Monday 9 September 2013

रचना उसे नकार, बघारे हर पल शेखी -


क्षिति को शिला जीत उकसाए । कामातुर अँधा हो जाए ।

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव"अंक - 35

एक भाव-तीन विधा
कुण्डलियाँ 

क्षिति जल पावक नभ हवा, घटिया कच्चा माल ।
निर्माना पारम्परिक, दिया शोध बिन ढाल ।

दिया शोध बिन ढाल,  प्रदूषित-जल, छल-"काया" ।
रविकर पावक बाल, दंभ ने गाल बजाया ।

हवा होय अनुरक्ति, गगन पर थूके हर पल ।
निर्माता आलस्य, भस्म बन जाए "क्षिति" जल ॥

सवैया छंद

निरमान करे जल से क्षिति सान समीर अकाश सुखावत है |
पर पुष्ट नहीं हुइ पावत जू तब पावक पिंड पकावत है |
जब काम बढे प्रभु नाम बढे, तब ठेकप काम करावत है |
परदूषित पंचक तत्व मिले,  बन मानव दानव आवत है ||

चौपाई

क्षिति जल पावक गगन समीरा
घटिया दूषित जमा जखीरा ।
छली बली है खनन माफिया ।
आम हुई है रपट खूफिया ॥

निर्माता अब देता ठेके ।
बना बना के जस तस फेंके ॥
आलोचना सदैव अखरती ।
निंदा आग बबूला करती ॥

क्षिति को शिला जीत उकसाए ।
कामातुर अँधा हो जाए ।
आसमान पर थूका करता ।
मानव बरबस पानी भरता ।

नीति-नियम का उल्लंघन कर ।
 करता जलसे मानव अक्सर ॥
हवा हवाई किले बनाता ।
किन्तु नहीं चिंतित निर्माता ॥


मिटता क्यूँ अस्तित्व, पड़े नहिं रविकर पल्ले -

पल्ले चौखट चौकियाँ, पशोपेश में देश |
जला अन्तत: पूर्णत:  वृक्ष हुआ नि:शेष |

वृक्ष हुआ नि:शेष, बड़े फल-फूल खिलाये |
दे आराम विशेष, जीव जो नीचे आये |

खेलकूद त्यौहार, शादियाँ इसके तल्ले |
मिटता क्यूँ अस्तित्व, पड़े नहिं रविकर पल्ले || 

रचना उसे नकार, बघारे हर पल शेखी-

निर्माता के प्रति दिखे, अब निर्मम व्यवहार |
हृष्ट-पुष्ट होकर बढ़े, रचना उसे नकार |

रचना उसे नकार, बघारे हर पल शेखी |
पाय ममत्व-दुलार, करे उसकी अनदेखी |

मद में मानव चूर, आपदा पर हकलाता |
हो जाता मजबूर, याद आये निर्माता || 

हम बेटी के बाप, हमेशा रहते चिंतित-

चिंतित मानस पटल है, विचलित होती बुद्धि |
प्रतिदिन पशुता बलवती, दुष्कर्मों में वृद्धि |

दुष्कर्मों में वृद्धि, कहाँ दुर्गा है सोई |
क्यूँ नहिं होती क्रुद्ध, जगाये उनको कोई |

कर दे माँ उपकार, दया कर दे माँ समुचित |
हम बेटी के बाप,  हमेशा रहते चिंतित || 



तुस्टीकरण का यह खेल कहाँ तक ले जाएगा !!

पूरण खण्डेलवाल 
इनके तुष्टिकरण से, पक्की क्रिस्टी जीत |
उनके रुष्टीकरण से, फिर क्या डरना मीत |
फिर क्या डरना मीत, रीत यह बहुत पुरानी |
करता रहा अतीत, यही कर नाना नानी |
किये आज तक राज, किन्तु अब माथा ठनके |
खतरे में अस्तित्व, राज में रविकर इनके || 



सेकुलरों का राजधर्म

कमल कुमार सिंह (नारद ) 




चोरों के सरदार पर, लगा बड़ा आरोप । 
आरोपी खुद हट रहा, क्वारा बबलू थोप  । 

क्वारा बबलू थोप, कोप क्यूँकर वह झेले । 
कब तक आखिर बैठ, गोद में माँ की खेले । 

देता गेंद उछाल, कालिया किंवा लोके । 
अब तो मोहन मस्त,  साथ बैठा चोरों के । 

3 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,
    गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !
    RECENT POST : समझ में आया बापू .

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  2. बहुत सुंदर,
    गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !

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  3. नहा खून से हर हर गंगे |
    बहा खून जाते हर दंगे |
    अपनी अपनी गाय लफंगे
    अपनों पर आघात करें |
    बोलो किसकी बात करें

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