"आप" मुझे दिल्ली ही रहने दें .. प्लीज !
महेन्द्र श्रीवास्तव
औचक होवे जांच जब, मुखड़े पर हो रोष ।
करिये अभिनय आप फिर, गर कैमरा सदोष ।
गर कैमरा सदोष, करे राखी हंगामा ।
सिसोदिया की कार, कहीं भूषण हे रामा ।
अजब गजब विश्वास, किन्तु दिल्ली है चक चक ।
ख़तम हुई नहिं आस, निरीक्षण होते औचक ॥
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उस दिन तो प्रभू हमारे साथ थे
गगन शर्मा, कुछ अलग सा
अपने भक्तों का रखें, प्रभु जी नियमित ध्यान ।
हम ही अक्सर भूलते, वशीभूत अज्ञान ।
वशीभूत अज्ञान , बने प्रभु आज परीक्षक ।
साहस श्रद्धा धैर्य, हुवे रविकर संरक्षक ।
ईश्वर पर विश्वास, पूर्ण कर देता सपने ।
नमो नमो ले जाप, कष्ट मिट जाएँ अपने ।।
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" आम आदमी पार्टी " पर मीडिया की मेहरबानी !!पूरण खण्डेलवाल शंखनाद बड़ा बिकाऊ माल है, पड़ा मीडिया टूट |रहा बजाता गाल है, नोट वोट ले लूट |नोट वोट ले लूट, गए फिर बूट लादने |बकवादी को छूट, झूठ की फसल काटने |नए वेश में वाम, किन्तु है नहीं टिकाऊ |पोल खोलते काम, आप है बड़ा बिकाऊ || |
बड़ी बड़ी बीमारियाँ, प्रावधान उपयुक्त |
फिर भी बढ़ती जा रहीं, देह नहीं हो मुक्त |
देह नहीं हो मुक्त, सोच भी लंगड़ी-लूली |
थमे नहीं ना रेप, चढ़ाये कितने शूली |
स्टिंग ऑप्रेशन देख, सजा दे देता तगड़ी |
घूसखोर सस्पेंड, ख़त्म पर कहाँ गड़बड़ी ||
फिर भी बढ़ती जा रहीं, देह नहीं हो मुक्त |
देह नहीं हो मुक्त, सोच भी लंगड़ी-लूली |
थमे नहीं ना रेप, चढ़ाये कितने शूली |
स्टिंग ऑप्रेशन देख, सजा दे देता तगड़ी |
घूसखोर सस्पेंड, ख़त्म पर कहाँ गड़बड़ी ||
झगड़ा झंझट झल झटक, दो दूजे को सौंप |
जनमत संग्रह दे करा, यही आप की *चौप |
यही आप की चौप, बोलता नाप तौल कर |
जहाँ जहाँ उत्पात, वहाँ की खातिर अवसर |
टुकड़े टुकड़े देश, आप का भूषण तगड़ा |
है वकील यह तेज, तुरत निपटाए झगड़ा ||
*इच्छा
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सुन्दर और सटीक !!
ReplyDeleteबढ़िया सूत्र व प्रस्तुति , आ० धन्यवाद
ReplyDelete॥ जय श्री हरि: ॥
बढिया लिंक्स
ReplyDeleteमुझे शामिल करने का आभार
बहुत बढ़िया टिप्पणियाँ..बढ़िया लिंक्स...
ReplyDeleteआभार
अनु
:)
ReplyDeleteवाह...बहुत बढ़िया लिंक...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
क्या बात है बहुत सुन्दर काव्यात्मक प्रस्तुति भक्त और भक्ति की -
ReplyDeleteउस दिन तो प्रभू हमारे साथ थे
गगन शर्मा, कुछ अलग सा
कुछ अलग सा
अपने भक्तों का रखें, प्रभु जी नियमित ध्यान ।
हम ही अक्सर भूलते, वशीभूत अज्ञान ।
वशीभूत अज्ञान , बने प्रभु आज परीक्षक ।
साहस श्रद्धा धैर्य, हुवे रविकर संरक्षक ।
ईश्वर पर विश्वास, पूर्ण कर देता सपने ।
नमो नमो ले जाप, कष्ट मिट जाएँ अपने ।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-01-2014) को "दिल का पैगाम " (चर्चा मंच:अंक 1486) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिंक.
ReplyDeleteवाह जी वाह
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