क्वचिदन्यतोSपि...
चेले चैले हो रहे, ले मुगदर का रूप |
दोनों हाथों भांजते, पर सम्बन्ध अनूप |
पर सम्बन्ध अनूप, परसु से भय ना लागे |
त्यागा जब से कूप, गोलियां भर भर दागे |
चेला यह उद्दंड, गुरू को अतिशय प्यारा |
लगे गुरु को ठण्ड, अलावी बने सहारा |
हमको भी पुस्तक मिली, जय जय मेरे गीत |
एक एक प्रस्तुति पढ़ी, जागी प्रीत-प्रतीत |
जागी प्रीत-प्रतीत, मुबारक होवे भैया |
रविकर प्रचलित रीत, भाव की लेत बलैया |
हर्षित मन-अरविन्द, पटल-मानस पर चमको |
बस्तर वाले अनिल, विषय भय भाया हमको ||
“रूप” न ऐसा हमको भाता
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सकल जगत जल जल जला,
बदन-जल जला जाय |
जीव जंतु जंगल जकड,
जीवन दिया जलाय ||
चेले चैले और मुगदर :)
ReplyDeleteचेला यह उद्दंड गुरु को अतिशय प्यारा :)
हाहाहा ! मज़ा आ गया !
क्या मारा है...!!
ReplyDeleteआभार !
बेहतरीन ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति,,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
बढ़िया !
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत खूब !!
ReplyDeleteएक से बढ़ कर एक आंकलन ! बधाई
ReplyDeleteचेला-गुरु सम्बंध का,सुंदर किया बखान
ReplyDeleteचेला-चैला शब्द ने , डाली इसमें जान
डाली इसमें जान,समर्पण क्या ही सुंदर
चैला भाँजे हाथ ,वही बन जाता मुगदर
गुरु होता कुम्हार, शिष्य माटी का ढेला
गुरु पर जान निसार,करेगा हरदम चेला.
लाजवाब!
ReplyDelete