प्यार मिले परिवार का, पुत्र-पिता पति साथ ।
देवी मुझको मत बना, झुका नहीं नित माथ ।
झुका नहीं नित माथ, झूठ आडम्बर छाये ।
कन्या-देवी पूज, जुल्म उनपर ही ढाये ।
दुग्ध-रक्त तन प्राण, निछावर सब कुछ करती ।
बाहर की क्या बात, आज घर में ही डरती ।।
कविताओं की बात है, बड़ी निराली मित्र ।
जैसा चाहे खींच ले, मनमाफिक कवि चित्र ।
मनमाफिक कवि चित्र, सजन के संग में झूले ।
पिया बसे परदेश, मजे से उनको छूले ।
केवल करे सवाल, चुने उत्तर फिर आला ।
मांगे नहीं जवाब, बंद जो मुख पर ताला।।
लेखक आलोचक बुधिल, चिंतन में मशगूल ।
वे ही तो व्याख्या करें, कवि की ऊलजुलूल ।।
फिल्म समीक्षा है कठिन, विषयवस्तु जब सत्य ।
दिल-दिमाग रोमांच में, जाय भटक न तथ्य ।
जाय भटक न तथ्य, खिलाड़ी कितना आला ।
किन्तु नपुंसक राज, पान को चम्बल पाला ।
ज्यादातर उन्माद, लिया है कड़ी परीक्षा ।
जब चम्बल की बात, कठिन तब फिल्म समीक्षा ।।
होली का त्यौहार, मनाये इस्ट्राबेरी ।
हरी हरी हो लाल, करे काहे तू देरी ।
सुन्दर स्वाद सुगंध, मोह लेती है मन को
भर लो रंग-गुलाल, बजे होली रणभेरी ।।
सुलझे अंतरजाल पर, दिया दनादन छाप ।
अध्ययन चिंतन के बिना, पूरा किया प्रलाप ।
पूरा किया प्रलाप, अजी मौलिकता छोड़े ।
दृष्टिकोण ना साफ़, विषय को तोड़-मरोड़े ।
नहीं विधा की बात, स्वयं में उलझे उलझे ।
मत करना उम्मीद, नहीं प्रतिपादन सुलझे ।
पानी ढोने का करे, जो बन्दा व्यापार ।
मरे डूब कर पर कभी, प्यास सके न मार ।
प्यास सके न मार, नदी में बहते जाते ।
क्या खारा जलधार, आज जो अश्क बहाते ।
है रविकर खुदगर्ज, नहीं समझो बेइमानी ।
बढ़ जायेगा मर्ज, जरा सा पी लो पानी ।।
शिद्दत से चाहा किये, करते नहीं प्रयास ।
चाहत तो रहती बनी, पूर्ण न होवे आस ।।
पूर्ण न होवे आस, घास न डाले किस्मत ।
उद्दम बिन अरदास, टूट जाती है हिम्मत।
टिटिहरी अड़ जाय, समंदर भी हारा है ।
करते रहो उपाय, साथ कृष्णा प्यारा है ।।
दिनेश की टिप्पणी-आपकी पोस्ट का लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
कविताओं की बात है, बड़ी निराली मित्र ।
ReplyDeleteजैसा चाहे खींच ले, मनमाफिक कवि चित्र ।
सचमुच, कविताओं की बात निराली है।
bahut gahan bhaav hai nari ke is dohe me.ati sundar.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteरंगों के पावन पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteभूले सब सब शिकवे गिले,भूले सभी मलाल
होली पर हम सब मिले खेले खूब गुलाल,
खेले खूब गुलाल, रंग की हो बरसातें
नफरत को बिसराय, प्यार की दे सौगाते,
NEW POST...फिर से आई होली...
बढ़िया प्रस्तुति..
ReplyDeleteमेरी कविता पर टिप्पणी का शुक्रिया...
रविकर नित नूतन भरें कविताओं में रंग .....
ReplyDeleteअर्थच्छ्ता बिखेरती कविता करतीं दंग .
बुरा न मानो होली है ,रंगों की बरजोरी है , सखियन संग ठिठोली है ...
मेरी कविता पर टिप्पणी बहुत ही अच्छी लगी.....आपका बहुत-बहुत आभार....
ReplyDeletebahut badhiya ji....mehanat rang layi
ReplyDeleteअपनी रसीली स्ट्राबेरी को यहाँ पाकर बड़ी खुशी हुई...
ReplyDeleteसभी लिंक्स बेहतरीन...
शुक्रिया..
मित्र आपका आभारी हूं जो नाचीज़ के
ReplyDeleteलेखन आपको पसंद जो आया यहां
स्थान देने का आभार ..