"रविकर" जी के सम्मान में कविगोष्ठी!
धन्य धन्य रविकर हुआ, मित्रो का आभार ।प्रेम पाय के आपका, हर्षित हुआ अपार ।
ZEAL at ZEAL
अधर्मी पी एम् बने, बकते श्री नितीश ।
मोदी से भरसक इन्हें, बे-हिसाब है रीस ।
बे-हिसाब है रीस, छोड़ देंगे गठबंधन ।
पर कहिये श्रीमान, राष्ट्रपति पद पर क्रंदन ।
एन डी ए असहाय, दिखे सब की बेशर्मी ।
दिया ना कंडीडेट, ढूँढ़ ना सके अधर्मी ।।
आंसू शबनम बूंद, सूर्य को तपना भाये |
किन्तु वियोगी चाँद, अकेला रह न पाए |
उतर धरा पर चाँद, इकट्ठा करे संभारे |
छूकर प्रभु के चरण, गगन पुनि चमकें तारे ||
स्थानः काशी हिंदू विश्व विद्यालय
समयः 25-06-2012 की सुबह
फोटूग्राफरः देवेन्द्र पाण्डेय।
धीरे से अपनी कहे, नीरज रविकर-मित्र |
चींखे-चिल्लायें नहीं, खींचे रुचिकर चित्र |
खींचे रुचिकर चित्र, पलट कर ताके कोई |
हालत होय विचित्र, राम-जी सिय की सोई |
पर मैं का मद आज, कलेजा हम का चीरे |
कभी रहा था नाज, भूलता धीरे धीरे ||
वाह वाह अनुपम हवन, किन्तु प्रयोजन भूल ।
आँख धुवें से त्रस्त है, फिर भी झोंके धूल ।
फिर भी झोंके धूल , मूल में अहम् संभारे ।
सुकृति का शुभ फूल, व्यर्थ ही ॐ उचारे ।
अहम् जलाए अग्नि, तभी तो बात बनेगी ।
आत्मा की पुरजोर, ईश से सदा छनेगी ।।
पर रविकर के फूल, मूल में याद तुम्हारी |
इन यादों में झूल, भूलता विपदा सारी |
रविकर रखे सहेज, प्यार की अमित-निशानी |
अमिट याद का तेज, पलट कर देखो रानी ||
तारों की घर वापसी
तारे होते बेदखल, सूरज आँखे मूंद |
अद्वितीय अनुकल्पना, आंसू शबनम बूंद |
अद्वितीय अनुकल्पना, आंसू शबनम बूंद |
आंसू शबनम बूंद, सूर्य को तपना भाये |
किन्तु वियोगी चाँद, अकेला रह न पाए |
उतर धरा पर चाँद, इकट्ठा करे संभारे |
छूकर प्रभु के चरण, गगन पुनि चमकें तारे ||
कमल का तालाब
देवेन्द्र पाण्डेय
कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।
घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम ।
मीन चुकाती दाम, बिगाड़े काई कीचड़ ।
रहे फिसलते रोज, काईंया पापी लीचड़ ।
किन्तु विदेही पात, नहीं संलिप्त हो रहे ।
भौरे की बारात, पतंगे धैर्य खो रहे ।।
आप मुड़ कर न देखते
नीरज गोस्वामी
धीरे से अपनी कहे, नीरज रविकर-मित्र |
चींखे-चिल्लायें नहीं, खींचे रुचिकर चित्र |
खींचे रुचिकर चित्र, पलट कर ताके कोई |
हालत होय विचित्र, राम-जी सिय की सोई |
पर मैं का मद आज, कलेजा हम का चीरे |
कभी रहा था नाज, भूलता धीरे धीरे ||
हवन का ...प्रयोजन.....!!
Anupama Tripathi
anupama's sukrity.
anupama's sukrity.
वाह वाह अनुपम हवन, किन्तु प्रयोजन भूल ।
आँख धुवें से त्रस्त है, फिर भी झोंके धूल ।
फिर भी झोंके धूल , मूल में अहम् संभारे ।
सुकृति का शुभ फूल, व्यर्थ ही ॐ उचारे ।
अहम् जलाए अग्नि, तभी तो बात बनेगी ।
आत्मा की पुरजोर, ईश से सदा छनेगी ।।
Suresh Kumar
मेरी कल्पनायें
मेरी कल्पनायें
गम का सौदा कर चले, दामन में भर शूल |
दूजा भय से देखता, पर रविकर के फूल |
दूजा भय से देखता, पर रविकर के फूल |
पर रविकर के फूल, मूल में याद तुम्हारी |
इन यादों में झूल, भूलता विपदा सारी |
रविकर रखे सहेज, प्यार की अमित-निशानी |
अमिट याद का तेज, पलट कर देखो रानी ||
बढ़िया प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
आभार आपका ||
Deleteबहुत सुंदर !!
ReplyDeleteआभार आपका ||
Deletebehtarin
ReplyDeleteआभार आपका ||
Deleteआभार आपका ||
ReplyDeleteवाह खटीमा में ...
ReplyDeleteबहुत खूब