Wednesday 31 July 2013

बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल-

 
ताऊ रामपुरिया 
माला महकौवा मँगा, रखे चिकित्सक एक |
उत्सुकता वश पूछता, रोगी टेबुल टेक |

रोगी टेबुल टेक, महोदय हेतु बताना |
मेरा पहला केस, किन्तु तुम मत घबराना |

चीर-फाड़ जब सफल, गले में अपने डाला  | 
अगर बिगड़ता केस, डलेगी तुम पर माला ||

चंचल मन का साधना, सचमुच गुरुतर कार्य |
गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य |

करूँ निवेदन आर्य, उतरता जाऊं गहरे |

वहाँ प्रबल संघर्ष, नहीं नियमों के पहरे |
बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल |
दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||


कौन टाइप के हो समीर भाई


Girish Billore 



सदर सदारत जबर जबलपुर, लम्ब्रेटा की लम्बी चाल |
कुदरत का खुबसूरत टुकड़ा, देखा समझा बाल-बवाल |
खुश्बू वाला पान चबाये, होंठों को कर लेते लाल |
दीवारों पर नई कलाकृति, अब भी क्या देते हैं डाल --

सत्यार्थमित्र

वर्धा में फिर होगा महामंथन


औगढ़ के औकात की, सुगढ़ होयगी जाँच |
ब्लॉगिंग के ये वर्ष दस, परखे पावन आँच |
परखे पावन आँच ,  बड़े व्याख्यान कराये |
वर्धा को आभार,  विश्वविद्यालय आये |
बीता शैशव काल, रही दुनिया खुब लिख पढ़ |
हित साधे साहित्य, सुधरते रविकर  औगढ़ ||


pramod joshi 


गाना ढपली पर फ़िदा, सुने नहीं फ़रियाद |
पड़े मूल्य करना अदा, धिक् धिक् मत-उन्माद |

धिक् धिक् मत-उन्माद, रवैया तानाशाही |
चमचे देते दाद, करें दिन रात उगाही  |

 राज्य नए मुख्तार, और भी कई बनाना |
और उठे आवाज, बना जो तेलंगाना || 

3 comments:

  1. समीर जी को जन्मदिवस की हार्दिक बधाई !
    बहुत खूबसूरत कुंडलियाँ है आपने बनाई !

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  2. चंचल मन की साधना, पर......

    आँखें दोनों बंद हों , देह शिथिल श्रीमान्
    करें श्वास महसूस फिर, शुरू कीजिये ध्यान
    शुरू कीजिये ध्यान , विचारों को आने दें
    कीजे नहीं प्रयास , विचारों को जाने दें
    होंगी इक दिन मित्र,नियंत्रित मन की पाँखें
    गहराई में डूब , खुलेंगी मन की आँखें ||

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    1. बाँछे रविकर खिल गई, मिल जाता गुरु मन्त्र |
      हिलता तब अस्तित्व था, अब हिलता तनु-तंत्र |
      अब हिलता तनु-तंत्र, देह पर नहीं नियंत्रण |
      हो कैसे फिर ध्यान, करूँ कैसे प्रभु अर्पण |
      बड़ी कठिन यह राह, पसीना बरबस काछे |
      शेष रहे संघर्ष, पिछड़ती रविकर *बाँछे ||
      *इच्छा

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