Tuesday, 27 August 2013

रूपया छा-सठ में फँसा, उन-सठ से हैरान-

नौ दो ग्यारह होय, निवेशक धन बहु-रूपया

रूपया छा-सठ में फँसा, उन-सठ से हैरान |
इक-सठ कब से मौन है, अड़-सठ सड़-सठियान |

अड़-सठ सड़-सठियान, तीन-तेरह हो जाता |
तीन-पाँच हर वक्त, पञ्च-जन माल खपाता |

मची हुई है लूट, रपट आती है खुफिया |
नौ दो ग्यारह होय, निवेशक धन बहु-रूपया ||


रुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल-

गुर्राता डालर खड़ा, लड़ा ठोकता ताल |
रुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल |

पाए कौन निकाल, बहे दल-दल में नारा |
मगरमच्छ सरकार, अनैतिक बहती धारा |
घटते यहाँ गरीब, देखिये फिर भी तुर्रा |
पानी में दे ठेल, भैंसिया फिर तू गुर्रा || 


हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े-
  
 उखड़े मुखड़े पर उड़े, हवा हवाई धूल ।
आग मूतते हैं बड़े, गलत नीति को तूल ।
गलत नीति को तूल, रुपैया सहता जाए ।
 डालर रहा डकार, कौन अब लाज बचाए । 
बहरा मोहन मूक, नहीं सुन पाए दुखड़े ।
 हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े ॥ 


गिरता है गिरता रहे, पर पाए ना पार |
रूपया उतना ना गिरे, जितना यह सरकार |

जितना यह सरकार, नरेगा नरक मचाये |
बस पनडुब्बी रेल, मील मिड डे भी खाए |

लेता फ़ाइल लील, सदन में भुक्खड़ फिरता |
मँहगाई में डील, रुपैया नेता गिरता ||


 रोके से ना रोकड़ा, ले रुकने का नाम ।
रुपिया रूप कुरूप हो, मचा रहा कुहराम । 
मचा रहा कुहराम, हुआ अब राम भरोसे । 
मँहगाई की मार, गरीबी जीवन कोसे । 
कह गरीब के साथ, हाथ नित बम्बू ठोके । 
डालर हँसता जाय, रहे पर रुपिया रो के ॥ 

1 comment:

  1. काश आपकी यह रचना सब पढ़ें और साझेन .... कैसा बेवकूफ बना रही है सरकार ...

    तीखा कटाक्ष

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