चश्मे चेहरे पर चढ़े, हिले मूल के चूल |
दोष सहित भाये मनुज, मूल प्रकृती भूल ||
दोष सहित भाये मनुज, मूल प्रकृती भूल ||
रंग अंग प्रत्यंग के, विश्लेषण से दंग ।
पाश्चात्य खुद नंग है, करे शान्ती भंग ।
करे शान्ती भंग, तंग यह दुनिया होगी ।
नहीं तनिक संयम, बनाए सबको भोगी ।
घाव हरे कर लाल, लोटता डगर गुलाबी ।
काला करे भविष्य, ताकता पश्चिम लाबी ।।
इन्तजार की इन्तिहा, इम्तिहान इतराय ।
मिलो यार अब तो सही, विरह सही न जाय ।।
अंकुश हटता बुद्धि से, भला लगे *भकराँध ।
भूले भक्ष्याभक्ष्य जब, भावे विकट सडांध ।
भावे विकट सडांध, विसारे देह देहरी ।
टूटे लज्जा बाँध, औंध नाली में पसरी ।।
नशा उतर जब जाय, होय खुद से वह नाखुश ।
कान पकड़ उठ-बैठ, हटे फिर संध्या अंकुश ।।
*सड़ा हुआ अन्न
भूले भक्ष्याभक्ष्य जब, भावे विकट सडांध ।
भावे विकट सडांध, विसारे देह देहरी ।
टूटे लज्जा बाँध, औंध नाली में पसरी ।।
नशा उतर जब जाय, होय खुद से वह नाखुश ।
कान पकड़ उठ-बैठ, हटे फिर संध्या अंकुश ।।
*सड़ा हुआ अन्न
मन की साथी आत्मा, जाओ तन को भूल ।
तृप्त होय जब आत्मा, क्यूँ तन खता क़ुबूल ?
क्यूँ तन खता क़ुबूल, उमरिया बढती जाए ।
नहीं आत्मा क्षरण, सुन्दरी मन बहलाए ।
बुड्ढा होय अशक्त, आत्मा भटका हाथी ।
ताक-झाँक बेसब्र, खोजता मन का साथी ।।
पहला ब्लॉगर मैं बना, संजय मेरे बाद ।
असल अरुण आतिथ्य का, पाते दोनों स्वाद ।
पाते दोनों स्वाद, हुई थोड़ी बेइमानी ।
सपना बिट्टू साथ, करें संजय अगवानी ।
आऊं अगली बार, आप या आयें घर पर ।
मिले पूर्ण परिवार, बधाई देता रविकर ।।
जख्म जिसने थे दिये वो आ रही है ।
बुझ दिये, सुन हवा अस्तुति गा रही है ।
वह फूल लादे डाल जब सजदा करे--
वो मुहब्बत की बड़ी मलिका रही है ।।
सृजन-शीलता दे जला, तन-मन के खलु व्याधि ।
बुरे बुराई दूर हों, आधि होय झट आधि ।।
कितने हलवाई मिटे, कितने धंधे-बाज ।
नाजनीन पर मर-मिटे, जमे काम ना काज ।
जमे काम ना काज, जलेबी रोज जिमाये ।
गुपचुप गुपचुप भेल, मिठाई घर भिजवाये ।
फिर अंकल उस रोज, दिए जब केटरिंग ठेका ।
सत्य जान दिलफेंक, उसी क्षण दिल को फेंका ।।
बंजारा चलता गया, सौ पोस्टों के पार ।
प्रेम पूर्वक सींच के, देता ख़ुशी अपार ।
देता ख़ुशी अपार, पोस्ट तो ग्राम बन गए ।
पा जीवन का सार, ग्राम सुखधाम बन गए ।
सर मनसर कैलास, बही है गंगा धारा ।
पग पग चलता जाय, विज्ञ सज्जन बंजारा ।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,.........
ReplyDeleteRESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
मन की साथी आत्मा, जाओ तन को भूल ।
ReplyDeleteतृप्त होय जब आत्मा, क्यूँ तन खता क़ुबूल ?
क्यूँ तन खता क़ुबूल, उमरिया बढती जाए ।
नहीं आत्मा क्षरण, सुन्दरी मन बहलाए ।
अभिनव भाव अभिव्यंजन सुन्दर मनोहर रचना .
आज की चर्चा भी रोचक ...
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स:-)...
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति..
आपका आभार..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चर्चा
ReplyDeleterochak v bahut sundar prastuti.badhai.ये वंशवाद नहीं है क्या?
ReplyDeleteबहुत रोचक प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteसंस्कार इस पार, बजे 'वीणा' शहनाई ।
ReplyDeleteहर्षित हिन्द अपार, बहू इक औरो आई ।
गई सानिया एक, बधाई लो अनजाने ।
पाक सोनिया बन, धाक हो सोलह आने ।।
बहुत खूब भाई साहब .