आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है-
दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड | आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है | कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं | फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा | बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा- |
“सरस्वती वन्दना” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
माता के शुभ चरण छू, छू-मंतर हों कष्ट |जिभ्या पर मिसरी घुले, भाव कथ्य सुस्पस्ट |
भाव कथ्य सुस्पस्ट, अष्ट-गुण अष्ट सिद्धियाँ |
पाप-कलुष हों नष्ट, ख़तम हो जाय भ्रांतियां |
काव्य करे कल्याण, नहीं कविकुल भरमाता |
हरदम होंय सहाय, शारदे जय जय माता ||
Untitled
Deepti Sharma
त्रिज्याएँ त्रिजटा बने, हिम्मत पाए सीय | बजरंगी नापें परिधि, होय मिलन अद्वितीय || |
उल्लूक टाईम्स
ले दे के है इक शगल, टिप्पण का व्यापार | इक के बदले दो मिले, रविकर के दरबार | रविकर के दरबार, एक रूपये में मनभर | काटे पांच रसीद, खाय बारह में बब्बर | यहाँ बटें नि:शुल्क, नहीं ब्लॉगर को खेदे | दे दे दे दे राम, नहीं तो ले ले ले दे || |
वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है-
लेकर कुलकर आयकर, करती क्या सरकार |
लोकतंत्र सुकरात का, वोटों की दरकार | वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है | विविध भाँति सत्कार, तंत्र में फर्स्ट-रैंक है | दे अनुदान तमाम, मुफ्त में राशन देकर | करते अपना नाम, रुपैया हमसे लेकर || |
जीवन से कुल हास्य रस, जग ले जाए छीन-
अखरे नखरे खुरखुरे, जब संवेदनहीन |
जीवन से कुल हास्य रस, जग ले जाए छीन | जग ले जाए छीन, क्षीण जीवन की आशा | बिना हास्य रोमांस, गले झट मनुज-बताशा | खे तनाव बिन नाव, किनारा निश्चय लख रे | लाँघे विषम बहाव, ज्वार-भांटा नहिं अखरे || |
आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है |
ReplyDeleteकौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |
फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-
bahut sundar !
बहुत शानदार टिप्पणियाँ करते हो आप तो।
ReplyDeleteआभार रविकर जी...!
दंड अगर देती तो दुर्गा माता नहीं कहाती
ReplyDeleteतब तक सहती जबतक अति नहीं हो जाती |
अंत तभी होता जब धरती रूप काली विकराली
अत्याचारी से लडती हर नारी हिम्मतवाली |
बहुत बढिया टिप्पणियाँ..आभार
ReplyDeleteबहुत बढिया टिप्पणियाँ.
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