बित्ता बित्ता बढ़ रहा, घाटा नित वित्तीय ।
गिरती मुद्रा देख के, जन-मुद्रा दयनीय ।
जन-मुद्रा दयनीय, नहीं लत-हालत बदले ।
दल दल दले-दलान, देश में ऊँचा पद ले ।
शास्त्री अर्थ अनर्थ, गिरेंगे देखो कित्ता ।
नेता नापे मील, रुपैया बित्ता बित्ता।|
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आई ख़बरें दुखभरी, किन्तु बेखबर देश |
मौतें होती ही रहें, घटना कहाँ विशेष | घटना कहाँ विशेष, तवज्जो क्योंकर देता | हों दर्जन भर मौत, तभी बोलेंगे नेता | मरें कहीं पर छात्र, कहीं पनडुब्बी खाई | बढे अंधविश्वास, रेल भी करे कटाई || |
दीमक मजदूरी करे, चाट चाट अविराम |
रानी महलों में फिरे, करे क़ुबूल सलाम | करे क़ुबूल सलाम, कोयला काला खलता | बचती फिर भी राख, लाल होकर जो जलता | लेकिन रानी तेज, और वह पूरा अहमक | करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक || |
गूढ़ोत्तर स्वातन्त्र्य का, नित देता है क्लेश |
अजब कश्मकश में दिखे, मोहन-मोदी देश | मोहन-मोदी देश, दलाली लाली लाये | आबादी निर्बुद्धि, जाति सरकार बनाये | बायल सारे वार, निगाहें माँ-पुत्तर पर | फिर से बंटाधार, यही रविकर गूढोत्तर || |
अमेरिकन डॉलर और भारतीय रूपये की असली कहानी
Akshay kumar ojha
गुर्राता डालर खड़ा, लड़ा ठोकता ताल | रुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल | पाए कौन निकाल, बहे दल-दल में नारा | मगरमच्छ सरकार, अनैतिक बहती धारा | घटते यहाँ गरीब, देखिये फिर भी तुर्रा | पानी में दे ठेल, भैंसिया फिर तू गुर्रा || |
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (23-08-2013) को "ईश्वर तू ऐसा क्यों करता है" (शुक्रवारीय चर्चामंचःअंक-1346) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'