
अपना सिर खुद पटकेंगे !!
शुक्ल भ्रमर ५
बहुत सुन्दर ||
ReplyDeleteआनंदित हुआ ||
बहुत बहुत -आभार ||
पहली बार आपके ब्लाग पर आया आपकी सारी रचानायें पढ़ी बहुत ही अच्छा लगा आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें
ReplyDeleteबचा लो धरती ,मेरे राम!-कविता नहीं अंतस का विस्फोट है यह .इस खूबसूरत कायनात प्रकृति पर्यावरण के टूटने छीजने की सारी पीड़ा को बिग बैंग सा महा -विस्फोटित कर दिया इसने .कितनी ऊर्जा है आपमें .ब्लेक होल न समेट पाए .
ReplyDeleteजब विद्वानों की अनुकूल टिप्पणियां मिलती हैं तो दिल बाग-बाग हो जाता है |
ReplyDeleteप्रतिकूल टिप्पणियों एवं आलोचना के लिए भी मन तैयार रहता है ताकि स्वयम को बद-दिमागी और अंट-शंट से बचाए रखा जा सके |
बहुत-बहुत आभार |
वाह .. बहुत ही सुन्दर भावमय करती शब्द रचना ।
ReplyDeleteजी !
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार |
poore kalyug kee padtaal kar daali aapne...acchi rachna
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार |
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