नौ दो ग्यारह होय, निवेशक धन बहु-रूपया
रूपया छा-सठ में फँसा, उन-सठ से हैरान |
इक-सठ कब से मौन है, अड़-सठ सड़-सठियान |
अड़-सठ सड़-सठियान, तीन-तेरह हो जाता |
तीन-पाँच हर वक्त, पञ्च-जन माल खपाता |
मची हुई है लूट, रपट आती है खुफिया |
नौ दो ग्यारह होय, निवेशक धन बहु-रूपया ||
गुर्राता डालर खड़ा, लड़ा ठोकता ताल |
घटते यहाँ गरीब, देखिये फिर भी तुर्रा |रुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल | पाए कौन निकाल, बहे दल-दल में नारा | मगरमच्छ सरकार, अनैतिक बहती धारा | पानी में दे ठेल, भैंसिया फिर तू गुर्रा ||
उखड़े मुखड़े पर उड़े, हवा हवाई धूल ।
आग मूतते हैं बड़े, गलत नीति को तूल ।गलत नीति को तूल, रुपैया सहता जाए ।
डालर रहा डकार, कौन अब लाज बचाए ।
हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े ॥
गिरता है गिरता रहे, पर पाए ना पार |
रूपया उतना ना गिरे, जितना यह सरकार | जितना यह सरकार, नरेगा नरक मचाये | बस पनडुब्बी रेल, मील मिड डे भी खाए | लेता फ़ाइल लील, सदन में भुक्खड़ फिरता | मँहगाई में डील, रुपैया नेता गिरता ||
रोके से ना रोकड़ा, ले रुकने का नाम ।
रुपिया रूप कुरूप हो, मचा रहा कुहराम ।
मचा रहा कुहराम, हुआ अब राम भरोसे ।
मँहगाई की मार, गरीबी जीवन कोसे ।
कह गरीब के साथ, हाथ नित बम्बू ठोके ।
डालर हँसता जाय, रहे पर रुपिया रो के ॥
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काश आपकी यह रचना सब पढ़ें और साझेन .... कैसा बेवकूफ बना रही है सरकार ...
ReplyDeleteतीखा कटाक्ष