Saturday, 18 January 2014

रविकर घोंचू-मूर्ख, धरे पानी इक चुल्लू-


हमाहमी हरहा हिये, लिये जाति-च्युत होय |
ऐसी अवसरवादिता, देती साख डुबोय |

देती साख डुबोय, प्रबंधन कौशल भारी |
बेंचे धर्म-इमान, ख़रीदे कुल मुख्तारी |

रविकर जाने मर्म, आप की जाने महिमा |
आम आदमी तंग, वक्त भी सहमा सहमा || 


अब आप के कर्णधारों को सोचना चाहिए

pramod joshi 






बानी है धमकी भरी, खफा खफा सरकार |
सुनी तनिक खोटी-खरी, धरने को तैयार |

धरने को तैयार, हमेशा टाँग अड़ाएं |
करते रहे प्रचार, किन्तु अब मुँह की खाएं |

वाह केजरीवाल, नहीं है तेरी सानी |
नहीं गले अब दाल, चलो दे दो कुर्बानी ||





सदियों से चम्पी करे, पंजे नोचें बाल |
कंघी बेंचे वह धड़ा, गंजे करें सवाल |

गंजे करें सवाल, नया हेयर कट पाया |
हर दिन अति उम्मीद, दीप नित नया जलाया |

यह गंजों का देश, राज सत्ता को कोसे |
दीन हीन के क्लेश, रहे यूँ ही सदियों से || 

कब कहाँ कैसे बदलता है आदमीtarun_kt 
Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.." 






अधजल गगरी छलकती, जन-गण मन छल जाय |
बजे घना थोथा चना, पाप घड़ा मुस्काय |

पाप घड़ा मुस्काय, खाय अभिलाषा सारी |
शुरू वही व्यवसाय, वही आई बीमारी |

अंधे हाथ बटेर, करे चौपट यह नगरी |
तू डाल डाल मैं पात, आप की अधजल गगरी || 

सतीश सक्सेना 
मेरे गीत ! 








उल्लू के पट्ठे लड़ें, अब से युद्ध तमाम |
ताम-झाम हर-मंच का, देता यह पैगाम |

देता यह पैगाम, चमचई आदर पाये |
बनते बिगड़े काम, चरण-चुम्बन गर आये |

रविकर घोंचू-मूर्ख, धरे पानी इक चुल्लू |
डूबे अवसर पाय, बड़ा ही अहमक उल्लू ||

सड़क छाप हैं आप के, रविकर क्रिया-कलाप |
मुतवा देते सड़क पर, क्यूँ मंत्री जी आप |


क्यूँ मंत्री जी आप, कहाँ थे महिला दस्ता |
घुसते रात-विरात, रोक महिला का रस्ता |


बहुत हुआ उत्पात, रात दिन करते हड़बड़ |
करिये तनिक सुधार, अन्यथा जाओगे सड़ || 

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-34


दोहा
मेटे दारिद दारिका, भेंटे दुर्गा मातु ।
सुता पुत्र पति पालती, रख अक्षुण्ण अहिवातु ॥

मुखड़े पर जो तेज है, रखिये सदा सहेज ।
षोडशभुजा विराजिये, कंकड़ की शुभ-सेज ।

पहन काँच की चूड़ियाँ, बेंट काठ की थाम ।
लोहा लेने चल पड़ी, शस्त्र चला अविराम ॥

छुई-मुई अबला नहीं, नहीं निराला-कोटि ।
कोटि कोटि कर खेलते, बना शैल की गोटि ॥

हाव-भाव संतुष्टि के, ईंटा पत्थर खाय ।
कुल्ला कर आराम से, पानी पिए अघाय ।

 रोला

पानी पिए अघाय, परिश्रम हाड़तोड़ कर ।
गैंता तसला हाथ, प्रभावित करते रविकर ।

थक कर होय निढाल, ढाल के संरचनाएं |
पाले घर-संसार, आज माँयें जग माँयें ||

3 comments: