Wednesday, 22 January 2014

लीन कर्म में उद्यमी, कभी दिखे ना दीन



स्वर्णयोनिः वृक्षः शमी

राजीव कुमार झा 





रोचक है यह तरु शमी, यहाँ अग्नि का वास |
यज्ञ धर्म इतिहास में, रखे जगह यह ख़ास ||


दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द-


"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-34

दोहा

दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द  |
दारा दारमदार ले, मर्दे गिट्टी गर्द ||

कंकरेत कंकर रहित, काष्ठ विहीन कुदाल |
बिन भार्या के भवन सम, मन में सदा मलाल ||

अड़ा खड़ा मुखड़ा जड़ा, उखड़ा धड़ा मलीन |
लीन कर्म में उद्यमी, कभी दिखे ना दीन ||

*कृतिकर-शेखी शैल सी, सज्जन-पथ अवरुद्ध |
करे कोटिश: गिट्टियां, हो *षोडशभुज क्रुद्ध ||

दाराधीन=स्त्री के वशीभूत
कृतिकर=बीस भुजा वाला
षोडशभुज=सोलह भुजाओं वाली


भागे जिम्मेदार, अराजक दीखे भारत-

भारत का भुरता बना, खाया खूब अघाय |
भरुवा अब तलने लगे, सत्तारी सौताय |

सत्तारी सौताय, दलाली दूजा खाये |
आम आदमी बोल, बोल करके उकसाए |

इज्जत रहा उतार, कभी जन-गण धिक्कारत  |
भागे जिम्मेदार, अराजक दीखे भारत ||


अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग-

अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग |
रविकर सर पर पैर रख, भाग सके तो भाग |

भाग सके तो भाग, जमुन-जल नाग-कालिया |
लिया दिया ना बाल, बटोरे किन्तु तालियां |

दिखे अराजक घोर, काहिरा जैसा जंतर |
होवे ढोर बटोर, आप में कैसा अंतर ||  

Tuesday, 21 January 2014

कुक्कुर खाँसी आपको, किन्तु परेशां देश -

 कुक्कुर खाँसी आपको, किन्तु परेशां देश |
*कूटशासनी व्यवस्था, बढ़ा रही नित क्लेश |
*धोखे का राज्य 

बढ़ा रही नित क्लेश, पेश कर कपट नीतियां-
झपट रहे विश्वास, अनोखी अजब रीतियाँ-

लोकसभा हित व्यग्र, दिखे आडम्बर आतुर |
करने चला शिकार, शिकारी बनता कुक्कुर ||
ठेकेदारी चल रही, पक्की सर्विस ख़्वाब |
रह जाता धरना धरा, धरना बना जवाब |

धरना बना जवाब, देख धरने पर धरने |
सचिवालय पर भीड़, सचिव तो रेले भवने |

भीड़तंत्र की जीत, कहीं वह पत्थर फेंके |
सत्ता लाठी भाँज, पुलिस को देती ठेके ||
भारत का भुरता बना, खाया खूब अघाय |
भरुवा अब तलने लगे, सत्तारी सौताय |

सत्तारी सौताय, दलाली दूजा खाये |
आम आदमी बोल, बोल करके उकसाए |

इज्जत रहा उतार, कभी जन-गण धिक्कारत  |
भागे जिम्मेदार, अराजक दीखे भारत ||


अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग |
रविकर सर पर पैर रख, भाग सके तो भाग |

भाग सके तो भाग, जमुन-जल नाग-कालिया |
लिया दिया ना बाल, बटोरे किन्तु तालियां |

दिखे अराजक घोर, काहिरा जैसा जंतर |
होवे ढोर बटोर, आप में कैसा अंतर || 


 था विपक्ष में बैठना, पर सी एम् बन जाय |
आदत सीधे जाय ना, देता धरना आय ||

नौकरशाही भ्रष्ट कह, कहे नौकरी छोड़ |
फोर्ड सैलरी की मची, आज आप में होड़ ||

चला ठीकरा फोड़ने, ठीक-ठाक रणनीति |
राजनीति चमका रहा, छोड़ पुरानी रीति ||

खड़ा करेगा देश को, रविकर अंधे मोड़ |
नीति-नियम सब छोड़ के, नगर ग्राम कुल तोड़ ||

है सुधार में धार पर, किन्तु कहाँ सरकार |
कहीं दांव उल्टा पड़ा, रविकर जाय सिधार ||




