Sunday, 18 March 2012

फूँक बुलाते शंख, जमा हों संगी साथी -

मइके भौजी क्या गईं, निकले बच्चू पंख ।
पड़ा खुला दरबार है, फूँक बुलाते  शंख ।

 फूँक बुलाते शंख, जमा हों संगी साथी |
आज जमेगा रंग, नहीं कुछ प्रवचन पाथी ।

पले खास जासूस, जमे देखे मनमौजी । 
मोबाइल का नाश, फाट पड़ती है भौजी ।।

  भारतीय नारी 
निराधार कारण बड़े, करें कलेजा चाक ।
मानव जिद्दी नासमझ, समझे मोक्ष तलाक ।।

छोटी सी यह इल्तिजा, हो जाएँ माँ पूर ।
पंख मिलें हर पट खुले, उड़ कर आऊं दूर ।।

  उच्चारण
भाई मेरे हुवे पडोसी, जिन्हें साथ माँ पोसी । 
आज खून रिश्ते से रिसता, बना खून का दोषी ।।

अक्षर अक्षर पढ़ लिया, होय हिया पैबस्त ।
बस इतना ही कह सका, जबरदस्त अति-मस्त ।
जबरदस्त अति-मस्त, नशे में मच्छर घूमें ।
 मरता होकर पस्त, नहीं कोई भी चूमे ।
भटक आत्मा मोर, तलाशे इक घर प्यारा ।
हिम्मत रही बटोर, बने आदमी दुबारा ।।


! कौशल !
ममता की फितरत गजब, अजब है इनका हाल ।
घटे समर्थक राज्य में, हैं बिगड़े सुरताल ।
 हैं बिगड़े सुरताल, मौत बच्चों की देखे ।
पीकर मरे हजार, मौत सब इसके लेखे ।
रेल बजट पर आज, करे ये नाटक भारी ।
 करे काम न काज, बिना ममता महतारी ।
    
सच
 उल्लूक टाईम्स
छेद छेद में भेद है, दे छल-छिद्र खरेद ।
*छेदा छेदक में लगे, अबकी देगा भेद ।।
*घुन

Saturday, 17 March 2012

क्यूँ महंगी सिगरेट से, रहा करेज जलाय-


नमक छिड़किये घाव पर, बजट रहा बरसाय ।
क्यूँ महंगी सिगरेट से, रहा करेज जलाय । 
रहा करेज जलाय , जलाए खुद को बन्दा ।
माचिस सस्ती पाय, फूंक दे बजट पुलिन्दा ।
तौले प्रणव प्रधान, धान सब बइस पसेरी ।
खींचे चौपट कान,  बढ़ा फिर नगर अँधेरी ।।

चर्चा में खर्चा करे, घंटों चर्चाकार |
सुन्दर-अतिसुन्दर लिखे, पाठक होता पार |
पाठक होता पार, समय की पड़ती मुश्किल |
बाढ़े ब्लॉग अपार, श्रेष्ठ प्रस्तुति कर शामिल |
सुविधा देता मंच, पढो सब बढ़िया परचा |
करता नहीं प्रपंच, करे तन-मन से चर्चा ||


हास्य टिप्पणी - गंभीर हो गई ।।
जहर बुझी बातें करें, जब प्राणान्तक चोट ।  
जहर-मोहरा पीस के, लूँ दारू संग घोट ।
लूँ दारू संग घोट, पोट न तुमको पाया
मुझमे थी सब खोट, आज मै खूब अघाया ।
प्रश्न-पत्र सा ध्यान, लगाकर व्यर्थे ताका ।
सौ प्रतिशत सहमत रहा, कथा हकीकत पास |
मगर कुतर्की को कभी, सत्य न आये रास ||  


फुहार....: रिश्वत लिए वगैर.... 


