Friday, 17 January 2014

यह गंजों का देश, राज सत्ता को कोसे-


"आप" हुए मदहोश 


मनोरमा 
श्यामल सुमन

बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा-

लासा मंजर में लगा, आह आम अरमान |
मौसम दे देता दगा, है बसन्त हैरान |

है बसन्त हैरान, कोयलें रोज लुटी हैं |
गिरगिटान मुस्कान, लोमड़ी बड़ी घुटी है |

गीदड़ की बारात, दिखाता सिंह तमाशा |
बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा ||


आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया-

भन्नाता बिन्नी दिखा, सुस्ताता अरविन्द |
उकसाता योगेन्द जब, उकताता यह हिन्द |

उकताता यह हिन्द, मुफ्तखोरों की दुनिया |
आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया |

दीन-हीन सरकार, विपक्षी है चौकन्ना |
टपकाए नित लार, जाय रविकर जी भन्ना ||
रट्टू तोते कोष हित, कोस रहे उल्लूक |
काँव काँव कौवे करें, जान लाश में फूँक |
जान लाश में फूँक, बड़े अय्यार जमाते |
बार बार हो चूक, लात फिर फिर खा जाते |
जोकर की औलाद, किराए का यह टट्टू |
करे चमचई रोज,  बेतुकी बातें रट्टू ||

हिन्दी संस्थानों पर कब्ज़ा,कर लेंगे उल्लू के पट्ठे - सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना 
मेरे गीत ! 








उल्लू के पट्ठे लड़ें, अब से युद्ध तमाम |
ताम-झाम हर-मंच का, देता यह पैगाम |

देता यह पैगाम, चमचई आदर पाये |
बनते बिगड़े काम, चरण-चुम्बन गर आये |

रविकर घोंचू-मूर्ख, धरे पानी इक चुल्लू |
डूबे अवसर पाय, बड़ा ही अहमक उल्लू ||

भावी रहे सुधार, शहर ला दादा-दादी-

खिले खिले बच्चे मिले, रहे खिलखिला रोज । 
बुझे-बुझे माँ-बाप पर, रहे मदर'सा खोज । 

रहे मदरसा खोज, घूस की दुनिया आदी। 
भावी रहे सुधार, शहर ला दादा-दादी। 

पैतृक घर दे बेंच, आय उपयुक्त राशि ले ।  
करे सुरक्षित सीट, आज यूँ मिलें दाखिले ॥ 
सड़क छाप हैं आप के, रविकर क्रिया-कलाप |
मुतवा देते सड़क पर, क्यूँ मंत्री जी आप |
क्यूँ मंत्री जी आप, कहाँ थे महिला दस्ता |
घुसते रात-विरात, रोक महिला का रस्ता |
बहुत हुआ उत्पात, रात दिन करते हड़बड़ |
करिये तनिक सुधार, अन्यथा जाओगे सड़ || 

कब कहाँ कैसे बदलता है आदमीtarun_kt 
Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.." 






अधजल गगरी छलकती, जन-गण मन छल जाय |
बजे घना थोथा चना, पाप घड़ा मुस्काय |

पाप घड़ा मुस्काय, खाय अभिलाषा सारी |
शुरू वही व्यवसाय, वही आई बीमारी |

अंधे हाथ बटेर, करे चौपट यह नगरी |
तू डाल डाल मैं पात, आप की अधजल गगरी ||

पाया गाँधी सदन से, जो लर्निंग लायसेन्स

पाया गाँधी सदन से, जो लर्निंग लायसेन्स |
बैठा ड्राइविंग सीट पर, दिखी सवारी टेंस |

दिखी सवारी टेंस, लेंस आँखों पर मोटा |
हरिश्चंद का पूत, किन्तु अनुभव का टोटा |

यमुना ब्रिज पर जाम, देख बन्दा घबराया |
देता वहीँ डुबाय, सुबह अखबार छपाया ||


सदियों से चम्पी करे, पंजे नोचें बाल-





सदियों से चम्पी करे, पंजे नोचें बाल |
कंघी बेंचे वह धड़ा, गंजे करें सवाल |

गंजे करें सवाल, नया हेयर कट पाया |
हर दिन अति उम्मीद, दीप नित नया जलाया |

यह गंजों का देश, राज सत्ता को कोसे |
दीन हीन के क्लेश, रहे यूँ ही सदियों से ||
  

सपने नयनों में पले, वाणी में अरदास-

सपने नयनों में पले, वाणी में अरदास |
बुद्धि बनाये योजना, करे कर्म तनु ख़ास |

करे कर्म तनु ख़ास, पूर्ण विश्वास भरा हो |
शत-प्रतिशत उद्योग, भाग्य को तनिक सराहो |

पाय सफलता व्यक्ति, लक्ष्य पा जाये अपने |
रविकर इच्छा-शक्ति, पूर्ण कर देती सपने ||

5 comments:

  1. पाया गाँधी सदन से, जो लर्निंग लायसेन्स |
    बैठा ड्राइविंग सीट पर, दिखी सवारी टेंस |
    बहुत खूब..
    सुन्दर सूत्र भी

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय , धन्यवाद
    || जय श्री हरिः ||

    ReplyDelete
  3. अनूठे लिंक देने का अनूठा अंदाज़ , आभार कविवर !

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    साझा करने के लिए आभार।

    ReplyDelete