रजनीश के झा (Rajneesh K Jha)
होते हरदम हादसे, हरदम हाहाकार |
भूखे खाके नहाके, जल थल नभ में मार | जल थल नभ में मार, सैकड़ों हरदिन मरते | मस्त रहे सरकार, सियासतदान अकड़ते | आतंकी चुपचाप, देखते पब्लिक रोते | रोकें क्रिया-कलाप, हादसे खुद ही होते || |
नौबत-बाजे द्वार पर, किन्तु कँटीली बाड़ |
काट फिदायीन घुस रहे, बरबस मौका ताड़ | बरबस मौका ताड़, काट दे प्रहरी-सैनिक | तोड़े गोले दाग, सीजफायर वो दैनिक | केवल कड़े बयान, यहाँ बाकी नहिं कुब्बत | कल देते गर मार, आज नहिं होती *नौबत ||
*दुर्दशा
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सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी-
गुड्डी-गुड़ी गुमान में, ऊँची भरे उड़ान |
पेंच लड़ाने लग पड़ी, दुष्फल से अन्जान | दुष्फल से अन्जान, जान जोखिम में डाली | आये झँझावात, काट दे माँझा-माली | लग्गी लेकर दौड़, लगाने लगे उजड्डी | सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी || |
सुंदर सृजन,टिप्पणी के रूप में बेहतरीन कुंडलिया,,,
ReplyDeleteRECENT POST : सुलझाया नही जाता.
तब क्या कहा जाये जब पोस्ट से बेहतर टिप्पणी लगे :)
ReplyDeleteबहुत खूब..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ,रक्षा बंधन की बधाई ओर शुभकामनायें ...
ReplyDeleteकुण्डलिया छंद में आपने अपने दुख को पूरी करूणा के साथ साझा किया है। मार्मिक।
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