बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा-
लासा मंजर में लगा, आह आम अरमान | 
मौसम दे देता दगा, है बसन्त हैरान | 
है बसन्त हैरान, कोयलें रोज लुटी हैं | 
गिरगिटान मुस्कान, लोमड़ी बड़ी घुटी है | 
गीदड़ की बारात, दिखाता सिंह तमाशा | 
बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा || 
आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया-
भन्नाता बिन्नी दिखा, सुस्ताता अरविन्द | 
उकसाता योगेन्द जब, उकताता यह हिन्द | 
उकताता यह हिन्द, मुफ्तखोरों की दुनिया | 
आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया | 
दीन-हीन सरकार, विपक्षी है चौकन्ना | 
टपकाए नित लार, जाय रविकर जी भन्ना || 
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रट्टू तोते कोष हित, कोस रहे उल्लूक |
काँव काँव कौवे करें, जान लाश में फूँक |
जान लाश में फूँक, बड़े अय्यार जमाते |
बार बार हो चूक, लात फिर फिर खा जाते |
जोकर की औलाद, किराए का यह टट्टू |
करे चमचई रोज, बेतुकी बातें रट्टू ||
काँव काँव कौवे करें, जान लाश में फूँक |
जान लाश में फूँक, बड़े अय्यार जमाते |
बार बार हो चूक, लात फिर फिर खा जाते |
जोकर की औलाद, किराए का यह टट्टू |
करे चमचई रोज, बेतुकी बातें रट्टू ||
हिन्दी संस्थानों पर कब्ज़ा,कर लेंगे उल्लू के पट्ठे - सतीश सक्सेना सतीश सक्सेना मेरे गीत ! उल्लू के पट्ठे लड़ें, अब से युद्ध तमाम | ताम-झाम हर-मंच का, देता यह पैगाम | देता यह पैगाम, चमचई आदर पाये | बनते बिगड़े काम, चरण-चुम्बन गर आये | रविकर घोंचू-मूर्ख, धरे पानी इक चुल्लू | डूबे अवसर पाय, बड़ा ही अहमक उल्लू || भावी रहे सुधार, शहर ला दादा-दादी-
खिले खिले बच्चे मिले, रहे खिलखिला रोज ।  
बुझे-बुझे माँ-बाप पर, रहे मदर'सा खोज ।  
रहे मदरसा खोज, घूस की दुनिया आदी।  
भावी रहे सुधार, शहर ला दादा-दादी।  
पैतृक घर दे बेंच, आय उपयुक्त राशि ले ।   
करे सुरक्षित सीट, आज यूँ मिलें दाखिले ॥  
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सड़क छाप हैं आप के, रविकर क्रिया-कलाप |
मुतवा देते सड़क पर, क्यूँ मंत्री जी आप |
क्यूँ मंत्री जी आप, कहाँ थे महिला दस्ता |
घुसते रात-विरात, रोक महिला का रस्ता |
बहुत हुआ उत्पात, रात दिन करते हड़बड़ |
करिये तनिक सुधार, अन्यथा जाओगे सड़ ||
मुतवा देते सड़क पर, क्यूँ मंत्री जी आप |
क्यूँ मंत्री जी आप, कहाँ थे महिला दस्ता |
घुसते रात-विरात, रोक महिला का रस्ता |
बहुत हुआ उत्पात, रात दिन करते हड़बड़ |
करिये तनिक सुधार, अन्यथा जाओगे सड़ ||
कब कहाँ कैसे बदलता है आदमीtarun_kt Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.." अधजल गगरी छलकती, जन-गण मन छल जाय | बजे घना थोथा चना, पाप घड़ा मुस्काय | पाप घड़ा मुस्काय, खाय अभिलाषा सारी | शुरू वही व्यवसाय, वही आई बीमारी | अंधे हाथ बटेर, करे चौपट यह नगरी | तू डाल डाल मैं पात, आप की अधजल गगरी || पाया गाँधी सदन से, जो लर्निंग लायसेन्स
पाया गाँधी सदन से, जो लर्निंग लायसेन्स | 
बैठा ड्राइविंग सीट पर, दिखी सवारी टेंस | 
दिखी सवारी टेंस, लेंस आँखों पर मोटा | 
हरिश्चंद का पूत, किन्तु अनुभव का टोटा | 
यमुना ब्रिज पर जाम, देख बन्दा घबराया | 
देता वहीँ डुबाय, सुबह अखबार छपाया || 
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सदियों से चम्पी करे, पंजे नोचें बाल-सदियों से चम्पी करे, पंजे नोचें बाल | 
कंघी बेंचे वह धड़ा, गंजे करें सवाल | 
गंजे करें सवाल, नया हेयर कट पाया | 
हर दिन अति उम्मीद, दीप नित नया जलाया | 
यह गंजों का देश, राज सत्ता को कोसे | 
दीन हीन के क्लेश, रहे यूँ ही सदियों से || 
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सपने नयनों में पले, वाणी में अरदास-
सपने नयनों में पले, वाणी में अरदास | 
बुद्धि बनाये योजना, करे कर्म तनु ख़ास | 
करे कर्म तनु ख़ास, पूर्ण विश्वास भरा हो | 
शत-प्रतिशत उद्योग, भाग्य को तनिक सराहो | 
पाय सफलता व्यक्ति, लक्ष्य पा जाये अपने | 
रविकर इच्छा-शक्ति, पूर्ण कर देती सपने || 
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पाया गाँधी सदन से, जो लर्निंग लायसेन्स |
ReplyDeleteबैठा ड्राइविंग सीट पर, दिखी सवारी टेंस |
बहुत खूब..
सुन्दर सूत्र भी
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय , धन्यवाद
ReplyDelete|| जय श्री हरिः ||
अनूठे लिंक देने का अनूठा अंदाज़ , आभार कविवर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार।