रविकर पक्का मूर्ख, तभी तो रोटी खोई -
कोई टी वी बाँटता, कांगरेस धन अन्न |
लैप टॉप बाँटे सपा, हुई भाजपा सन्न |
हुई भाजपा सन्न, उठाये खुद भी झोले |
मुट्ठी दोनों भींच, राम की जय जय बोले -
रविकर पक्का मूर्ख, तभी तो रोटी खोई |
छोड़े टी वी अन्न, कहाँ दुनिया में कोई ||
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राजा रोजा ना करे, पर करता इफ्तार |
मिले फैसले का सिला, वोट बैंक आधार |
वोट बैंक आधार, खजाना चला लुटाता |
बाड़ा कर तैयार, सुनिश्चित जीत कराता |
मिडिल क्लास पर मार, बजा के उसका बाजा |
रहा वसूल लगान, कबाड़े धरती राजा ||
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(१ ३ )काची काया मन अथिर ,थिर थिर काम करंत , ज्यों - ज्यों नर निधड़क ,फिरे त्यों त्यों काल हसंतVirendra Kumar Sharma
ram ram bhai
कबिरा को ही मुँह-बिरा, चिढ़ा रहा धर्मांध | करता आडम्बर निरा, तन मन बेड़ी-बाँध | तन मन बेड़ी-बाँध, भटकता मन्दिर महजिद | जिद में है इन्सान, भूलता अम्मा वालिद | मन पर चाबुक मार, आज रविकर को हांको |
भूल गया है सीख, भूलता है कबिरा को |
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आह वजीरे-आजमी, आहा आजम खान
-रविकर "कुछ कहना है" आह वजीरे-आजमी, आहा आजम खान | रहे धरे के धरे कुल, मन्सूबे आहवान | मन्सूबे आह्वान, रही रौनक सूबे में | सोच नफा-नुक्सान, हुवे खुश दोनों खेमे | राम-लला फिलहाल, विराजे सरयू तीरे | लगा पुराना टेंट, भरें वह आह, वजीरे || |
विवादास्पद सुन बयाँ, जन-जन जाए चौंक |
नामुराद वे आदतन, करते पूरा शौक |
करते पूरा शौक, छौंक शेखियाँ बघारें |
बात करें अटपटी, हमेशा डींगे मारें |
रखते सीमित सोच, ओढ़ते छद्म लबादा |
खोलूं इनकी पोल, करे रविकर कवि वादा |
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जाने मरजीना कहाँ, चली बांटने अन्न-
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रविकर जी ,आपकी उद्भावनाएँ कमाल की हैं और मौलिक भी . कल्पना को क्या कहें, थान सारी की तहें उघाड़ डालती है !
ReplyDeleteकरेक्शन- थान की सारी तहें
Deleteवाह बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना !!
ReplyDeleteरविकर पक्का मूर्ख
ReplyDeleteमान लिया भाई
तभी तो हमने भी
दोस्ती है बनाई :D :D