Thursday, 4 July 2013

मत खोलो हे मातु, खोल में रहो सुरक्षित-



घोंघा- सी होती जाती हैं स्त्रियाँ ....


वाणी गीत
 रहो सुरक्षित खोल में, डोल रही निश्चिन्त |
खोल खोल के गर चले, दशा होय आचिन्त्य |

दशा होय आचिन्त्य, सोच टेढ़ी सामाजिक |
दिखे पुरुष वर्चस्व, घटे दुर्घटना आदिक |

नहीं बदलती सोच, आज तक रही प्रतीक्षित |
मत खोलो हे मातु, खोल में रहो सुरक्षित ||

सृजन


Brijesh Singh 


 ब्लॉग प्रसारण सारणी, सजा रहे *रणछोड़ |
साफ़ झलकता श्रम-सफल, निश्चय ही बेजोड़ | |

*कृष्ण



अनुभूति

मेरी माँ ने कहा !
बेटा मत फंसना कभी, भरे पड़े शैतान । 
तान रहे शैतान ये, बन कर के इंसान । 
बन कर के इंसान, मुखौटे तरह तरह के । 
अगर ज़रा दो ध्यान, पास में अपने रह के । 
कर परोक्ष नुकसान, दबा देते हैं *टेटा । 
माँ का था अरमान, करे क्या लेकिन बेटा ॥
पांच दोहे - लक्ष्मण लडीवाला
 open books on line

पोती पोता पोत पे, पावें पार पयोधि |
चिंता छोड़ें व्यर्थ की, रखें भरोसा बोधि ||



My ImageAuthor Kiran Maheshwari

पाये अध्यादेश से, भोजन जन गन देश |
चारो पाये तंत्र के, दिये हमें पर क्लेश |


दिये
हमें पर क्लेश, दिये टिमटिमा रहे हैं |
हुआ तैल्य नि:शेष, काल ने प्राण गहे हैं |


है आश्वासन झूठ, मूठ हल की जब आये |
पाये हल हर हाल, जियें मानव चौपाये ||



दोहा छंद
गीतिका 'वेदिका'  
   सृजन मंच ऑनलाइन

सट्टा बट्टा दे लगा, खट्टा है घुड-दौड़ |
हुई लाटरी बंद जो, ताश जुआं भी गौण |


ताश जुआं भी गौण, आज यह क्रिकेट छाया |
दर्शक भरसक दूर, खिलाड़ी दांव लगाया |


अफसर अंडर-वर्ल्ड, एक थैली का चट्टा |
नया मिला यह काम, खेल रोजाना सट्टा |  |


बिपदा बढ़ती बहु-गुणा, बा-शिंदे बेहाल-

 बिपदा बढ़ती बहु-गुणा, बा-शिंदे बेहाल |
बस-बेबस बहते बहे, बज-बंशी भूपाल |  

बज बंशी भूपाल, बहर बंदिशें सुरीली |
मनमोहन मदमस्त, मगन मीरा शर्मीली |

चले अचल छल-चाल, भयंकर नदी बिगडती  | 
चारो तरफ बवाल, हमारी बिपदा बढ़ती ||  

  
RSS Swayamsevaks in Uttarakhand.
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7 comments:

  1. कवि के आशीर्वाद, सार्थक हैं सफल होंगे !
    बधाई भाई !

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  2. बहुत बढ़िया...

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  3. वो कान में तेल डाले बैठे है !

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  4. मेरे लिंक संयोजन के प्रयास को आपका आशीष मिला यह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आपका हार्दिक आभार!

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  5. संकलन में रचना को स्थान देने का बहुत आभार !

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  6. सुंदर संकलन रविकर सर!

    ~सादर!!!

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