रिश्वत-मद नस-नस बहे, बेबस "धीर" शरीर ।
श्रोता-पाठक एक से, प्यासे छोड़ें तीर ।  
प्यासे छोड़ें तीर, तीर सब कवि के सहता ।
विषय बड़ा गंभीर, कभी न कुछ भी कहता ।
जाए टिप्पण छोड़, वाह री उसकी किस्मत ।
चाहे बांह मरोड़,  धरो पहले कुछ रिश्वत ।


 पूरब से आती खबर, करे कलेजा चाक ।
शूर्पनखा सरकार की, कटी हमेशा नाक ।  
कटी हमेशा नाक, करे न ठोस फैसला ।
घातक ज्वर का वार, गार्जियन हुआ बावला ।
सूझे नहीं उपाय, रही संतानें खाती ।
मारे है तड़पाय, खबर पूरब से आती । 


तम में उषा की किरण, झींगुर नीरव माँय |
प्यासा चाटे ओस कण, क्रोध हरे मुसकाय |

जंगल में इक पथ मिले, कोलाहल में मौन | 
जीवन के प्रतीति सी, कण कण में तू कौन | 

Friday, 16 March 2012

तन मन को देती जला, रहा निकम्मा ताप

BALAJI
 यात्री का परिवार जब,  कर स्वागत संतुष्ट ।
मेरा घर सोता मिले, बेगम मिलती रुष्ट ।
बेगम मिलती रुष्ट, नहीं टी टी की बेगम ।
बच्चे सब शैतान, हुई जाती वो बेदम ।
 नियमित गाली खाय, दिलाये निद्रा टेन्सन ।   
चार्ज-शीट है गिफ्ट,  मरे है पाय पेन्सन ।

अखिल विश्व में गूंजता, जब बरबंडी घोष ।
यू पी की बिगड़ी दशा, पर करते क्यूँ रोष ।
पर करते क्यूँ रोष, डूबती सदा तराई ।
नब्बे हैं बरबाद, करें दस यही पिटाई ।
डी पी यादव केस, इलेक्शन के पहले की ।
अब तो कुंडा राज, फतह नहले-दहले की ।।

यह चिंगारी मज़हब की."




 
लोकतंत्री-बिडम्बना, संख्याबल का खेल।
जाति-धर्म के बैंक से, चलती सत्ता रेल ।

चलती सत्ता रेल, लूट-लो नहीं झमेला ।
कभी न होगी जेल, जमा भेड़ों का रेला ।

नब्बे फीसद वोट, मिले मुस्लिम के दीदी ।
देते तीस-हजार, इसी से सपा खरीदी । 

रमिया का एक दिन.... (महिला दिवस के बहाने)


खटे सदा रमिया मगर, मिया बजाएं ढाप ।
तन मन को देती जला, रहा निकम्मा ताप ।  

रहा निकम्मा ताप, हाथ पे हाथ धरे है ।
जीवन का अभिशाप, मगर ना आह करे है ।

रमिया दारु लाय, पिलाती नाग नाथ को ।
साड़ी अगली बार, मीसती चली हाथ को ।।

रमिया घर-बाहर खटे
रमिया घर-बाहर खटे, मिया बजाएं ढाप ।
धर देती तन-मन जला, रहा निकम्मा ताप ।  

रहा निकम्मा ताप, चढ़ा कर देशी बैठा |
रहा बदन को नाप, खोल कर धरै मुरैठा ।

पति परमेश्वर मान, ध्यान न देती कमियां।
लेकिन पति हैवान, बिछाती बिस्तर रमिया ।।

Thursday, 15 March 2012

लूट-लाट में लटपटा, बने लटा जब लाट-

खुला पिटारा प्रणव का, मौनी देते दाद ।
महँगाई से त्रस्त जन, डर डर देते पाद ।

दर दर देते पाद, धरा नीचे से खिसके ।
सस्ता हुआ नमक, छिड़क दें जैसे सिसके ।

दो प्रतिशत दे और, जरा सा सह ले यारा ।
छिना और दो कौर, पीटता खुला पिटारा ।।  
छोटी बहना को करे, भैया फिर आश्वस्त ।
इक पुकार ड्योढ़ी खड़ा, चाहे जितना व्यस्त ।
चाहे जितना व्यस्त, घटे अब तोता मैना ।
राम राम उद्घोष, कहाँ अब चना-चबैना ।
बहे नीम से नीर, करे फिट नेता गोटी ।
जन्मदिवस पच्चास, मुबारक बहना छोटी ।।  
ताना-बाना से क्यूँ ताना, मार रहे हैं गुरुवर ।
ताना ना बाना पर सोहे, जो धारे हैं तनपर ।

