कैंसर के विरोधाभास
Vikesh Badola
राई का करते खड़ा, ऊँचा बड़ा पहाड़ |
हाड़-तोड़ जो श्रम करें, उनकी मुश्किल ताड़ | उनकी मुश्किल ताड़, बड़ा जीवन है मुश्किल | गर अपना बीमार, कहाँ से भरते वे बिल | बड़े बड़े ये लोग, बड़ी ही करें कमाई | उठा सके ये खर्च, रूपिया रोग हराई || |
उनको सुवर हराम, अहिंसा अपने आड़े-
"पक्के-बाड़े" में पिले , जबसे सु-वर तमाम ।
मल-मलबा से माल तक, खाते सुबहो-शाम ।
खाते सुबहो-शाम, गगन-जल-भूमि सम्पदा ।
करें मौज अविराम, इधर बढ़ रही आपदा ।
उनको सुवर हराम, अहिंसा अपने आड़े ।
"मत" हिम्मत से मार, शुद्ध कर "पक्के-बाड़े" ।।
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बित्ता बित्ता बढ़ रहा, घाटा नित वित्तीय ।
गिरती मुद्रा देख के, जन-मुद्रा दयनीय ।
जन-मुद्रा दयनीय, नहीं लत-हालत बदले ।
दल दल दले-दलान, देश में ऊँचा पद ले ।
शास्त्री अर्थ अनर्थ, गिरेंगे देखो कित्ता ।
नेता नापे मील, रुपैया बित्ता बित्ता।|
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बहुत बढ़िया संयोजन है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (23-08-2013) को "ईश्वर तू ऐसा क्यों करता है" (शुक्रवारीय चर्चामंचःअंक-1346) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया सेतु पुनरुत्पादन शानदार रहा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !