Tuesday, 2 July 2013

बड़ा खुलासा आज, किया क्यूँ इस "इसरो" ने-

रविकर पक्का धूर्त, इसे दो रोने धोने -

इस रोने से क्या भला, नहीं समय पर चेत |
बादल फटने की क्रिया, हुवे हजारों खेत |

हुवे हजारों खेत, रेत मलबे में लाशें  |
दुबक गई सरकार, बहाने बड़े तलाशें |

रविकर पक्का धूर्त, इसे दो रोने धोने  |
बड़ा खुलासा किया, आज क्यूँ इस "इसरो" ने ||

बड़ी चुनौती है यही, सभी चाहते प्यार-

रोना कितने भूलते, सोना हुआ हराम । 
गिरते गिरते गिर गए, जो सोने के दाम । 
समझे मन के भाव को,  रविकर सत्य सटीक । 
कभी नहीं हैरान हो, ना रिश्तों में हीक ॥ 
बड़ी चुनौती है यही, सभी चाहते प्यार । 
किन्तु जहाँ  देना पड़े, झट करते तकरार ॥

है उदास दासत्व से, सो आवे ना रास |
है निराश मन सिरफिरा, करता त्रास हताश ||


 चेतन चेतावनी प्रति, होते नहिं गंभीर |
दिखे *चेतिका चतुर्दिश, जड़ हो जाय शरीर ||
*श्मशान 

थाली का बैगन नहीं , बैंगन की ही थाल |
जो बैंगन सा बन रहा, गली उसी की दाल ||


हो गलती का लती जो, खायेगा वह लात |
पछताये कुछ ना मिले, गर समझे ना बात ||   

उत्थानों की बात, करोगे कब रे थानों-

थानों में हैं मुर्गियां, हवालात में लात |
हवा लात खा पी करें, अण्डों की बरसात |

अण्डों की बरसात, नहीं तो डंडे बरसें |
बरसों से यह खेल, झेलती पब्लिक डरसे |

भोगे नक्सलवाद, देश मानों ना मानो |
उत्थानों की बात, करोगे कब रे थानों ||

विपत-प्रबंधन ढील, बहे घर-ग्राम-कबीला-

थोथी-थूल दलील दे, भाँजे लापरवाह |
लीला लाखों जिंदगी, कातिल है नरनाह |

कातिल है नरनाह, दिखाए दुर्गति-लीला |
विपत-प्रबंधन ढील, बहे घर-ग्राम-कबीला |

धरे हाथ पर हाथ, मजे में बाँचे पोथी |
छी छी सत्ता स्वार्थ, थुड़ी थू थोथा-थोथी ||

अंधाधुंध विकास, पड़ी प्रायश्चित रोवे-

होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।
पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।
बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।
रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ?
अंधाधुंध विकास, पड़ी प्रायश्चित रोवे ।
भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।
त्रिसोता = भागीरथी ,अलकनंदा और मन्दाकिनी

9 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति...आभार

    ReplyDelete
  2. सुन्दर विचारो की बेहतरीन श्रृंखला

    ReplyDelete

  3. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (03-07-2013) को बुधवारीय चर्चा --- १२९५ ....... जीवन के भिन्न भिन्न रूप ..... तुझ पर ही वारेंगे हम ....में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर, क्या बात



    TV स्टेशन ब्लाग पर देखें .. जलसमाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को
    http://tvstationlive.blogspot.in/

    ReplyDelete
  5. सुन्दर प्रभावशाली

    ReplyDelete
  6. थाली का बैगन नहीं , बैंगन की ही थाल |
    जो बैंगन सा बन रहा, गली उसी की दाल ||
    थोथी-थूल दलील दे, भाँजे लापरवाह |
    लीला लाखों जिंदगी, कातिल है नरनाह |
    बहुत सुन्दर रविजी,आपकी तरह तो नहीं तुक्के में ही कहना चाहूँगा
    नेता तो समझत नहीं ये रविकर की बात,एक दिन तो आयेगा,जब करेंगे ये आतमघात

    ReplyDelete
  7. होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।
    पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।
    बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।
    रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ?
    अंधाधुंध विकास, पड़ी प्रायश्चित रोवे ।
    भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।
    -बहुत सटीक और पते की बात कही रविकर जी आपने !

    ReplyDelete