Tuesday 9 July 2013

रहे रोटियां पोय, वाह जी राघव रसिया-





राघवजी उफ राघवजी

वरुण के सखाजी
अस्सी में रस्सी कसी, हँसी हसारत होय |
छिपी नहीं खाँसी-ख़ुशी, रहे रोटियां पोय |

रहे रोटियां पोय, वाह जी राघव रसिया |
बुड्ढा होगा बाप, फसल खुब काटे हँसिया |

सेवक बक बकवास,  बधाये हाथों रस्सी |
अलबेला यह शौक, उमर चाहे हो अस्सी ||

जानलेवा लापरवाही के लिए जिम्मेदारी तय होनी चाहिए !


पूरण खण्डेलवाल 



जहाँ रूपिया गिर रहा, और गिराए व्यक्ति |
वहाँ कहाँ से *राज की, हो सकती अभिव्यक्ति |
हो सकती अभिव्यक्ति, शक्ति कानून दिखाए |
बहे आम का रक्त, ख़ास तो मौज मनाये |
जहाँ *राज हैं फेल, करे क्या वहाँ खूफ़िया  |
सज्जन को हो जेल,  बचे खलु फेंक रूपया ||

 जागो !तामसी , आज फिर जागो !
प्रतिभा सक्सेना  

लालित्यम् 

थोड़ा सत रज तम मिले, भिन्न भिन्न अनुपात |
प्रस्तुति शुभ-गंभीर अति, महत्वपूर्ण दिन रात |
महत्वपूर्ण दिन रात, एक बिन अन्य अधूरा |
घटती बढ़ती ज्योति,  योग पर पूरा पूरा |
गोरख कर बदलाव, खाव खिचड़ी जो छोड़ा |
रखना तू समभाव, नहीं कुछ थोड़म-थोड़ा ||


किन्तु नियामत लूटता, प्राणिजगत का ज्येष्ठ-

कुदरत रत रहती सतत, सिद्ध नियामक श्रेष्ठ ।
किन्तु नियामत लूटता, प्राणिजगत का ज्येष्ठ। 
प्राणिजगत का ज्येष्ठ, निरंकुश ठेठ स्वार्थी ।
कर शोषण आखेट, भोगता मार पालथी ।
बेजा  इस्तेमाल, माल का जब भी अखरत ।
 देती मचा धमाल, बावली होकर कुदरत ॥

माल=वन / क्षेत्र / धन-संपत्ति / सामग्री आदि



Asha Saxena  


 बीता कितना समय व्यर्थ, अर्थहीन कुछ कर्म |
आज हुआ अफ़सोस है, व्यथित हुआ है मर्म |
व्यथित हुआ है मर्म, शर्म भी हमको आये |
बने दुबारा दूध,  दही जो पड़े जमाये |
कितना सुन्दर तथ्य, दिया दर्शन ज्यों गीता |
पुन: नहीं हो प्राप्त, समय  बीता सो  बीता ||

खोज सत्य की

संगीता स्वरुप ( गीत )  
गीत.......मेरी अनुभूतियाँ

तमसाकृत से है घिरा, निश्चय सत्य तमाम |
मार तमाचा तमतमा, सत्य ताक ले आम |
सत्य ताक ले आम, ख़ास इक बात बताई |
तम ही तो है सत्य, समझ में रविकर आई |
मनुवा सत्य निकाल,  डाल दे थोड़ा घमसा |
भरत-सत्य साकार, पार कर जाए तमसा -




मानव  कहता  दम्भ में , मैं सबसे बलवान
किंतु प्रकृति के सामने  बिखरा है अभिमान
बिखरा  है  अभिमान ,  हुआ ऐसा बरसों से
निर्मित हुआ पहाड़ , बताओ  कब सरसों से
दम्भ और अभिमान , बना  देता  है  दानव
अदना-सा तू जीव , धरा पर  केवल  मानव ||





सिक्का मानव का चले, बनती प्रकृति गुलाम |
कारस्तानी के कहाँ, कभी चुकाए  दाम |   
कभी  चुकाए  दाम, क्लोन से सृष्टि चलाये |
अन्तरिक्ष आवास, वृष्टि भी कहीं कराये |
अजर अमर हो जाय, तुरुप का बनता इक्का |
रही प्रकृति घबराय, देखकर साहस सिक्का ||


noreply@blogger.com (काजल कुमार Kajal Kumar) 

मैया जब रखवार है, कोतवाल का खौफ |
काह बला ना कर सके, पान सुपारी सौंफ |
पान सुपारी सौंफ, कमीशन तो पहुँचाओ |
बंसल वंश विचार,  रेल बाजार बनाओ |
चीनी चींटी खाय, नहीं हम खाएं भैया |
रहते क्यूँ घबराय, बैठ है ऊपर मैया -|
 

9 comments:

  1. वाह...!
    कमेंटी कुण्डलियाँ बाँचकर तो आनन्द आ गया!
    आभार!

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  2. सुन्दर !!
    सादर आभार आदरणीय !!

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  3. अब भगवान् ने चाह तो रोटियाँ बेलेंगे भी राघव जी ! :)

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  4. सेवक बक बकवास, बधाये हाथों रस्सी |
    अलबेला यह शौक, उमर चाहे हो अस्सी ||

    वाह !!! बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: गुजारिश,

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  5. अस्सी में रस्सी कसी, हँसी हसारत होय |
    छिपी नहीं खाँसी-ख़ुशी, रहे रोटियां पोय |

    रहे रोटियां पोय, वाह जी राघव रसिया |
    बुड्ढा होगा बाप, फसल खुब काटे हँसिया |

    सेवक बक बकवास, बधाये हाथों रस्सी |
    अलबेला यह शौक, उमर चाहे हो अस्सी ||

    बहुत खूब !

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  6. बंदीजुगल अरुण-

    रवि की है भैया बेजोड़ .

    कर जोरिकर कहूं , न करूं ठिठोली .

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  7. सादर आभार आदरणीय !

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