Tuesday 3 September 2013

बने कान्त एकांत में, होय क्वारपन क्लांत-



गीत.......मेरी अनुभूतियाँ

मन की खिड़की पर जमी, दर्द-गर्द की पर्त |
अभिलाषाएं थोपती, अजब गजब सी शर्त || 


पौण्ड्रक(१)कपट-तापस

Devdutta Prasoon 

लाई कन्या साथ में, पुत्र कहाँ दी छोड़ |
कन्या को भी छोडती, पकडे गुरु के गोड़ |

पकडे गुरु के गोड़, गुरू घंटाल हो गया |
रखा कमाय करोड़, अनैतिक बीज बो गया-

हल्ला गुल्ला व्यर्थ, व्यर्थ करती उबकाई |
मातु पिता निश्चिन्त, गुरू कर गया खलाई ||

"दोहे-खुली ढोल की पोल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 







नाजुक अंगों को छुवे, करे वासना शान्त |
बने कान्त एकांत में, होय क्वारपन क्लांत |

होय क्वारपन क्लांत, बुद्धि से संत अपाहिज |
बढे दरिन्दे घोर, हुआ अब भारत आजिज |

बड़ी सजा की मांग, सुरक्षा से है तालुक |
मात पिता जा जाग, परिस्थिति बेहद नाजुक |


मीडिया का अतिरेकी रवैया अपनाना क्या सही है !

पूरण खण्डेलवाल 





रेकी रेका रोचता, इसे पसन्द बवाल |
फैलाए उत्तेजना, और कमाए माल |
और कमाए माल, खबर खरभर कर देता |
करता कभी कमाल, कदाचित पैसे लेता |
दिखा रहा प्रत्यक्ष, करे जैसे यह नेकी |
छुपा जाय पर सत्य, मीडिया यह अतिरेकी ||


रेका=संदेह / शंका  



छक्का पंजा भूलता, जाएँ छक्के छूट |
छंद-मन्त्र छलछंद जब, कूट-कर्म से लूट |

कूट-कर्म से लूट, दुष्ट का फूटे भंडा |
पाये डंडा दण्ड, बदन हो जाये कंडा |

रविकर घटे प्रताप, कीर्ति को लगता धक्का |
गुरु हो अर्जुन सरिस, अन्यथा बन जा छक्का || 




सतीश सक्सेना  मेरे गीत !  






चंचा हिलता खेत में, रहे चिरैया दूर |
बिछे जाल में पर फँसे, कुछ तो गलत जरूर |

कुछ तो गलत जरूर, बताओ क्या मज़बूरी |
पग पग पलते क्रूर, नहीं क्यूँ उनको घूरी |

कर दे काया सुर्ख, शिकारी चला तमंचा-
दल का मुखिया मूर्ख, दुष्ट रविकर नहिं चंचा ||
चंचा=खेत में लगा पुतला

3 comments:

  1. आपकी त्वरित टिप्पणियाँ रचना को सार्थकता प्रदान करती हैं ।

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  2. हल्ला गुल्ला व्यर्थ, व्यर्थ करती उबकाई |
    मातु पिता निश्चिन्त, गुरू कर गया खलाई ||

    बहुत बारीक व्यंग्य विडंबन है .

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