हम सब के श्रद्धेय गुरूजी, शाश्वत-सत्य से वाकिफ -
ज्ञान लुटाएं राह दिखाएँ, करे निवेदन रविकर ।।   
डॉ. अनवर जमाल
अनवर जैसे श्रेष्ठ-सभ्य, मख को जानो यज्ञ ।
मख मक्का का रूप है, समझाएं स्थितिप्रज्ञ ।  

समझाएं स्थितिप्रज्ञ, यज्ञ यज से हज होता ।
बिना सिले दो वस्त्र, साधु सा हाजी ढोता ।

अनवर बड़े जमाल, दुष्ट को लगता गोटा ।
उलटी-पलटी चाल,  हाथ में थामे लोटा ।।

 लूट-लाट में लटपटा, बने लटा जब लाट।
देश भक्त की कर रहे, खड़ी हमेशा खाट ।


खड़ी हमेशा खाट, रिसर्चर हैं ये नामी ।
कालिख लगा ललाट, कराते क्यूँ बदनामी ।


  पार-दर्श सरकार, रहे जो राज-पाट में ।
पकड़े धंधेबाज,  लगे जो लूट-लाट में ।

माया वाले दें डरा, करें सभ्यता ख़त्म ।
साधुवाद है आपको, भरे हमारे जख्म ।।
नीति नियत सब ठीक है, बेशक आप जहीन ।
कान्ग्रेस की गत वही, भैंसी आगे बीन  ।।


भारतीय यह सभ्यता, ऐसे जाय विदेश ।
बच्चा नि:संतान को, डालर पाये देश ।
डालर पाए देश, नया यह धंधा आया
स्पर्म होंय नि:शेष, रास्ता नया दिखाया ।
परखनली संतान, मर्म को छू लेता है ।
सबसे बढ़िया दान, आय वी ऍफ़ देता है ।।


वीरूभाई द्वारा दी लाइनें पूरी की हैं --

धुंधली होती जा रही,यादें  पन्ना धाय |
मातु यशोदा भूल के, कान्हा मथुरा जाय |

कान्हा मथुरा जाय, कदम इक बड़ा बढाया |
सरोगेट अब माय, कोख को शॉप बनाया | 

गोरे वे नामर्द, टार्गेट उनको करते |
देते डालर चन्द, रास्ता सीधा धरते ||






श्रम-साधक खुद्दार हो, धन से सम्यक प्यार ।
करे निरीक्षण स्वयं का, सुखमय शांति अपार ।।

Wednesday, 14 March 2012

बड़े विरोधाभास थे, सहे अकेले ताप-


थोपा-थोपी का लगा, हिंदी पर आरोप ।
क्यूँ हिंदी 'अनुराग' का, झेलें 'शर्मा' कोप ।

झेलें 'शर्मा' कोप, तभी प्रत्युत्तर पटका ।
मन्ना दे अभिजीत, लाहिड़ी मलिक जूथिका।

बर्मन शान किशोर, सभी के हिंदी गाने ।
वन्दे मातरम सुन, इंडियन हुवे दिवाने ।।
हँसमुख जी हँसते रहें, हरदम हँसी-मजाक ।
लेकिन इक दिन कट गई, बीच मार्केट नाक ।

बीच मार्केट नाक, नमस्ते भाभी कह के ।
बच्चे तो गंभीर, मिले मुखड़ा ना चहके ।

बोलो हँसमुख कौन, बाप है इनका भाई ।
आप कहोगे नाम, कहे या इनकी माई ।।
लम्हों का सफ़र
शबनम करती गुप्तगू , दुपहर में चुपचाप ।
बड़े विरोधाभास थे, सहे अकेले ताप ।।




कविता कवि की कल्पना, बे-शक सपने पास ।
शब्दों की ठक-ठक सुने, किन्तु भाव का दास ।।

छले हकीकत आज की, सपने आते रास ।
 खड़ी मुसीबत न करें, घटे नहीं कुछ ख़ास ।।
पंडित जी के भूत को,  जोखुवा बुझा खूब ।
कारस्तानी कर्ज की, गई ढिठाई डूब ।


