Sunday, 21 July 2013

सम्मुख पीढ़ी तीन, करें क्या टोका टोकी-


मेरी कहानियाँ  

 दादी सच ही कह रही, लम्बी दुनिया देख |
मम्मी भी सच ही कहे, दीदी का सच लेख |

दीदी का सच लेख, बात है महिलाओं की |
सम्मुख पीढ़ी तीन, करें क्या टोका टोकी |

बाहर जोखिम देख, छीने बहना आजादी  |
युग की टेढ़ी चाल, देख कर बोली दादी ||






अंक-28
राहु-केतु से त्रस्त *ग्लो,  मानव से यह ग्लोब ।
लगा जमाना लूट में, रोज जमाना रोब । 

रोज जमाना रोब, नाश कर रहा जयातुर ।
इने गिने कुछ लोग, बचाने को पर आतुर ।

रविकर लेता थाम, धरित्री इसी हेतु से ।
तू भी हाथ बढ़ाय, बचा ले राहु केतु से ॥
* चंद्रमा , कपूर

मानव वेश में अक्सर फिरें, शैतान दुनिया में -सतीश सक्सेना


सतीश सक्सेना
रचना की कोशिश जारी है |
रविकर करता तैयारी है |

लिखता रहता था कुण्डलियाँ--
गजलों की अब की बारी है |

ब्लॉग जगत पर कई विधाएं-
देखो तो मारामारी है |

अगर खिंचाई कर दे कोई-
मुँह पर ही देता गारी है |

लगातार लिखता पढता हूँ-
रविकर यह क्या बीमारी है-

man ka manthan. मन का मंथन।

अनुपम बलिदान...


बलिदानी दानी दिखे, लिखे नाम इतिहास |
करे हास-परिहास जग, पर वे सत्य प्रकाश |


पर वे सत्य प्रकाश, पुत्र चारो न्यौछावर |
जय जय पन्ना धाय, कौन माँ तुझसे बेहतर |


हरिश्चन्द्र का सत्य, हजारों सत्य कहानी |
परम्परा आदर्श, नमन सादर बलिदानी-

बन जाओ न नीला समंदर.....

रश्मि शर्मा  


हो अभाव जब भाव का, अन्तर बढ़ता जाय |
हृदयस्थल में मरुस्थल, अन्तर मन अकुलाय-
पंचायत का निर्णय.
प्रतिभा सक्सेना  
लालित्यम् 

सज्जन को हरदम खला, भागे लाज लपेट  |
पंचों का जब फैसला, पक्षपात की भेंट |
पक्षपात की भेंट, जान का सौदा होता |
काटे कौवा खेत, फसल चाहे जो बोता |
नगरी में अंधेर, मूर्ख जन बसते दुर्जन |
नहीं किसी की खैर, भाग जाते हैं सज्जन ||


ग्वालिन ग्वाल बहे पशु अन्न निहारत कृष्ण करेज फटा-

वृष्टि सुरेश करे जमके चमके बिजली घनघोर घटा । 
ग्वालिन ग्वाल बहे पशु अन्न निहारत कृष्ण करेज फटा
गोबरधन्य उठा कन-अंगुलि देत दिखाय अजीब छटा । 
आज सँभाल रहे धरती मिल सज्जन नौ-जन हाथ बटा

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर !

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  2. आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।

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