कुक्कुर खाँसी आपको, किन्तु परेशां देश |
*कूटशासनी व्यवस्था, बढ़ा रही नित क्लेश |
*धोखे का राज्य
बढ़ा रही नित क्लेश, पेश कर कपट नीतियां-
झपट रहे विश्वास, अनोखी अजब रीतियाँ-
लोकसभा हित व्यग्र, दिखे आडम्बर आतुर |
करने चला शिकार, शिकारी बनता कुक्कुर ||
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ठेकेदारी चल रही, पक्की सर्विस ख़्वाब |
रह जाता धरना धरा, धरना बना जवाब |
धरना बना जवाब, देख धरने पर धरने |
सचिवालय पर भीड़, सचिव तो रेले भवने |
भीड़तंत्र की जीत, कहीं वह पत्थर फेंके |
सत्ता लाठी भाँज, पुलिस को देती ठेके ||
रह जाता धरना धरा, धरना बना जवाब |
धरना बना जवाब, देख धरने पर धरने |
सचिवालय पर भीड़, सचिव तो रेले भवने |
भीड़तंत्र की जीत, कहीं वह पत्थर फेंके |
सत्ता लाठी भाँज, पुलिस को देती ठेके ||
भारत का भुरता बना, खाया खूब अघाय |
भरुवा अब तलने लगे, सत्तारी सौताय |
सत्तारी सौताय, दलाली दूजा खाये |
आम आदमी बोल, बोल करके उकसाए |
इज्जत रहा उतार, कभी जन-गण धिक्कारत |
भागे जिम्मेदार, अराजक दीखे भारत ||
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अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग |
रविकर सर पर पैर रख, भाग सके तो भाग |
भाग सके तो भाग, जमुन-जल नाग-कालिया |
लिया दिया ना बाल, बटोरे किन्तु तालियां |
दिखे अराजक घोर, काहिरा जैसा जंतर |
होवे ढोर बटोर, आप में कैसा अंतर ||
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था विपक्ष में बैठना, पर सी एम् बन जाय |
आदत सीधे जाय ना, देता धरना आय ||
नौकरशाही भ्रष्ट कह, कहे नौकरी छोड़ | फोर्ड सैलरी की मची, आज आप में होड़ || चला ठीकरा फोड़ने, ठीक-ठाक रणनीति | राजनीति चमका रहा, छोड़ पुरानी रीति || खड़ा करेगा देश को, रविकर अंधे मोड़ | नीति-नियम सब छोड़ के, नगर ग्राम कुल तोड़ || है सुधार में धार पर, किन्तु कहाँ सरकार | कहीं दांव उल्टा पड़ा, रविकर जाय सिधार || |
कुक्कुर खाँसी बड़ी तकलीफदेह होती हैं ..खांसने वाला भी परेशां सामने वाला भी हैरान परेशां ..
ReplyDeleteबहुत खूब प्रस्तुति
आ० बढ़िया प्रस्तुति , धन्यवाद
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर !
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