झारखंड : समझौते की आड़ में नंगा नाच !
महेन्द्र श्रीवास्तव
पाका घौता आम का, झारखंड बागान |
रंजिश राग भुलान, भला हेमंत भीग ले | दिल्ली तलक अजान, साथ में कई लीग ले | बंटवारे की बेर, नक्सली करें धमाका | हो जाए अंधेर, आम पाका तो पाका || |
Kiran Maheshwari
पाये अध्यादेश से, भोजन जन गन देश | चारो पाये तंत्र के, दिये हमें पर क्लेश | दिये हमें पर क्लेश, दिये टिमटिमा रहे हैं | हुआ तैल्य नि:शेष, काल ने प्राण गहे हैं | है आश्वासन झूठ, मूठ हल की जब आये | पाये हल हर हाल, जियें मानव चौपाये || |
घोंघा- सी होती जाती हैं स्त्रियाँ ....
वाणी गीत
रहो सुरक्षित खोल में, डोल रही निश्चिन्त |
खोल खोल के गर चले, दशा होय आचिन्त्य | दशा होय आचिन्त्य, सोच टेढ़ी सामाजिक | दिखे पुरुष वर्चस्व, घटे दुर्घटना आदिक | नहीं बदलती सोच, आज तक रही प्रतीक्षित | मत खोलो हे मातु, खोल में रहो सुरक्षित || |
यही बुद्ध की शान, घाव खाकर भी ताजे -
वामयान विध्वंस कर, तालिबान हकलान |
बोध-गया में आज फिर, कौन घुसा नादान | कौन घुसा नादान, मसीहा शांत विराजे | यही बुद्ध की शान, घाव खाकर भी ताजे | कर देते हैं माफ़, माफ़ ना खुदा करेगा | हो जाओगे साफ़, सजा वो ही अब देगा || |
कमेंट के रूप में सभी कुण्डलियाँ बहुत सुन्दर हैं!
ReplyDeleteआभार!
सभी कुण्डलियाँ बहुत लाजवाब हैं!
ReplyDeleteयहां स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स संजोये हैं..
आपकी यह रचना कल मंगलवार (09-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ८ /७ /१ ३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteबंटवारे की बेर, नक्सली करें धमाका |
ReplyDeleteहो जाए अंधेर, आम पाका तो पाका ||
वाह जी वाह !
सुंदर !
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स
ReplyDeleteत्वरित टिप्पणी शानदार |
ReplyDeleteमेरी रचना पर टिप्पणी अच्छी लगी |
आशा