Wednesday 3 July 2013

हुवे हजारों खेत, रेत मलबे में लाशें-




Kumar Radharaman  

सीना में ले हौसला, करो प्रतिज्ञा मित्र |
प्राप्त करो एक्सपर्ट की, कुशल सलाह सचित्र |

कुशल सलाह सचित्र , पोज हों सही संतुलित |
खान-पान व्यवहार, बहुत कुछ इधर सम्मलित |

मार नहीं गप मात्र, स्वस्थ्य रह के गर जीना |
कसरत पर दो ध्यान, बहा मत मात्र पसीना ||




रविकर पक्का धूर्त, इसे दो रोने धोने -




इस रोने से क्या भला, नहीं समय पर चेत |
बादल फटने की क्रिया, हुवे हजारों खेत |


हुवे हजारों खेत, रेत मलबे में लाशें  |
दुबक गई सरकार, बहाने बड़े तलाशें |


रविकर पक्का धूर्त, इसे दो रोने धोने  |
बड़ा खुलासा आज, किया क्यूँ इस "इसरो" ने ||

इधर इंद्र उत्पात , उधर इंद्रा का नाती -

बरसाती चेतावनी,  चूक चोचलेबाज |
डूबे चारोधाम जब, चौकन्ना हो राज |
चौकन्ना हो राज, बहाया तिनका तिनका |
गिरा प्रजा पर गाज, नहीं कुछ बिगड़ा इनका |
जल-समाधि जल-व्याधि, बहा मलबा आघाती |
इधर इंद्र उत्पात , उधर इंद्रा का नाती ||


दोहा छंद

गीतिका 'वेदिका' 
 सृजन मंच ऑनलाइन

सट्टा बट्टा दे लगा, खट्टा है घुड-दौड़ |
हुई लाटरी बंद जो, ताश जुआं भी गौण |


ताश जुआं भी गौण, आज यह क्रिकेट छाया |
दर्शक भरसक दूर, खिलाड़ी दांव लगाया |


अफसर अंडर-वर्ल्ड, एक थैली का चट्टा |
नया मिला यह काम, खेल रोजाना सट्टा |  |


होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।
पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।
बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।
रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ?
अंधाधुंध विकास, पड़ी प्रायश्चित रोवे ।
भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।
त्रिसोता = भागीरथी ,अलकनंदा और मन्दाकिनी

5 comments:

  1. आपका कोई जवाब नहीं रविकर जी।
    सभी टिप्पणियाँ सार्थक हैं!

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  2. शुक्रिया रविकर भाई उत्साह बढाने का .ॐ शान्ति .चार दिनी सेमीनार में ४ -७ जुलाई ,२ ० १ ३ ,अल्बानी (न्युयोर्क )में हूँ .ॐ शान्ति .

    व्यंजना पूर्ण रहे सभी लिंक प्रासंगिक व्यंग्य विड्म्बन लिए रहे -

    होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।
    पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।
    बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।
    रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ?
    अंधाधुंध विकास, पड़ी प्रायश्चित रोवे ।
    भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।

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  3. सार्थक टिप्पणियाँ....

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  4. बरसाती चेतावनी, चूक चोचलेबाज |
    डूबे चारोधाम जब, चौकन्ना हो राज |
    चौकन्ना हो राज, बहाया तिनका तिनका |
    गिरा प्रजा पर गाज, नहीं कुछ बिगड़ा इनका |
    जल-समाधि जल-व्याधि, बहा मलबा आघाती |
    इधर इंद्र उत्पात , उधर इंद्रा का नाती ||वह रविकर जी खरी खरी कहने में आपका जवाब नहीं ,

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