pramod joshi
गाना ढपली पर फ़िदा, सुने नहीं फ़रियाद |
पड़े मूल्य करना अदा, धिक् धिक् मत-उन्माद | धिक् धिक् मत-उन्माद, रवैया तानाशाही | चमचे देते दाद, करें दिन रात उगाही | राज्य नए मुख्तार, और भी कई बनाना | और उठे आवाज, बना जो तेलंगाना || |
ताऊ और रामप्यारी की हरकीरत ’हीर’ से दो और दो पांच.....
ताऊ रामपुरिया
माला महकौवा मँगा, रखे चिकित्सक एक |
उत्सुकता वश पूछता, रोगी टेबुल टेक |
रोगी टेबुल टेक, महोदय हेतु बताना |
मेरा पहला केस, किन्तु तुम मत घबराना |
चीर-फाड़ जब सफल, गले में अपने डाला |
अगर बिगड़ता केस, डलेगी तुम पर माला ||
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
खोजो शाला इक बड़ी, पढ़ते जहाँ अमीर |
मनचाहा साथी चुनो, सुन राँझे इक हीर | सुन राँझे इक हीर, चीर कर दिखा कलेजा | सुना घरेलू पीर, रोज खा उसका भेजा | प्रथम पुरुष को पाय, लगाए दिल वह बाला | समय गया पर बीत, पुत्र हित खोजो शाला || |
छंद कुण्डलिया : मिलें गहरे में मोती
अरुण कुमार निगम
सृजन मंच ऑनलाइन
चंचल मन का साधना, सचमुच गुरुतर कार्य |
गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य |
करूँ निवेदन आर्य, उतरता जाऊं गहरे |
दिखे प्रबल संघर्ष, नहीं नियमों के पहरे |
बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल |
दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||
चंचल मन का साधना, सचमुच गुरुतर कार्य |
गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य |
करूँ निवेदन आर्य, उतरता जाऊं गहरे |
दिखे प्रबल संघर्ष, नहीं नियमों के पहरे |
बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल |
दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||
पूरण खण्डेलवाल
फलता है हर फैसला, फैला कारोबार |
अधिकारी का हौंसला, तोड़े बारम्बार | तोड़े बारम्बार, शक्ति दुर्गा की तोड़े | सच्चाई की हार, वोट कुछ दल ने जोड़े | छलता सत्ता-असुर, सिंह रह गया उछलता | हुवा फेल अखिलेश, छुपाता सतत विफलता |
दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |
आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |
फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा- |
कौन टाइप के हो समीर भाई
Girish Billore
नुक्कड़ -
सदर सदारत जबर जबलपुर, लम्ब्रेटा की लम्बी चाल | कुदरत का खुबसूरत टुकड़ा, देखा समझा बाल-बवाल | खुश्बू वाला पान चबाये, होंठों को कर लेते लाल | दीवारों पर नई कलाकृति, अब भी क्या देते हैं डाल -- |
कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल की, है उम्मीद त्रिशंकु | है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा | करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा | ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे | कीचड़ तो तैयार, मगर क्या कमल खिलेंगे--
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta
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बढ़िया , रविकर जी !
ReplyDeleteसुन्दर लिखा है !!
ReplyDeleteबहुत बढिया....
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