Tuesday, 16 July 2013

किन्तु जा रही जान, मची है अफरा तफरी -


अफरा-तफरी मच गई, खा के मिड-डे मील |
अफसर तफरी कर रहे, बीस छात्र लें लील |


बीस छात्र लें लील, ढील सत्ता की दीखे |
मुवावजा ऐलान, यही इक ढर्रा सीखे |


आने लगे बयान, पार्टियां बिफरी बिफरी |
किन्तु जा रही जान, मची है अफरा तफरी ||



मिसरा,मतला,मक्ता,रदीफ़,काफिया,ने खुद्दारी की थी -सतीश सक्सेना


सतीश सक्सेना 

पल्लेदारी खुब करी, बोरा ढोया ढेर । 
 शब्द-अर्थ बोरा किया, रहा आज तक हेर । 

रहा आज तक हेर, फेर नहिं अब तक समझा। 
छा जाए अंधेर, काफिया मिसरा उलझा । 

उड़ा रहे उस्ताद, बना हुक्के से छल्ले । 
पायें पल पल दाद, पड़े नहिं रविकर पल्ले ॥ 




सिसकारे बिन सह गया, सत्तर सकल निशान |
उन घावों को था दिया, हमलावर अनजान |

हमलावर अनजान, किन्तु यह घाव भयंकर |
एक अकेला घाव, दिया अपनों ने मिलकर |

प्राणान्तक यह घाव, खाय कर रविकर हारे |
अन्तर दिखता साफ़, आज अन्तर सिसकारे ||




 दशा सुधरती नहीं पर, धरती धरती धीर |
हौले हौले ही सही, हलकी होगी पीर |


 
हलकी होगी पीर, नीर अब तक नहिं सूखा |
आहत हुआ शरीर, किन्तु मर जाता भूखा |


 
कुदरत का कानून, तोड़ते होय हादसा |
सोया देहरादून, दिखे नहिं कहीं दुर्दशा |


क्या से क्या हो गया !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
 अंधड़ !
पहले तो थे घेरते, आज लुटेरे टेर |
एक बेर थे लूटते, अब लूंटे हर बेर ||

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