INDIAN CLICK GALLERY
चीं-चीं चिड़िया चली उड़,चिचियाहट चित भंग ।
चीं-चीं चिड़िया चली उड़,चिचियाहट चित भंग ।
सूर्य अस्तगामी हुआ, रक्त आसमाँ रंग ।
रक्त आसमाँ रंग, साँझ होने को आई |
जंग आज की बन्द, काल्ह फिर करे चढ़ाई ।
प्राकृत का है खेल, समय ने सीमा खींची |
गोरी कोरी क्यूँ रहे, होरी का त्यौहार ।
छोरा छोरी दे कसम, ठुकराए इसरार ।
ठुकराए इसरार, छबीले का यह दुखड़ा ।
फिर पाया न पार, रँगा न गोरी मुखड़ा ।
लेकर रंग पलाश, करूँ जो जोर-जोरी ।
डोरी तोड़ तड़ाक, रूठ जाये ना गोरी ।।
सौ सुनार की चोट हित, मतदाता तैयार ।
इक लुहार की ठोक के, चाहे सुख-भिनसार ।
चाहे सुख-भिनसार, रात कुल पांच साल की ।
दुर्गति के आसार, मुसीबत जान-माल की ।
चोरी लूट खसोट, डकैती बलत्कार की ।
लुटा दिया जब वोट, सहो अब सौ सुनार की ।।
छज्जे पर बैठी गौरैय्या, फुर्र हो गई ।
द्वार बुहारे मेरी मैया, कहाँ खो गई ।
कौआ उल्लू तोता व्याकुल आसमान में-
मारक मोबाइल की टिन-टिन, उन्हें धो गई ।।
द्वार बुहारे मेरी मैया, कहाँ खो गई ।
कौआ उल्लू तोता व्याकुल आसमान में-
मारक मोबाइल की टिन-टिन, उन्हें धो गई ।।
पिट्सबर्ग का भारती, है गिट-पिट से दूर ।
करे देश की आरती, देशभक्ति में चूर ।
देशभक्ति में चूर, सूंढ़ हाथी की शुभ-शुभ ।
औषधि तुलसी बाघ, कैक्टस जाती चुभ-चुभ ।
तरी मसालेदार, बाग़ में सजी रंगोली ।
रेल कमल बुद्धत्व, गजब वो खेले होली ।।
उच्चारण
उच्चारण
यह इम्तिहान है नहीं सखे, यही परम अभ्यास है ।
गुण-दोष विवेचन पल पल करती, नित धरती आकाश है ।
सामर्थ्यवान बनने की रीती, अपनी एक समीक्षा यह-
बढ़ते तन के तुल्य बताती, बुद्धि हमारे पास है ।।
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जिम्मेदारी के प्रती, रहते विर्क सचेत ।
पूरी निष्ठां से तुरत, चर्चा हैं कर देत ।
चर्चा हैं कर देत, लिंक सुन्दर सब साजे ।
होली का मृदंग, नगाड़े ढोलक बाजे ।
रविकर कहता मित्र, जमेगी अपनी यारी ।
कई उकेरे चित्र, निभाई जिम्मेदारी ।।
रविकर जी टिप्पणी कर कर रहे कमाल
ReplyDeleteहोली के इस हुडदंग में मचा रहे धमाल
मचा रहे धमाल,तुकबंदी दिनेश से सीखो,
समझ बूझ कर अर्थ फिर टिप्पणी लिखो
कह "धीर" तुकबंदी करना आसान नहीं
उनके लिए है कठिन जिनको ज्ञान नही!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति,दिनेश जी बधाई,...
NEW POST ...फुहार....: फागुन लहराया...
आभार!
ReplyDeleteholi ka tyohaar...rago kee fuhar...rang birange bhav hai...rachnayein majedaar.....
ReplyDeleteछज्जे पर बैठी गौरैय्या, फुर्र हो गई ।
ReplyDeleteद्वार बुहारे मेरी मैया, कहाँ खो गई ।
कौआ उल्लू तोता व्याकुल आसमान में-
मारक मोबाइल की टिन-टिन, उन्हें धो गई ।।
रचना वही जो रविकर जी [पढवाएं ,टिपण्णी ,वही जो दिनेश भाई कर जाएँ .
बूढ़े बाबा भी रंगे आज हैं होरी में
ReplyDeleteउछल उछल कर तान के सीना
मस्त बड़े बरजोरी में
गोरी से हंस हंस बतियाते
नजरें कहीं हैं और
हाथ छुपाये भंग का गोला
चाह रहे हैं और ..
होरी आई रे कन्हाई ...राधे राधे सम्हाल के ..
भ्रमर 5
भ्रमर का दर्द और दर्पण
आपके कमेंट करने के स्टाइल का जवाब नहीं।
ReplyDeleteआप सही मायनों में मोहक कवि हैं।
टिप्पणियों का रोचक अंदाज़ !
ReplyDeleteटिप्पणियों का रोचक अंदाज़ !
ReplyDeleteभाई दिनेश रविकर जी, आपकी आशुकवितायें कमाल की हैं। आभार!
ReplyDeleteरविकर जी, आनंद आ गया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
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