गई ढिठाई डूब, फँसे नारद के फन्दे ।
गन्दे धन्धे बन्द, हुए खुश सारे बन्दे ।

जोखुआ को आशीष, करें हम महिमा-मंडित ।
हुवे अधिक खुशहाल, कराते पूजा पंडित ।।


चाहे तारे तोड़ना, तोड़ ना मेरी चाह ।
रख इक टुकड़ा हौसला, वाह वाह भइ वाह ।। 
कहें इसी को प्यार,  सार यही है जिंदगी ।
 बहती भली बयार, मौन करूँ मैं बन्दगी ।।

स्वास्थ्य-लाभ अति-शीघ्र हो, तन-मन हो चैतन्य ।
दर्शन होते आपके, हुए आज हम धन्य ।

हुए आज हम धन्य, खिले घर-आँगन बगिया ।
खुशियों की सौगात, गात हो फिर से बढ़िया ।

रविकर सपने देख, आपकी रचना पढता ।
नित नवीन आयाम, समय दीदी हित गढ़ता ।। 

क्या होगा ?कब होगा? कैसे होगा ?
आशंका चिंता-भँवर, असमंजस में लोग ।
चिंतामणि की चाह में, गवाँ रहे संजोग । 

 गवाँ रहे संजोग, ढोंग छोडो ये सारे ।
मठ महंत दरवेश, खोजते मारे मारे ।

एक चिरंतन सत्य, फूंक चिंता की लंका ।
हँसों निरन्तर मस्त, रखो न मन आशंका ।।   


पाकिस्तान की बेटी का निकाह , अब हम करवाएंगे .......>>> संजय कुमार -
सोलह आने सत्य है, बात बड़ी दमदार ।
सोलह में से यह बड़ा, संस्कार  इस पार ।

संस्कार इस पार, बजे 'वीणा' शहनाई ।
हर्षित हिन्द अपार, बहू इक औरो आई ।
गई सानिया एक, बधाई लो अनजाने ।
पाक सोनिया बन, धाक हो सोलह आने ।।  




Tuesday, 13 March 2012

नहीं तनिक संयम, बनाए सबको भोगी -


चश्मे चेहरे पर चढ़े, हिले मूल के चूल |
दोष सहित भाये मनुज, मूल प्रकृती भूल ||



रंग अंग प्रत्यंग के, विश्लेषण से दंग ।
पाश्चात्य खुद नंग है, करे शान्ती भंग ।

 करे शान्ती भंग, तंग यह दुनिया होगी ।
नहीं तनिक संयम, बनाए सबको भोगी ।

घाव हरे कर लाल, लोटता डगर गुलाबी ।
काला करे भविष्य, ताकता पश्चिम लाबी ।।

यार तुम मिलो तो सही
Pen has it's own language....... 
इन्तजार की इन्तिहा, इम्तिहान इतराय ।
मिलो यार अब तो सही, विरह सही न जाय ।।
 
 अंकुश हटता बुद्धि से, भला लगे *भकराँध । 
 भूले भक्ष्याभक्ष्य जब, भावे विकट सडांध ।


भावे विकट सडांध, विसारे देह  देहरी ।
टूटे लज्जा बाँध, औंध नाली में पसरी ।।


नशा उतर जब जाय, होय खुद से वह नाखुश ।
   कान पकड़ उठ-बैठ, हटे फिर संध्या अंकुश ।।
*सड़ा हुआ अन्न

सदाबहार बौराए हुए !
बैसवारी baiswari 

मन की साथी आत्मा, जाओ तन को भूल ।
  तृप्त होय जब आत्मा, क्यूँ तन खता क़ुबूल ?

