Friday, 1 June 2012

लगे गुरु को ठण्ड, अलावी बने सहारा -



क्वचिदन्यतोSपि...


चेले चैले हो रहे, ले मुगदर का रूप |
दोनों हाथों भांजते, पर सम्बन्ध अनूप | 

पर सम्बन्ध अनूप, परसु से भय ना लागे |
त्यागा जब से कूप, गोलियां भर भर दागे |

चेला यह उद्दंड, गुरू को अतिशय प्यारा |
लगे गुरु को ठण्ड, अलावी बने सहारा |




हमको भी पुस्तक मिली, जय जय मेरे गीत |
एक एक प्रस्तुति पढ़ी, जागी प्रीत-प्रतीत |


जागी प्रीत-प्रतीत, मुबारक होवे भैया |
रविकर प्रचलित रीत, भाव की लेत बलैया |


हर्षित मन-अरविन्द, पटल-मानस पर चमको |
बस्तर वाले अनिल, विषय भय भाया हमको ||






“रूप” न ऐसा हमको भाता 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



सकल जगत जल जल जला,
 बदन-जल जला जाय |

जीव जंतु जंगल जकड, 
जीवन दिया जलाय ||

10 comments:

  1. चेले चैले और मुगदर :)
    चेला यह उद्दंड गुरु को अतिशय प्यारा :)

    हाहाहा ! मज़ा आ गया !

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  2. क्या मारा है...!!

    आभार !

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  3. रोचक प्रस्तुति...

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  4. एक से बढ़ कर एक आंकलन ! बधाई

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  5. चेला-गुरु सम्बंध का,सुंदर किया बखान
    चेला-चैला शब्द ने , डाली इसमें जान
    डाली इसमें जान,समर्पण क्या ही सुंदर
    चैला भाँजे हाथ ,वही बन जाता मुगदर
    गुरु होता कुम्हार, शिष्य माटी का ढेला
    गुरु पर जान निसार,करेगा हरदम चेला.

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