चलो मोदी को नहीं लाते..................बलवीर कुमार
yashoda agrawal
कसके धो कर रख दिया, पूरा दिया निचोड़ |
मुद्रा हुई रसातली, भोगें नरक करोड़ | भोगें नरक करोड़ , योजना बनी लूट की | पाई पाई जोड़, गरीबी लगा टकटकी | पर पाए ना लाभ, व्यवस्था देखे हँस के | मोदी पर संताप, मचाती सत्ता कसके || |
आभार !
कालीपद प्रसाद
मेरे विचार मेरी अनुभूति
सर जी मंगल कामना, मना हर्ष उल्लास |
दौहित्री सह पौत्र का, आना आये रास |
आना आये रास, हुवे खुश बाबा नाना |
ख़त्म हुआ अवकाश, व्यस्त हो गया जमाना |
खेले कूदें साथ, चले अब अपनी मर्जी-
पकड़ हाथ में हाथ, मजे से घूमो सरजी |
सर जी मंगल कामना, मना हर्ष उल्लास |
दौहित्री सह पौत्र का, आना आये रास |
आना आये रास, हुवे खुश बाबा नाना |
ख़त्म हुआ अवकाश, व्यस्त हो गया जमाना |
खेले कूदें साथ, चले अब अपनी मर्जी-
पकड़ हाथ में हाथ, मजे से घूमो सरजी |
कैंसर के विरोधाभास
Vikesh Badola
राई का करते खड़ा, ऊँचा बड़ा पहाड़ |
हाड़-तोड़ जो श्रम करें, उनकी मुश्किल ताड़ | उनकी मुश्किल ताड़, बड़ा जीवन है मुश्किल | गर अपना बीमार, कहाँ से भरते वे बिल | बड़े बड़े ये लोग, बड़ी ही करें कमाई | उठा सके ये खर्च, रूपिया रोग हराई || |
उनको सुवर हराम, अहिंसा अपने आड़े-
"पक्के-बाड़े" में पिले , जबसे सु-वर तमाम ।
मल-मलबा से माल तक, खाते सुबहो-शाम ।
खाते सुबहो-शाम, गगन-जल-भूमि सम्पदा ।
करें मौज अविराम, इधर बढ़ रही आपदा ।
उनको सुवर हराम, अहिंसा अपने आड़े ।
"मत" हिम्मत से मार, शुद्ध कर "पक्के-बाड़े" ।।
|
करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक-
दीमक मजदूरी करे, चाट चाट अविराम |
रानी महलों में फिरे, करे क़ुबूल सलाम | करे क़ुबूल सलाम, कोयला काला खलता | बचती फिर भी राख, लाल होकर जो जलता | लेकिन रानी तेज, और वह पूरा अहमक | करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक || |
अमेरिकन डॉलर और भारतीय रूपये की असली कहानी
Akshay kumar ojha
गुर्राता डालर खड़ा, लड़ा ठोकता ताल | रुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल | पाए कौन निकाल, बहे दल-दल में नारा | मगरमच्छ सरकार, अनैतिक बहती धारा | घटते यहाँ गरीब, देखिये फिर भी तुर्रा | पानी में दे ठेल, भैंसिया फिर तू गुर्रा || |
पोस्टों पर चुटीली टिप्पणियाँ पढ़कर मन प्रसन्न हो गया।
ReplyDeletebehtareen..
ReplyDeleteक्या बात बधाई!
ReplyDeleteआभार रविकर भैय्या
ReplyDeleteउम्दा......
साधुवाद
सादर
आदरणीय रविकर जी ! बहुत उम्दा रचनाओं का संग्रह .मेरी रचना को सामिल करने के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्यंग्य है बे -शर्म सारे के सारे गंजे हैं .
ReplyDeleteहमेशा की तरह शानदार..
ReplyDeleteकसके धो कर रख दिया, पूरा दिया निचोड़ |
ReplyDeleteमुद्रा हुई रसातली, भोगें नरक करोड़ |
भोगें नरक करोड़ , योजना बनी लूट की |
पाई पाई जोड़, गरीबी लगा टकटकी |
पर पाए ना लाभ, व्यवस्था देखे हँस के |
मोदी पर संताप, मचाती सत्ता कसके ||
जवाब नहीं इस लिखाड़ी का .
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर !
गुर्राता डालर खड़ा, लड़ा ठोकता ताल |
ReplyDeleteरुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल |
बहुत सही कुंडिलयाँ । हाल बुरे हैं ।