Amrita Tanmay
देख कुदरती करिश्मा, मर्यादित अनुनाद |
आय हाय क्या बात है, चिड़ियाघर आबाद |
चिड़ियाघर आबाद, जगह पाए ना मानव |
पंक्ति पंक्ति पर दाद, बड़ा बढ़िया यह अनुभव |
साधुवाद हे देवि, मस्त जो कविता करती |
बढ़िया है सन्देश, करिश्मा देख कुदरती ||
इस भ्रष्टाचार और अपराध पोषित व्यवस्था को बदलनें का रास्ता आखिर क्या है !!
पूरण खण्डेलवाल
![]() हिस्ट्री शीटर हैं भरे, एक तिहाई हाय | संसद की गरिमा गिरी, पर नेता मुसकाय | पर नेता मुसकाय, दिखाए सबको ठेंगा | ले चुनाव में भाग, करे जन-गन मन-रेगा | केस साल दर साल, सुलझ ना पाए मिस्ट्री | बदल रहा भूगोल, बदल ले अपनी हिस्ट्री || |
कर लो इस्तेमाल, प्रान्त वर्गाकृति बाँटो-
बाँटो फिर से देश को, करके प्रान्त समान |
जाति धर्म भाषा विविध, डालें नित व्यवधान | डालें नित व्यवधान, बँटा अफरीका जैसे | रखो मेज पर मैप, खींच रेखाएं वैसे | देशान्तर-अक्षांश, व्यर्थ क्यूँ रख कर चाटो |
कर लो इस्तेमाल, प्रान्त वर्गाकृति बाँटो ||
![]() |
जाने मन समझे अकल, प्यार खुदा की देन |
रखूँ कलेजे से लगा, क्यों मिस करना ट्रेन |
रखूँ कलेजे से लगा, क्यों मिस करना ट्रेन |
क्यों मिस करना ट्रेन, दर्द तो सह-उत्पादन |
करूँ सहज स्वीकार, सजा लूँ अन्तर आँगन |
मारे छुरी-कटार, मिटा देता जो यौवन |
उसको सनकी धूर्त, मानता हूँ जानेमन ||
माटी का सौदा करें, लाठी का उस्ताद |
गोरख-धंधे रात-दिन, हुआ जिन्न आजाद | हुआ जिन्न आजाद, कहीं यह रेप कराये | कहीं गिरे दीवाल, कहीं सस्पेंशन लाये | हो जाते हैं क़त्ल, माफिया खाटी भाटी | सत्ता करे खराब, मुलायम उर्वर माटी |
दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड | आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है | कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं | फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा | बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा- |
खबर-जबाब !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंधड़ !
जूती जूता खाय के, जन मन जीव अघाय | महँगाई का बोझ भी, उठा उठा मुसकाय | उठा उठा मुसकाय, शिकायत वह ना जाने | मंदिर मस्जिद जाय, बहाने अश्रु बहाने | कारिन्दे हुशियार, बोलती उनकी तूती | राजा ही भगवान्, खाइये जूता जूती | |
sabhi kundliyan steek vaar kar rahi hain .badhai
ReplyDeleteसुन्दर और सटीक !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (04-08-2013) के दादू सब ही गुरु किए, पसु पंखी बनराइ : चर्चा मंच 1327
में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एकदम से जुदा अंदाज है आपका....हार्दिक आभार..
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स
ReplyDeleteआपकी मस्त हलचल का मज़ा ही कुछ दूर होता है ...
ReplyDeleteहर पंक्ति कटाक्ष करने में सफल अपनी बात को शब्दों में बयाँ करने का खुबसुरत अंदाज़ अच्छा लगा |
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