हमारा देश बिना बाड़ के खेत जैसा हो गया हैं !!
पूरण खण्डेलवाल
शंखनाद -
बिना बाड़ के हो गया, अपना देश महान | बाड़-पडोसी खा रही, नित्य खेत-मैदान | नित्य खेत-मैदान, बाड़ उनकी यह घातक | करते हम आराम, आदतें बड़ी विनाशक | चेतो नेता मूढ़, जाय नित शत्रु ताड़ के | विषय बहुत ही गूढ़, रहो मत बिना बाड़ के || |
रविकर
टेढ़ी-मेढ़ी डगरिया, पड़ते डग-मग पैर |
बीती यूँ ही उमरिया, रहे मनाते खैर |
रहे मनाते खैर, खैर वो बीत चुकी है |
गया हमेशा चूक, सफलता छिपी-लुकी है |
तौर-तरीके श्रेष्ठ, पकड़ ना पाया *मेढ़ी |
अब कैसा अफ़सोस, करे क्या उँगली-टेढ़ी ??
*तीन शिराओं वाली चोटी | |
(१ ३ )काची काया मन अथिर ,थिर थिर काम करंत , ज्यों - ज्यों नर निधड़क ,फिरे त्यों त्यों काल हसंतVirendra Kumar Sharma
ram ram bhai
कबिरा को ही मुँह-बिरा, चिढ़ा रहा धर्मांध | करता आडम्बर निरा, तन मन बेड़ी-बाँध | तन मन बेड़ी-बाँध, भटकता मन्दिर महजिद | जिद में है इन्सान, भूलता अम्मा वालिद | मन पर चाबुक मार, आज रविकर को हांको | भूल गया है सीख, भूलता है कबिरा को | |
उल्लूक टाईम्स
छोटी मोटी जगह पर, करता खुद को बन्द | बिना रीढ़ के जीव का, अपना ही आनन्द | अपना ही आनन्द, चरण चुम्बन में माहिर | भरे पड़े छल-छंद, किन्तु न होते जाहिर | चले समय के साथ, लाल कर अपनी गोटी | ऊँचा झंडा हाथ, बात क्या छोटी मोटी ?? |
|
आह वजीरे-आजमी, आहा आजम खान |
रहे धरे के धरे कुल, मन्सूबे आहवान | मन्सूबे आह्वान, रही रौनक सूबे में | सोच नफा-नुक्सान, हुवे खुश दोनों खेमे | राम-लला फिलहाल, विराजे सरयू तीरे | लगा पुराना टेंट, भरें वह आह, वजीरे || |
सुन्दर कुंडलियाँ !!
ReplyDeleteलिखो रविकर भाई साखियाँ कबीर की हर साखी ,दोहे पर आज की यही ज़रूरीयात है ,बहुत सुन्दर साखियाँ लिखीं हैं आपने .
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक कुंडलियाँ !
ReplyDelete
ReplyDeleteराम-लला फिलहाल, विराजे सरयू तीरे |
लगा पुराना टेंट, भरें वह आह, वजीरे ||
क्या बात है .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDelete