Monday, 19 August 2013

होते हरदम हादसे, हरदम हाहाकार-




My ImageAuthor रजनीश के झा (Rajneesh K Jha)

 होते हरदम हादसे, हरदम हाहाकार |
भूखे खाके नहाके, जल थल नभ में मार |

जल थल नभ में मार, सैकड़ों हरदिन मरते |
मस्त रहे सरकार, सियासतदान अकड़ते |

आतंकी चुपचाप, देखते पब्लिक रोते  |
रोकें क्रिया-कलाप, हादसे खुद ही होते ||

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव"
अंक-29

नौबत-बाजे द्वार पर, किन्तु कँटीली बाड़ |
काट फिदायीन घुस रहे, बरबस मौका ताड़ |

बरबस मौका ताड़, काट दे प्रहरी-सैनिक |
तोड़े गोले दाग, सीजफायर वो दैनिक |

केवल कड़े बयान, यहाँ बाकी नहिं कुब्बत |
कल देते गर मार, आज नहिं होती *नौबत ||

*दुर्दशा


सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी-

गुड्डी-गुड़ी गुमान में, ऊँची भरे उड़ान |
पेंच लड़ाने लग पड़ी, दुष्फल से अन्जान |

दुष्फल से अन्जान, जान जोखिम में डाली |
आये झँझावात, काट दे माँझा-माली |

लग्गी लेकर दौड़, लगाने लगे उजड्डी |
सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी ||

5 comments:

  1. सुंदर सृजन,टिप्पणी के रूप में बेहतरीन कुंडलिया,,,

    RECENT POST : सुलझाया नही जाता.

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  2. तब क्या कहा जाये जब पोस्ट से बेहतर टिप्पणी लगे :)

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  3. बहुत ही सुन्दर ,रक्षा बंधन की बधाई ओर शुभकामनायें ...

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  4. कुण्डलिया छंद में आपने अपने दुख को पूरी करूणा के साथ साझा किया है। मार्मिक।

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