Sunday, 28 July 2013

कुल मकार मक्कार, नहीं मन मोदी रमता-




महेन्द्र श्रीवास्तव 

मजा लीजिये पोस्ट का, परिकल्पना बिसार |
शुद्ध मुबारकवाद लें, दो सौ की सौ बार |

दो सौ की सौ बार, मुलायम माया ममता |
कुल मकार मक्कार, नहीं मन मोदी रमता |
 
दिग्गी दादा चंट,  इन्हें ही टंच कीजिये |
होवें पन्त-प्रधान, और फिर मजा लीजिये ||



आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है-


Durga Shakti Nagpal, a young woman IAS officer of 2010 batch has been shifted from Punjab care to Uttar Pradesh cadre on the ground of marriage to  Shri Abhishek Singh, IAS officer of 2011 batch of Uttar Pradesh Cadre.
दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |

आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है  |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |

फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-

 उल्लूक टाईम्स
ले दे के है इक शगल, टिप्पण का व्यापार |
इक के बदले दो मिले, रविकर के दरबार |
रविकर के दरबार, एक रूपये में मनभर |
काटे पांच रसीद, खाय बारह में बब्बर |
यहाँ बटें नि:शुल्क, नहीं ब्लॉगर को खेदे |
दे दे दे दे राम, नहीं तो ले ले ले दे ||


पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

   महा *महात्यय ही मिला, ठहरा कहाँ विनाश |
सिधर महात्मा दे गया, नाम स्वयं का ख़ास |


नाम स्वयं का ख़ास, करम मोहन के गड़बड़  |
रहा रोज ही पूज, आज भी गांधी बढ़कर |


हिन्दुस्तानी मूर्ख, रहा हरदम ही गम हा  |
पकड़े दौड़ लगाय, लिए वैशाखी दमहा ||
*सर्वनाश

doha salila : gataagat SANJIV

divyanarmada.blogspot.in 
 hindustaan ka dard
उत्तम दोहे मान्यवर, बहुत बहुत आभार |
भाग्य नाव खेता मनुज, छूटा एक अकार ||





शब्दकोष देते बदल, दल बल छल आयॊग |
सब "गरीब रथ" पर चढ़े, किये बिना उद्योग |
 
किये बिना उद्योग, हिरन खुद घुसे गुफा में |
खा जाए अब शेर, हाथ में बगुली थामे |
 
गजल कह रहे शेर, बदल कर आज गद्य को |
गिरता गया अमीर, सँभालो पकड़ शब्द को ||

जीवन से कुल हास्य रस, जग ले जाए छीन-

अखरे नखरे खुरखुरे, जब संवेदनहीन  |
जीवन से कुल हास्य रस, जग ले जाए छीन |

जग ले जाए छीन, क्षीण जीवन की आशा |
बिना हास्य रोमांस, गले झट मनुज-बताशा |

खे तनाव बिन नाव, किनारा निश्चय लख रे |
लाँघे विषम बहाव, ज्वार-भांटा नहिं अखरे ||
 हथेली में तिनका छूटने का अहसास
तालाबों ने पार की, सरहद फिर इस बार |
वर्षा का वर्णन विशद, मचता हाहाकार |


मचता हाहाकार, बड़े खुश हैं अधिकारी |
राहत और बचाव, मदद आई सरकारी |


नहीं दिखे सौन्दर्य , दिखे उनका मन काला |
गया गाँव जब डूब, लगाएं फिर क्या ताला ||

"कुण्डलियाँ-चीयर्स बालाएँ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 

*बारमुखी देखा सुखी , किन्तु दुखी भरपूर 
इधर उधर हरदिन लुटी, जुटी यहाँ मजबूर 
 जुटी यहाँ मजबूर,  करे मजदूरी थककर 
 लेती पब्लिक घूर, सेक ले आँखें जी भर
मुश्किल है बदलाव, यही किस्मत का लेखा 
 सहमति का व्यवसाय, बारमुखि रोते देखा
* वेश्या / बार-बाला





7 comments:

  1. बहुत सटीक कुंडलियाँ !

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  2. दुर्गा शक्ति नागपाल को समर्पित पोस्ट के लिए साधुवाद भाई जी !

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  3. आभार हिट कर दिया पीटा नहीं :)

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