क्यूँ तन खता  क़ुबूल, उमरिया बढती जाए ।
नहीं आत्मा क्षरण, सुन्दरी मन बहलाए ।

  बुड्ढा होय अशक्त,  आत्मा भटका हाथी ।
ताक-झाँक बेसब्र, खोजता मन का साथी ।।



पहला ब्लॉगर मैं बना, संजय मेरे बाद ।
असल अरुण आतिथ्य का, पाते दोनों स्वाद ।


 पाते दोनों स्वाद, हुई  थोड़ी  बेइमानी ।
सपना बिट्टू साथ, करें संजय अगवानी ।


आऊं अगली बार, आप या आयें घर पर ।
मिले पूर्ण परिवार, बधाई देता रविकर ।।



जख्म जिसने थे दिये वो आ रही  है ।
बुझ दिये, सुन  हवा अस्तुति गा रही है । 

वह फूल लादे डाल जब सजदा करे--
वो मुहब्बत की बड़ी मलिका रही है ।।



सृजन-शीलता दे जला, तन-मन के खलु व्याधि ।
बुरे बुराई दूर हों, आधि होय झट आधि ।।


कितने हलवाई मिटे, कितने धंधे-बाज ।
नाजनीन पर मर-मिटे, जमे काम ना काज ।

जमे काम ना काज, जलेबी रोज जिमाये ।
गुपचुप गुपचुप भेल, मिठाई घर भिजवाये ।

फिर अंकल उस रोज, दिए जब केटरिंग ठेका ।
सत्य जान दिलफेंक, उसी क्षण दिल को फेंका ।।


बंजारा चलता गया, सौ पोस्टों के पार ।
प्रेम पूर्वक सींच के, देता ख़ुशी अपार ।

देता ख़ुशी अपार, पोस्ट तो ग्राम बन गए ।
पा जीवन का सार, ग्राम सुखधाम बन गए ।

सर मनसर कैलास, बही है गंगा धारा ।
पग पग चलता जाय, विज्ञ सज्जन बंजारा । 

दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक  
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Monday, 12 March 2012

मम्मी तेरी खास, बैठ सारे दिन चूमूँ ??

 

मिलन आस का वास हो, अंतर्मन में ख़ास ।
सुध-बुध बिसरे तन-बदन, गुमते होश-हवाश ।  

गुमते होश-हवाश, पुलकती सारी देंही ।
तीर भरे उच्छ्वास,  ताकता परम सनेही ।

वर्षा हो न जाय, भिगो दे पाथ रास का  ।
अब न मुझको रोक, चली ले मिलन आस का ।।






रोग ग्रसित तन-मन मिरा, संग में रोग छपास ।
मर्जी मेरी ही चले, नहीं डालनी घास ।

नहीं डालनी घास, बिठाकर बँहगी घूमूँ ।
मम्मी तेरी खास, बैठ सारे दिन चूमूँ । 

चाचा का क्या प्लाट, प्लाट परिवारी पाया ।
मूल्य बचाते  हम, व्यास जी को भिजवाया ।।  

 एकत्रित होना सही, अर्थ शब्द-साहित्य ।
 सादर करते वन्दना, बड़े-बड़ों के कृत्य ।
बड़े-बड़ों के कृत्य, करे गर किरपा हम पर ।
हम साहित्यिक भृत्य, रचे रचनाएं जमकर ।
गुरु-चरणों में बैठ, होय तन-मन अभिमंत्रित ।
छोटों की भी पैठ, करें शुरुवात एकत्रित ।।




 नहीं रहा जो कुछ भला, दीजै ताहि भुलाय ।
नई एक शुरुवात कर, सेतु नवीन बनाय ।। 

अपलक पढता रहा समझता, 
रहस्य सार गीता का |
श्लोक हो रहे रविकर अक्षर, 
है  आभार अनीता का || 

 Naaz
वाह-वाह क्या बात है, भला दुपट्टा छोर ।
इक मन्नत से गाँठती, छोरी प्रिय चितचोर ।

छोरी प्रिय चितचोर, मोरनी सी नाची है ।
कहीं ओर न छोर, मगर प्रेयसी साँची है ।

 रविकर खुद पर नाज, बना चाभी का गुच्छा ।
सूत दुपट्टा तान, होय सब अच्छा-अच्छा ।। 

  NEERAJ PAL 
मज़बूरी मन्जूर कर लिया, पीठ दिखा लो सूरज को ।
महबूबा को अंक भरे जब, धूप लगे न सूरत को ।
बनकर के परछाईं जीती, चिंता तो करनी ही है -
झूठ झकास जीत भी जाये, चुनना सच को इज्जत को ।।


