सुध-बुध बिसरे तन-बदन, गुमते होश-हवाश ।
गुमते होश-हवाश, पुलकती सारी देंही ।
तीर भरे उच्छ्वास, ताकता परम सनेही ।
वर्षा हो न जाय, भिगो दे पाथ रास का ।
अब न मुझको रोक, चली ले मिलन आस का ।।
रोग ग्रसित तन-मन मिरा, संग में रोग छपास ।
मर्जी मेरी ही चले, नहीं डालनी घास ।
नहीं डालनी घास, बिठाकर बँहगी घूमूँ ।
मम्मी तेरी खास, बैठ सारे दिन चूमूँ ।
चाचा का क्या प्लाट, प्लाट परिवारी पाया ।
मूल्य बचाते हम, व्यास जी को भिजवाया ।।
एकत्रित होना सही, अर्थ शब्द-साहित्य ।
सादर करते वन्दना, बड़े-बड़ों के कृत्य ।
बड़े-बड़ों के कृत्य, करे गर किरपा हम पर ।
हम साहित्यिक भृत्य, रचे रचनाएं जमकर ।
गुरु-चरणों में बैठ, होय तन-मन अभिमंत्रित ।
छोटों की भी पैठ, करें शुरुवात एकत्रित ।।
बड़े-बड़ों के कृत्य, करे गर किरपा हम पर ।
हम साहित्यिक भृत्य, रचे रचनाएं जमकर ।
गुरु-चरणों में बैठ, होय तन-मन अभिमंत्रित ।
छोटों की भी पैठ, करें शुरुवात एकत्रित ।।
नहीं रहा जो कुछ भला, दीजै ताहि भुलाय ।
नई एक शुरुवात कर, सेतु नवीन बनाय ।।
अपलक पढता रहा समझता,
रहस्य सार गीता का |
श्लोक हो रहे रविकर अक्षर,
श्लोक हो रहे रविकर अक्षर,
है आभार अनीता का ||
Naaz
वाह-वाह क्या बात है, भला दुपट्टा छोर ।
इक मन्नत से गाँठती, छोरी प्रिय चितचोर ।
छोरी प्रिय चितचोर, मोरनी सी नाची है ।कहीं ओर न छोर, मगर प्रेयसी साँची है ।
रविकर खुद पर नाज, बना चाभी का गुच्छा ।
मज़बूरी मन्जूर कर लिया, पीठ दिखा लो सूरज को ।
महबूबा को अंक भरे जब, धूप लगे न सूरत को ।
बनकर के परछाईं जीती, चिंता तो करनी ही है -
झूठ झकास जीत भी जाये, चुनना सच को इज्जत को ।।
सत्य कटुक कटु सत्य हो, गुरुवर कहे धड़ाक।
दल-दल में दलकन बढ़ी, दल-दलपति दस ताक।
दल-दलपति दस ताक, जमी दलदार मलाई ।
सभी घुसेड़ें नाक, लगे है पूरी खाई ।
खाई कुआँ बराय, करो मैया ना खट्टा ।
बैठे भाजप चील, मार न जांय झपट्टा ।।
panchnama - उदासीनता की तरफ, बढे जा रहे पैर ।
रोको रोको रोक लो, करे खुदाई खैर ।
करे खुदाई खैर, लगो योगी वैरागी ।
दुनिया से क्या वैर, भावना क्यूँकर जागी ।
दर्द हार गम जीत, व्यथा छल आंसू हाँसी ।
जीवन के सब तत्व, जियो तुम छोड़ उदासी ।।
यही हकीकत है दुनिया की, साथी जरा निभाता चल ।
काँटे जिसके लिए बीनते, अक्सर जाये वो ही खल ।
स्वारथ की इस खींचतान में, अपने हिस्से की खातिर
चील-झपट्टा मार रहे सब, अपना चिंतन ही सम्बल ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
मिलन आस का वास हो, अंतर्मन में ख़ास ।
ReplyDeleteसुध-बुध बिसरे तन-बदन, गुमते होश-हवाश ।
बिहारी की मुग्धा नायिका आ गई -फिर उसके बाद हमें कुछ खबर नहीं होती .....
नहीं रहा जो कुछ भला, दीजै ताहि भुलाय ।
ReplyDeleteनई एक शुरुवात कर, सेतु नवीन बनाय ।।
बहुत सुंदर प्रस्तुति,.....दिनेश जी,....
बढ़िया टिप्पणियाँ...
ReplyDeleteसभी लिक्स पढ़ लिए..बहुत खूब...
शुक्रिया.
बहुत बढ़िया रविकर जी!
ReplyDeleteआपकी सृजनक्षमता का कायल हूँ!
वियोग से संयोग की ओर लेखिका की कलम का चलना अति सुखद अनुभूति है .
Deleteअलग अलग ब्लोग्स लिए किये व्यक्त विचार,
ReplyDeleteऐसे ही करते रहे आप ब्लॉग व्यापार
आप ब्लॉग व्यापार बढ़ेंगे खूब समर्थक,
हो जायेगा एक दिन ब्लॉग्गिंग करना सार्थक.
सुन्दर प्रस्तुति.
मिलन आस का वास हो, अंतर्मन में ख़ास ।
ReplyDeleteसुध-बुध बिसरे तन-बदन, गुमते होश-हवाश ।
वियोग से संयोग की ओर लेखिका की कलम का चलना अति सुखद अनुभूति है .
शानदार और मनमोहक।
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