Friday, 16 March 2012

तन मन को देती जला, रहा निकम्मा ताप

BALAJI
 यात्री का परिवार जब,  कर स्वागत संतुष्ट ।
मेरा घर सोता मिले, बेगम मिलती रुष्ट ।
बेगम मिलती रुष्ट, नहीं टी टी की बेगम ।
बच्चे सब शैतान, हुई जाती वो बेदम ।
 नियमित गाली खाय, दिलाये निद्रा टेन्सन ।   
चार्ज-शीट है गिफ्ट,  मरे है पाय पेन्सन ।

अखिल विश्व में गूंजता, जब बरबंडी घोष ।
यू पी की बिगड़ी दशा, पर करते क्यूँ रोष ।
पर करते क्यूँ रोष, डूबती सदा तराई ।
नब्बे हैं बरबाद, करें दस यही पिटाई ।
डी पी यादव केस, इलेक्शन के पहले की ।
अब तो कुंडा राज, फतह नहले-दहले की ।।

यह चिंगारी मज़हब की."




 
लोकतंत्री-बिडम्बना, संख्याबल का खेल।
जाति-धर्म के बैंक से, चलती सत्ता रेल ।

चलती सत्ता रेल, लूट-लो नहीं झमेला ।
कभी न होगी जेल, जमा भेड़ों का रेला ।

नब्बे फीसद वोट, मिले मुस्लिम के दीदी ।
देते तीस-हजार, इसी से सपा खरीदी । 

रमिया का एक दिन.... (महिला दिवस के बहाने)


खटे सदा रमिया मगर, मिया बजाएं ढाप ।
तन मन को देती जला, रहा निकम्मा ताप ।  

रहा निकम्मा ताप, हाथ पे हाथ धरे है ।
जीवन का अभिशाप, मगर ना आह करे है ।

रमिया दारु लाय, पिलाती नाग नाथ को ।
साड़ी अगली बार, मीसती चली हाथ को ।।

रमिया घर-बाहर खटे
रमिया घर-बाहर खटे, मिया बजाएं ढाप ।
धर देती तन-मन जला, रहा निकम्मा ताप ।  

रहा निकम्मा ताप, चढ़ा कर देशी बैठा |
रहा बदन को नाप, खोल कर धरै मुरैठा ।

पति परमेश्वर मान, ध्यान न देती कमियां।
लेकिन पति हैवान, बिछाती बिस्तर रमिया ।।

5 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  2. बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति...दिनेश जी बधाई,.....

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  3. आप गज़ब का लिखते हैं। इतने सहज सरल शब्दों में गंभीर बात कह देने की आपकी इस कला का मैं सही मायनों में फैन हूं।

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