सत्य कटुक कटु सत्य हो, गुरुवर कहे धड़ाक।
दल-दल में दलकन बढ़ी, दल-दलपति दस ताक।

दल-दलपति दस ताक, जमी दलदार मलाई ।
सभी घुसेड़ें नाक, लगे है पूरी खाई ।

खाई कुआँ बराय, करो मैया ना खट्टा ।
बैठे भाजप चील, मार न जांय झपट्टा ।।
  panchnama -
उदासीनता की तरफ, बढे जा रहे पैर ।
रोको रोको रोक लो,  करे खुदाई खैर ।   
करे खुदाई खैर, लगो योगी वैरागी ।
दुनिया से क्या वैर, भावना क्यूँकर जागी ।
दर्द हार गम जीत,  व्यथा छल आंसू हाँसी ।
जीवन के सब तत्व, जियो तुम छोड़ उदासी ।।

यही हकीकत है दुनिया की, साथी जरा निभाता चल ।
काँटे जिसके लिए बीनते,  अक्सर जाये वो ही खल ।
स्वारथ की इस खींचतान में, अपने हिस्से की खातिर 
चील-झपट्टा मार रहे सब, अपना चिंतन ही सम्बल ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक  
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सृष्टि सरीखी सजग सयानी, केश सुखाती माढ़ा


कविता-काढ़ा 
प्रतुल वशिष्ठ  

पागल पथिक प्रलापे पथ पर, प्रियंवदा के पाड़ा ।
सृष्टि सरीखी सजग सयानी, केश सुखाती माढ़ा ।
ध्यान भंग होते ही मारे,  डंक दुष्ट इक  हाड़ा ।
प्रियंवदा की चीख निकलते, पथिक ठीक हो ठाढ़ा ।।

 
पाँच लाख प्रतिवर्ष है, पाँच फूट दस इंच ।
शक्लो-सूरत क्या कहें, दोष रहित खूब टंच ।
दोष रहित खूब टंच, गुणागर बधू चाहिए ।
गौर-वर्ण,  ग्रेजुएट, नौकरी तभी आइये ।
झेलू मैं भी दंश, टी सी एस में बिटिया ।
किन्तु साँवला रंग, खड़ी कर देता खटिया ।।

मिटटी का पुतला पड़ा, मिटटी से क्या मीत ।
मूढ़मती पढ़ मर्सिया, चली आत्मा जीत ।

 
my expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन..इन्हें मेरी डायरी के कुछ पन्ने समझ लें..बिखरे से


दवा आज तक जिनसे पाई, वही दर्द जब देते हैं ।
गर्दन पर उस्तुरा फेर दें , क्यूँकर पहले सेते हैं ?
बकरे की माँ खैर मनाती, आज कहाँ पर बैठी है --
गैरों से क्या करूँ शिकायत,  अपने अपयश लेते हैं ।
गाफिल हैं ना व्यस्त, चलो चलें चर्चा करें,
शुरू रात की गश्त, हस्त लगें शम-दस्यु कुछ । 

कन्या के प्रति पाप में, जो जो भागीदार ।
रखे अकेली ख्याल जब, कैसे दे आभार ।  
कैसे दे आभार, किचेन में हाथ बटाई ।
ढो गोदी सम-आयु, बाद में रुखा खाई ।
हो रविकर असमर्थ,  दबा दें बेटे मन्या *। 
  सही उपेक्षा रोज,  दवा दे वो ही कन्या । 
*गर्दन के पीछे की शिरा
  पूर्वांचल ब्लॉग लेखक मंच 
खट-खट खट खट अँगुली करती, पट पट पट पट अक्षर ।
युद्धभूमि वीरों का आसन, वहाँ करे क्या मच्छर ।
आल्हा गाने वालें तोड़ें,  इक झटके में तख्ता 
बहुत बहुत एहसान सुनाया, करूँ वन्दना सादर ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक  
dineshkidillagi.blogspot.com