Tuesday, 30 July 2013

सच्चाई की हार, वोट कुछ दल ने जोड़े-




अखिलेश सरकार अपनी विफलताओं को तुष्टिकरण की आड़ में छुपाना चाहती है !!

पूरण खण्डेलवाल

 फलता है हर फैसला, फैला कारोबार |
अधिकारी का हौंसला, तोड़े बारम्बार |
तोड़े बारम्बार, शक्ति दुर्गा की तोड़े |
सच्चाई की हार, वोट कुछ दल ने जोड़े |
छलता सत्ता-असुर, सिंह रह गया उछलता |
हुवा फेल अखिलेश, छुपाता सतत विफलता |

बनाने वाले ने हमें भी अगर, ऐसा ऐ काश बनाया होता

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

खोजो शाला इक बड़ी, पढ़ते जहाँ अमीर  |
मनचाहा साथी चुनो, सुन राँझे इक हीर |

सुन राँझे इक हीर, चीर कर दिखा कलेजा |
सुना घरेलू पीर, रोज खा उसका भेजा |

प्रथम पुरुष को पाय, लगाए दिल वह बाला |
समय गया पर बीत, पुत्र हित खोजो शाला ||

 

कीचड़ तो तैयार, मगर क्या कमल खिलेंगे-

कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल  की, है उम्मीद त्रिशंकु |

है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा |
करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा |

ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे |
कीचड़ तो तैयार, 
मगर क्या कमल खिलेंगे--
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi 
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta 


Durga Shakti Nagpal, a young woman IAS officer of 2010 batch has been shifted from Punjab care to Uttar Pradesh cadre on the ground of marriage to  Shri Abhishek Singh, IAS officer of 2011 batch of Uttar Pradesh Cadre.

दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |


आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है  |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |


फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-

अपना ही दामाद, क्लीन चिट छापे अप्पा-

गट्टा पकड़े जाँच-दल, पर पट्ठा की ट्रिक्स |
मैच फिक्स करता रहा, करे जाँच अब फिक्स |  

करे जाँच अब फिक्स, बड़े दाउद का बप्पा |
अपना ही दामाद, क्लीन चिट छापे अप्पा |

बी सी सी आई राज, लगा इज्जत पर बट्टा |
अपने क्लब पर नाज, छुड़ा के भागे गट्टा ||


5 comments:

  1. अच्छी टिप्पणियों के साथ सूत्रों को सजाया है !!
    सादर आभार !!

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  2. बहुत सुन्दर हर शब्द अर्थ गर्भित भाव संसिक्त शैली अपना मार्दव लिए है भाषिक सौन्दर्य भी देखते ही बनता है।
    खोजो शाला इक बड़ी, पढ़ते जहाँ अमीर |
    मनचाहा साथी चुनो, सुन राँझे इक हीर |

    सुन राँझे इक हीर, चीर कर दिखा कलेजा |
    सुना घरेलू पीर, रोज खा उसका भेजा |

    प्रथम पुरुष को पाय, लगाए दिल वह बाला |
    समय गया पर बीत, पुत्र हित खोजो शाला ||

    क्या बात है रविकर का ज़वाब नहीं .

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  3. माँ दुर्गा को ही आज जरूरत है
    आदमी की जो लड़ सके उसके लिये
    आदमी जो खुद अपने लिये नहीं
    लड़ पा रहा है उससे दुर्गा के लिये
    आज लड़ने के लिये कहा जा रहा है !

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