हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े-
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दर्पण बोले झूठ कब, कब ना खोले भेद |
साया छोड़े साथ कब, यादें जरा कुरेद |
यादें जरा कुरेद, दोस्त पाया क्या सच्चा |
इन दोनों सा ढूँढ़, कभी ना खाए गच्चा | रखिये इन्हें सहेज, कीजिये पूर्ण समर्पण | हरदम साया साथ, सदा सच बोले दर्पण || |
होते हरदम हादसे, हरदम हाहाकार | भूखे खाके नहाके, जल थल नभ में मार | जल थल नभ में मार, सैकड़ों हरदिन मरते | मस्त रहे सरकार, सियासतदान अकड़ते | आतंकी चुपचाप, देखते पब्लिक रोते | रोकें क्रिया-कलाप, हादसे खुद ही होते || |
हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े-
ReplyDeleteगिरता है गिरता रहे, पर पाए ना पार |
रूपया उतना ना गिरे, जितना यह सरकार
दोनों को साथ साथ गिरना है जीना और मरना रुपया और सरकार