नमक छिड़किये घाव पर, बजट रहा बरसाय ।
क्यूँ महंगी सिगरेट से, रहा करेज जलाय ।
रहा करेज जलाय , जलाए खुद को बन्दा ।
माचिस सस्ती पाय, फूंक दे बजट पुलिन्दा ।
तौले प्रणव प्रधान, धान सब बइस पसेरी ।
खींचे चौपट कान, बढ़ा फिर नगर अँधेरी ।।
चर्चा में खर्चा करे, घंटों चर्चाकार |
सुन्दर-अतिसुन्दर लिखे, पाठक होता पार |
पाठक होता पार, समय की पड़ती मुश्किल |
बाढ़े ब्लॉग अपार, श्रेष्ठ प्रस्तुति कर शामिल |
सुविधा देता मंच, पढो सब बढ़िया परचा |
करता नहीं प्रपंच, करे तन-मन से चर्चा ||
हास्य टिप्पणी - गंभीर हो गई ।।
जहर बुझी बातें करें, जब प्राणान्तक चोट ।
जहर-मोहरा पीस के, लूँ दारू संग घोट ।
लूँ दारू संग घोट, पोट न तुमको पाया।
सुन्दर-अतिसुन्दर लिखे, पाठक होता पार |
पाठक होता पार, समय की पड़ती मुश्किल |
बाढ़े ब्लॉग अपार, श्रेष्ठ प्रस्तुति कर शामिल |
सुविधा देता मंच, पढो सब बढ़िया परचा |
करता नहीं प्रपंच, करे तन-मन से चर्चा ||
हास्य टिप्पणी - गंभीर हो गई ।।
जहर बुझी बातें करें, जब प्राणान्तक चोट ।
जहर-मोहरा पीस के, लूँ दारू संग घोट ।
लूँ दारू संग घोट, पोट न तुमको पाया।
मुझमे थी सब खोट, आज मै खूब अघाया ।
प्रश्न-पत्र सा ध्यान, लगाकर व्यर्थे ताका ।
अब सांसत में जान, रोज ही फटे फटाका ।।
सौ प्रतिशत सहमत रहा, कथा हकीकत पास |
मगर कुतर्की को कभी, सत्य न आये रास ||
फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
मगर कुतर्की को कभी, सत्य न आये रास ||
फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
रिश्वत-मद नस-नस बहे, बेबस "धीर" शरीर ।
श्रोता-पाठक एक से, प्यासे छोड़ें तीर ।
प्यासे छोड़ें तीर, तीर सब कवि के सहता ।विषय बड़ा गंभीर, कभी न कुछ भी कहता ।
जाए टिप्पण छोड़, वाह री उसकी किस्मत ।
चाहे बांह मरोड़, धरो पहले कुछ रिश्वत ।
पूरब से आती खबर, करे कलेजा चाक ।
पूरब से आती खबर, करे कलेजा चाक ।
शूर्पनखा सरकार की, कटी हमेशा नाक ।
कटी हमेशा नाक, करे न ठोस फैसला ।घातक ज्वर का वार, गार्जियन हुआ बावला ।
सूझे नहीं उपाय, रही संतानें खाती ।
मारे है तड़पाय, खबर पूरब से आती ।
तम में उषा की किरण, झींगुर नीरव माँय |
प्यासा चाटे ओस कण, क्रोध हरे मुसकाय |
जंगल में इक पथ मिले, कोलाहल में मौन |
जीवन के प्रतीति सी, कण कण में तू कौन |
तम में उषा की किरण, झींगुर नीरव माँय |
प्यासा चाटे ओस कण, क्रोध हरे मुसकाय |
जंगल में इक पथ मिले, कोलाहल में मौन |
जीवन के प्रतीति सी, कण कण में तू कौन |
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,behtreen
ReplyDeleteMY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
बहुत बेहतरीन!
ReplyDeleteमगर आप तो सक्षम हैं, कालजयी तृजन कीजिए ना!
हर टिप्पणी एक से बढ़ कर एक....
ReplyDeleteबधाई...
सादर.
बहुत सुंदर...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteपूरब से आती खबर, करे कलेजा चाक ।
ReplyDeleteशूर्पनखा सरकार की, कटी हमेशा नाक ।
जंगल में इक पथ मिले, कोलाहल में मौन |
जीवन के प्रतीति सी, कण कण में तू कौन |
हर बात में कवित्त है सरकार आपके , हर दम रहे हम इसलिए मरीद आपके .अच्छी चर्चा सजातें हैं तरह तरह के पादप लातें हैं फूल खिलातें हैं .
अद्भुत ब्लॉग दोहावली
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 19-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteजितने सुन्दर चित्र उतनी सुन्दर रचनाएँ ...बधाई स्वीकारें
नीरज