महेन्द्र श्रीवास्तव
(1)
जित्ता ज्यादा जघन्यता, जित्ते ज्यादा जंग | उत्ती ज्यादा मुर्गियां, उत्ते ज्यादा रंग | उत्ते ज्यादा रंग, हुआ मेहमान हमारा | होय पुलसिया जीत, नहीं पर टुंडा हारा | बदले नहीं प्रवृत्ति, निवृत्ति सेवा से प्यादा | मुर्ग मुसल्लम खाय, दगे बम जित्ता ज्यादा || (2) जन्नत में देखो गया, टुंडा कर्म करीम | काफिर मारे चार सौ, लड़वा राम-रहीम | लड़वा राम-रहीम, मिलेंगे नौकर-चाकर | सुख सुविधाएँ ढेर, रखे लाकर में लाकर | करिए रविकर मौज, होयगी पूरी मन्नत | करवा बम विस्फोट, मिले भारत में जन्नत || |
चुप्पा-चेंचर चौकसी, करे ख़ुदकुशी नोट |
उड़े हँसी उड़ती रहे, चलो बटोरें वोट |
चलो बटोरें वोट, योजना राम भरोसे |
होती बन्दर बाँट, गरीबी खुद को कोसे |
होता बंटाधार, फूलकर डालर कुप्पा |
चेंचर की बकवाद, बैठ कर ताके चुप्पा ||
उड़े हँसी उड़ती रहे, चलो बटोरें वोट |
चलो बटोरें वोट, योजना राम भरोसे |
होती बन्दर बाँट, गरीबी खुद को कोसे |
होता बंटाधार, फूलकर डालर कुप्पा |
चेंचर की बकवाद, बैठ कर ताके चुप्पा ||
गिरता है गिरता रहे, पर पाए ना पार |
रूपया उतना ना गिरे, जितना यह सरकार | जितना यह सरकार, नरेगा नरक मचाये | बस पनडुब्बी रेल, मील मिड डे भी खाए | लेता फ़ाइल लील, सदन में भुक्खड़ फिरता | मँहगाई में डील, रुपैया नेता गिरता || |
उल्लूक टाईम्स
आई ख़बरें दुखभरी, किन्तु बेखबर देश |
मौतें होती ही रहें, घटना कहाँ विशेष |
घटना कहाँ विशेष, तवज्जो क्योंकर देता |
हों दर्जन भर मौत, तभी बोलेंगे नेता |
मरें कहीं पर छात्र, कहीं पनडुब्बी खाई |
बढे अंधविश्वास, रेल भी करे कटाई ||
आई ख़बरें दुखभरी, किन्तु बेखबर देश |
मौतें होती ही रहें, घटना कहाँ विशेष |
घटना कहाँ विशेष, तवज्जो क्योंकर देता |
हों दर्जन भर मौत, तभी बोलेंगे नेता |
मरें कहीं पर छात्र, कहीं पनडुब्बी खाई |
बढे अंधविश्वास, रेल भी करे कटाई ||
कार्टून :- और शेर डूबता चला गया...
शेर डूबता दे बता, सिंह देवता बूढ़ ।
उत्तर ढूँढे ना मिले, अर्थशास्त्र का गूढ़ । अर्थशास्त्र का गूढ़, बैठ के अब झक मारें । सत्ता सर के तीर, तीर से पब्लिक तारें । तारे गया दिखाय, खाय के सिंह ऊबता । आज ख़ुदकुशी भाय, तभी तो शेर डूबता ॥ |
करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक-
दीमक मजदूरी करे, चाट चाट अविराम |
रानी महलों में फिरे, करे क़ुबूल सलाम |
रानी महलों में फिरे, करे क़ुबूल सलाम |
करे क़ुबूल सलाम, कोयला काला खलता |
बचती फिर भी राख, लाल होकर जो जलता |
लेकिन रानी तेज, और वह पूरा अहमक |
करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक ||
ram ram bhai
गीता के सन्देश से, चले बचाने देश | आखिर लेने क्यूँ चले, मोहन से विद्वेष | मोहन से विद्वेष, दिखी मुद्रा भी भ्रामक | उठापटक का दौर, मौन-मन रहता अहमक | फ़ाइल गुम करवाय, रहा करवाय सुबीता | रिक्त हो रहा कोष, दुशासन कोसे गीता | |
गूढ़ोत्तर स्वातन्त्र्य का, नित देता है क्लेश |
अजब कश्मकश में दिखे, मोहन-मोदी देश |
अजब कश्मकश में दिखे, मोहन-मोदी देश |
मोहन-मोदी देश, दलाली लाली लाये |
आबादी निर्बुद्धि, जाति सरकार बनाये |
बायल सारे वार, निगाहें माँ-पुत्तर पर |
फिर से बंटाधार, यही रविकर गूढोत्तर ||
दर्पण बोले झूठ कब, कब ना खोले भेद |
साया छोड़े साथ कब, यादें जरा कुरेद |
यादें जरा कुरेद, दोस्त पाया क्या सच्चा |
इन दोनों सा ढूँढ़, कभी ना खाए गच्चा |
रखिये इन्हें सहेज, कीजिये पूर्ण समर्पण | हरदम साया साथ, सदा सच बोले दर्पण || |
सुन्दर लिखा है !!
ReplyDeleteउत्ते ज्यादा रंग, हुआ मेहमान हमारा |
ReplyDeleteहोय पुलसिया जीत, नहीं पर टुंडा हारा |
Badhiya sir ji !
बढिया लिंक्स
ReplyDeleteमुझे भी स्थान देने के लिए आभार
बहुत सुंदर सृजन,,,
ReplyDeleteRECENT POST : सुलझाया नही जाता.
बहुत सुंदर कुछ अलग !
ReplyDeleteबहुत खूब सर जी .
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