उल्लूक टाईम्स
छोटी मोटी जगह पर, करता खुद को बन्द | बिना रीढ़ के जीव का, अपना ही आनन्द | अपना ही आनन्द, चरण चुम्बन में माहिर | भरे पड़े छल-छंद, किन्तु न होते जाहिर | चले समय के साथ, लाल कर अपनी गोटी | ऊँचा झंडा हाथ, बात क्या छोटी मोटी ?? |
रविकर
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हमारा देश बिना बाड़ के खेत जैसा हो गया हैं !!
पूरण खण्डेलवाल
शंखनाद -
बिना बाड़ के हो गया, अपना देश महान | बाड़-पडोसी खा रही, नित्य खेत-मैदान | नित्य खेत-मैदान, बाड़ उनकी यह घातक | करते हम आराम, आदतें बड़ी विनाशक | चेतो नेता मूढ़, जाय नित शत्रु ताड़ के | विषय बहुत ही गूढ़, रहो मत बिना बाड़ के ||
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बिना रीढ़ के प्राणी का अपना ही आनन्द,
ReplyDeleteमाँ बहन बेच कर राज करे सानंद..
लाजवाब कुण्डलियाँ !!
सुन्दर कुंडलियों नें सूत्रों को रोचक बना दिया !
ReplyDeleteसादर आभार !!
कुंडलियाँ रविकर द्वारा
ReplyDeleteजब लिख दी जाती है
सूत्रो की चाँदी बन आती है
बहुत सुन्दर कुंडलियों ..
ReplyDeleteवाह !!! बहुत सुंदर कुण्डलियाँ ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : पाँच( दोहे )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए धन्यवाद।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (26-08-2013) को सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी :चर्चामंच 1349में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत अच्छी कुंडलियां पढ़ने को मिलीं, धन्यवाद.
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