Thursday, 22 August 2013

मुद्रा हुई रसातली, भोगें नरक करोड़-




चलो मोदी को नहीं लाते..................बलवीर कुमार


yashoda agrawal 


कसके धो कर रख दिया, पूरा दिया निचोड़ |
मुद्रा हुई रसातली, भोगें नरक करोड़ |

भोगें नरक करोड़ , योजना बनी लूट की |
पाई पाई जोड़, गरीबी लगा टकटकी |

पर पाए ना लाभ, व्यवस्था देखे हँस के |
मोदी पर संताप, मचाती सत्ता कसके ||

आभार !

कालीपद प्रसाद 
 मेरे विचार मेरी अनुभूति
सर जी मंगल कामना, मना हर्ष उल्लास |
दौहित्री सह पौत्र का, आना आये रास |


आना आये रास, हुवे खुश बाबा नाना |
ख़त्म हुआ अवकाश, व्यस्त हो गया जमाना |


खेले कूदें साथ, चले अब अपनी मर्जी-
पकड़ हाथ में हाथ, मजे से घूमो सरजी |

कैंसर के विरोधाभास


Vikesh Badola 

 राई का करते खड़ा, ऊँचा बड़ा पहाड़ |
हाड़-तोड़ जो श्रम करें, उनकी मुश्किल ताड़ |

उनकी मुश्किल ताड़, बड़ा जीवन है मुश्किल |
गर अपना बीमार, कहाँ से भरते वे बिल |

बड़े बड़े ये लोग, बड़ी ही करें कमाई |
उठा सके ये खर्च, रूपिया रोग हराई ||


उनको सुवर हराम, अहिंसा अपने आड़े-

"पक्के-बाड़े" में पिले , जबसे सु-वर तमाम । 

मल-मलबा से माल तक, खाते सुबहो-शाम । 


खाते सुबहो-शाम, गगन-जल-भूमि सम्पदा ।

करें मौज अविराम, इधर बढ़ रही आपदा । 


उनको सुवर हराम, अहिंसा अपने आड़े । 

"मत" हिम्मत से मार, शुद्ध कर "पक्के-बाड़े" ।।


करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक-

दीमक मजदूरी करे, चाट चाट अविराम |
रानी महलों में फिरे, करे क़ुबूल सलाम |

करे क़ुबूल सलाम, कोयला काला खलता |
बचती फिर भी राख, लाल होकर जो जलता |

लेकिन रानी तेज, और वह पूरा अहमक |
करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक ||

 अमेरिकन डॉलर और भारतीय रूपये की असली कहानी


Akshay kumar ojha 


गुर्राता डालर खड़ा, लड़ा ठोकता ताल |
रुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल |


पाए कौन निकाल, बहे दल-दल में नारा |
मगरमच्छ सरकार, अनैतिक बहती धारा |

घटते यहाँ गरीब, देखिये फिर भी तुर्रा |
पानी में दे ठेल, भैंसिया फिर तू गुर्रा ||



10 comments:

  1. पोस्टों पर चुटीली टिप्पणियाँ पढ़कर मन प्रसन्न हो गया।

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  2. आभार रविकर भैय्या
    उम्दा......
    साधुवाद
    सादर

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  3. आदरणीय रविकर जी ! बहुत उम्दा रचनाओं का संग्रह .मेरी रचना को सामिल करने के लिए आभार

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  4. बहुत सुन्दर व्यंग्य है बे -शर्म सारे के सारे गंजे हैं .

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  5. हमेशा की तरह शानदार..

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  6. कसके धो कर रख दिया, पूरा दिया निचोड़ |
    मुद्रा हुई रसातली, भोगें नरक करोड़ |

    भोगें नरक करोड़ , योजना बनी लूट की |
    पाई पाई जोड़, गरीबी लगा टकटकी |

    पर पाए ना लाभ, व्यवस्था देखे हँस के |
    मोदी पर संताप, मचाती सत्ता कसके ||

    जवाब नहीं इस लिखाड़ी का .

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  7. बहुत सुन्दर
    सादर !

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  8. गुर्राता डालर खड़ा, लड़ा ठोकता ताल |
    रुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल |

    बहुत सही कुंडिलयाँ । हाल बुरे हैं ।

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