Monday, 20 January 2014

गोली मारो पुलिस को, नहीं कटाओ नाक-


दिल्ली पुलिस की सुरक्षा

Bamulahija dot Com 






गोली मारो पुलिस को, नहीं कटाओ नाक |
धाक जमाने को गिरे, आप गिरेबाँ झाँक  |

आप गिरेबाँ झाँक, अराजक सोच दीखती |
नक्सल सा आतंक, मचाना आप सीखती |

फेल हुई सरकार, विपक्षी जैसी बोली |
धरना कारोबार, शुरू है देना गोली || 
था विपक्ष में बैठना, पर सी एम् बन जाय |
आदत सीधे जाय ना, देता धरना आय ||

नौकरशाही भ्रष्ट कह, कहे नौकरी छोड़ |
फोर्ड सैलरी की मची, आज आप में होड़ ||

चला ठीकरा फोड़ने, ठीक-ठाक रणनीति |
राजनीति चमका रहा, छोड़ पुरानी रीति ||

खड़ा करेगा देश को, रविकर अंधे मोड़ |
नीति-नियम सब छोड़ के, नगर ग्राम कुल तोड़ ||

है सुधार में धार पर, किन्तु कहाँ सरकार |
कहीं दांव उल्टा पड़ा, रविकर जाय सिधार ||

दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द-


"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-34

दोहा

दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द  |
दारा दारमदार ले, मर्दे गिट्टी गर्द ||

कंकरेत कंकर रहित, काष्ठ विहीन कुदाल |
बिन भार्या के भवन सम, मन में सदा मलाल ||

अड़ा खड़ा मुखड़ा जड़ा, उखड़ा धड़ा मलीन |
लीन कर्म में उद्यमी, कभी दिखे ना दीन ||

*कृतिकर-शेखी शैल सी, सज्जन-पथ अवरुद्ध |
करे कोटिश: गिट्टियां, हो *षोडशभुज क्रुद्ध ||

दाराधीन=स्त्री के वशीभूत
कृतिकर=बीस भुजा वाला
षोडशभुज=सोलह भुजाओं वाली

होवे पुलिस अधीन, जाय क्यूँ अलग कमाई
माई-मामा मारते, मजा यहाँ हरवक्त |
पुलिस उगाही में जुटी, बा-शिंदे के भक्त |

बा-शिंदे के भक्त, आपका गर बन पाये |
पाया बँगला कार, मजा दुगुना हो जाये  |

छुटभैये बड़वार, दलाली तब चमकाई |
होवे पुलिस अधीन, जाय क्यूँ अलग कमाई --

धड़'ना है बेताल धुर, चढ़ा केजरी पीठ

विक्रम और बेताल
धड़'ना है बेताल धुर, चढ़ा केजरी पीठ |
बोले जब ईमान से, चढ़े पेड़ पर ढीठ |

चढ़े पेड़ पर ढीठ, मीठ यह सोम सुरा है |
आ-भूषण बिड़लाल, हाथ में लिए छुरा है |

आप बाप की बात,  बीच में बच्चू पड़ ना |
खींचे बहुत कबंध, निकलता लेकिन धड़ ना || 

खतरे से खिलवाड़ पर, कारण दिखे अनेक-

MONDAY, 13 JANUARY 2014


रविकर ले हित-साध, आप मत डर खतरे से-

खतरे से खिलवाड़ पर, कारण दिखे अनेक |
थूक थूक कर चाटना, घुटने देना टेक |

घुटने देना टेक, अगर हो जाए हमला |
होवे आप शहीद, जुबाँ पर जालिम जुमला |

भाजप का अपराध, उसी पर कालिख लेसे |
रविकर ले हित-साध, आप मत डर खतरे से ||


बानी है धमकी भरी, खफा खफा सरकार-

अब आप के कर्णधारों को सोचना चाहिए

pramod joshi 







बानी है धमकी भरी, खफा खफा सरकार |
सुनी तनिक खोटी-खरी, धरने को तैयार |

धरने को तैयार, हमेशा टाँग अड़ाएं |
करते रहे प्रचार, किन्तु अब मुँह की खाएं |

वाह केजरीवाल, नहीं है तेरी सानी |
नहीं गले अब दाल, चलो दे दो कुर्बानी ||


*बोड़ा निगले जिंदगी, हिंदी हुई अनाथ-


चिंदी-चिंदी तन-बदन, पांच मरे इक साथ । 
*बोड़ा निगले जिंदगी, हिंदी हुई अनाथ ॥ 
*अजगर 

