जंगल में चल फेंक दे, उठें जानवर नाच |
यह रसीद अब फाड़ दे, पूरे टुकड़े पाँच | पूरे टुकड़े पाँच, खोपड़ी बब्बर खाए | कुक्कुर नोचे टांग, सुवर खट्टा कह जाए | नोचे कमर सियार, मनाये लोमड़ मंगल | खाए सकल गरीब, कराता पार्टी जंगल | | |
“सरस्वती वन्दना” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
माता के शुभ चरण छू, छू-मंतर हों कष्ट |जिभ्या पर मिसरी घुले, भाव कथ्य सुस्पस्ट |
भाव कथ्य सुस्पस्ट, अष्ट-गुण अष्ट सिद्धियाँ |
पाप-कलुष हों नष्ट, ख़तम हो जाय भ्रांतियां |
काव्य करे कल्याण, नहीं कविकुल भरमाता |
हरदम होंय सहाय, शारदे जय जय माता ||
नहीं व्यर्थ रक्त-पात, हिरन का मरना खलता-
स्वार्थ, शिथिलता, भय परे, हो साहस भरपूर |
अनुगामी को करे नहिं, नायक खुद से दूर |
नायक खुद से दूर, किन्तु पहचाने बागी |
निष्पादित रणनीति, करे बन्दा-वैरागी |
नहीं व्यर्थ रक्त-पात, हिरन का मरना खलता |
दे दुश्मन को मात, बिना मद स्वार्थ-शिथिलता
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Untitled
Deepti Sharma
त्रिज्याएँ त्रिजटा बने, हिम्मत पाए सीय |
बजरंगी नापें परिधि, होय मिलन अद्वितीय ||
महेन्द्र श्रीवास्तव
मजा लीजिये पोस्ट का, परिकल्पना बिसार |
शुद्ध मुबारकवाद लें, दो सौ की सौ बार |
दो सौ की सौ बार, मुलायम माया ममता |
कुल मकार मक्कार, नहीं मन मोदी रमता |
दिग्गी दादा चंट, इन्हें ही टंच कीजिये | होवें पन्त-प्रधान, और फिर मजा लीजिये || |
आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है-
दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड | आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है | कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |
फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा- |
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
*बारमुखी देखा सुखी , किन्तु दुखी भरपूर इधर उधर हरदिन लुटी, जुटी यहाँ मजबूर जुटी यहाँ मजबूर, करे मजदूरी थककर लेती पब्लिक घूर, सेक ले आँखें जी भर मुश्किल है बदलाव, यही किस्मत का लेखा सहमति का व्यवसाय, बारमुखि रोते देखा * वेश्या / बार-बाला |
उल्लूक टाईम्स
ले दे के है इक शगल, टिप्पण का व्यापार | इक के बदले दो मिले, रविकर के दरबार | रविकर के दरबार, एक रूपये में मनभर | काटे पांच रसीद, खाय बारह में बब्बर | यहाँ बटें नि:शुल्क, नहीं ब्लॉगर को खेदे | दे दे दे दे राम, नहीं तो ले ले ले दे || |
धन्यवाद रविकर जी कार्टून को भी संजोने के लिए
ReplyDeleteसुन्दर !!
ReplyDeletebahut sundar sankalan...........
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत खूब लाजबाब अभिव्यक्ति,,,बधाई रविकर जी,,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी याद आ गई ...