हिंदी हुई अनाथ, असम-पथ ऊबड़-खाबड़ । 
है सत्ता कमजोर, धूर्त आतंकी धाकड़ । 

हिंदी-भाषी पाय, बना माथे पर बिंदी । 
अपने रहे निकाल, यहाँ हिंदी की चिंदी ।।  

Saturday, 18 January 2014

रविकर घोंचू-मूर्ख, धरे पानी इक चुल्लू-


हमाहमी हरहा हिये, लिये जाति-च्युत होय |
ऐसी अवसरवादिता, देती साख डुबोय |

देती साख डुबोय, प्रबंधन कौशल भारी |
बेंचे धर्म-इमान, ख़रीदे कुल मुख्तारी |

रविकर जाने मर्म, आप की जाने महिमा |
आम आदमी तंग, वक्त भी सहमा सहमा || 


अब आप के कर्णधारों को सोचना चाहिए

pramod joshi 






बानी है धमकी भरी, खफा खफा सरकार |
सुनी तनिक खोटी-खरी, धरने को तैयार |

धरने को तैयार, हमेशा टाँग अड़ाएं |
करते रहे प्रचार, किन्तु अब मुँह की खाएं |

वाह केजरीवाल, नहीं है तेरी सानी |
नहीं गले अब दाल, चलो दे दो कुर्बानी ||





सदियों से चम्पी करे, पंजे नोचें बाल |
कंघी बेंचे वह धड़ा, गंजे करें सवाल |

गंजे करें सवाल, नया हेयर कट पाया |
हर दिन अति उम्मीद, दीप नित नया जलाया |

यह गंजों का देश, राज सत्ता को कोसे |
दीन हीन के क्लेश, रहे यूँ ही सदियों से || 

कब कहाँ कैसे बदलता है आदमीtarun_kt 
Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.." 






अधजल गगरी छलकती, जन-गण मन छल जाय |
बजे घना थोथा चना, पाप घड़ा मुस्काय |

पाप घड़ा मुस्काय, खाय अभिलाषा सारी |
शुरू वही व्यवसाय, वही आई बीमारी |

अंधे हाथ बटेर, करे चौपट यह नगरी |
तू डाल डाल मैं पात, आप की अधजल गगरी || 

सतीश सक्सेना 
मेरे गीत ! 








उल्लू के पट्ठे लड़ें, अब से युद्ध तमाम |
ताम-झाम हर-मंच का, देता यह पैगाम |

देता यह पैगाम, चमचई आदर पाये |
बनते बिगड़े काम, चरण-चुम्बन गर आये |

रविकर घोंचू-मूर्ख, धरे पानी इक चुल्लू |
डूबे अवसर पाय, बड़ा ही अहमक उल्लू ||

सड़क छाप हैं आप के, रविकर क्रिया-कलाप |
मुतवा देते सड़क पर, क्यूँ मंत्री जी आप |


क्यूँ मंत्री जी आप, कहाँ थे महिला दस्ता |
घुसते रात-विरात, रोक महिला का रस्ता |


बहुत हुआ उत्पात, रात दिन करते हड़बड़ |
करिये तनिक सुधार, अन्यथा जाओगे सड़ || 

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-34


दोहा
मेटे दारिद दारिका, भेंटे दुर्गा मातु ।
सुता पुत्र पति पालती, रख अक्षुण्ण अहिवातु ॥

मुखड़े पर जो तेज है, रखिये सदा सहेज ।
षोडशभुजा विराजिये, कंकड़ की शुभ-सेज ।

पहन काँच की चूड़ियाँ, बेंट काठ की थाम ।
लोहा लेने चल पड़ी, शस्त्र चला अविराम ॥

छुई-मुई अबला नहीं, नहीं निराला-कोटि ।
कोटि कोटि कर खेलते, बना शैल की गोटि ॥

हाव-भाव संतुष्टि के, ईंटा पत्थर खाय ।
कुल्ला कर आराम से, पानी पिए अघाय ।

 रोला

पानी पिए अघाय, परिश्रम हाड़तोड़ कर ।
गैंता तसला हाथ, प्रभावित करते रविकर ।

थक कर होय निढाल, ढाल के संरचनाएं |
पाले घर-संसार, आज माँयें जग माँयें ||

Friday, 17 January 2014

यह गंजों का देश, राज सत्ता को कोसे-


"आप" हुए मदहोश 


मनोरमा 
श्यामल सुमन

बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा-

लासा मंजर में लगा, आह आम अरमान |
मौसम दे देता दगा, है बसन्त हैरान |

है बसन्त हैरान, कोयलें रोज लुटी हैं |
गिरगिटान मुस्कान, लोमड़ी बड़ी घुटी है |

गीदड़ की बारात, दिखाता सिंह तमाशा |
बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा ||


आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया-

भन्नाता बिन्नी दिखा, सुस्ताता अरविन्द |
उकसाता योगेन्द जब, उकताता यह हिन्द |

उकताता यह हिन्द, मुफ्तखोरों की दुनिया |
आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया |

दीन-हीन सरकार, विपक्षी है चौकन्ना |
टपकाए नित लार, जाय रविकर जी भन्ना ||
रट्टू तोते कोष हित, कोस रहे उल्लूक |
काँव काँव कौवे करें, जान लाश में फूँक |
जान लाश में फूँक, बड़े अय्यार जमाते |
बार बार हो चूक, लात फिर फिर खा जाते |
जोकर की औलाद, किराए का यह टट्टू |
करे चमचई रोज,  बेतुकी बातें रट्टू ||

हिन्दी संस्थानों पर कब्ज़ा,कर लेंगे उल्लू के पट्ठे - सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना 
मेरे गीत ! 








उल्लू के पट्ठे लड़ें, अब से युद्ध तमाम |
ताम-झाम हर-मंच का, देता यह पैगाम |

देता यह पैगाम, चमचई आदर पाये |
बनते बिगड़े काम, चरण-चुम्बन गर आये |

रविकर घोंचू-मूर्ख, धरे पानी इक चुल्लू |
डूबे अवसर पाय, बड़ा ही अहमक उल्लू ||

भावी रहे सुधार, शहर ला दादा-दादी-

खिले खिले बच्चे मिले, रहे खिलखिला रोज । 
बुझे-बुझे माँ-बाप पर, रहे मदर'सा खोज । 

रहे मदरसा खोज, घूस की दुनिया आदी। 
भावी रहे सुधार, शहर ला दादा-दादी। 

पैतृक घर दे बेंच, आय उपयुक्त राशि ले ।  
करे सुरक्षित सीट, आज यूँ मिलें दाखिले ॥ 
सड़क छाप हैं आप के, रविकर क्रिया-कलाप |
मुतवा देते सड़क पर, क्यूँ मंत्री जी आप |
क्यूँ मंत्री जी आप, कहाँ थे महिला दस्ता |
घुसते रात-विरात, रोक महिला का रस्ता |
बहुत हुआ उत्पात, रात दिन करते हड़बड़ |
करिये तनिक सुधार, अन्यथा जाओगे सड़ || 

कब कहाँ कैसे बदलता है आदमीtarun_kt 
Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.." 






अधजल गगरी छलकती, जन-गण मन छल जाय |
बजे घना थोथा चना, पाप घड़ा मुस्काय |

पाप घड़ा मुस्काय, खाय अभिलाषा सारी |
शुरू वही व्यवसाय, वही आई बीमारी |

अंधे हाथ बटेर, करे चौपट यह नगरी |
तू डाल डाल मैं पात, आप की अधजल गगरी ||

पाया गाँधी सदन से, जो लर्निंग लायसेन्स

पाया गाँधी सदन से, जो लर्निंग लायसेन्स |
बैठा ड्राइविंग सीट पर, दिखी सवारी टेंस |

दिखी सवारी टेंस, लेंस आँखों पर मोटा |
हरिश्चंद का पूत, किन्तु अनुभव का टोटा |

यमुना ब्रिज पर जाम, देख बन्दा घबराया |
देता वहीँ डुबाय, सुबह अखबार छपाया ||


सदियों से चम्पी करे, पंजे नोचें बाल-





सदियों से चम्पी करे, पंजे नोचें बाल |
कंघी बेंचे वह धड़ा, गंजे करें सवाल |

गंजे करें सवाल, नया हेयर कट पाया |
हर दिन अति उम्मीद, दीप नित नया जलाया |

यह गंजों का देश, राज सत्ता को कोसे |
दीन हीन के क्लेश, रहे यूँ ही सदियों से ||
  

सपने नयनों में पले, वाणी में अरदास-

सपने नयनों में पले, वाणी में अरदास |
बुद्धि बनाये योजना, करे कर्म तनु ख़ास |

करे कर्म तनु ख़ास, पूर्ण विश्वास भरा हो |
शत-प्रतिशत उद्योग, भाग्य को तनिक सराहो |

पाय सफलता व्यक्ति, लक्ष्य पा जाये अपने |
रविकर इच्छा-शक्ति, पूर्ण कर देती सपने ||