ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा
क़त्ल होने को यहाँ तैयार बैठे हैं |
इश्क में हम हार के मनमार बैठे हैं |
इश्क में हम हार के मनमार बैठे हैं |
मासूम कातिल आज क्या खूब ऐंठे हैं -
खुद गले पर फेरते तलवार बैठे हैं ||
कवि पूरे पागल हुवे, यही सही एहसास ।
घूरे के दिन बहुरते, रविकर के भी काश ।
रविकर के भी काश, हमें भी कहीं छपाओ ।
बिगड़े अब ''ईमान'', चलो अब "तो आ जाओ"।
बन जाता कवि भूत, जहाँ घर खाली घूरे ।
करके कर्म अभूत, करें कविवर दिन पूरे ।।
(परिवार गाँव गया हुआ है )
फलों की बहार |
लू का प्रहार -
हारेगा बार बार |
खाइए मौसमी फल-
मजेदार रसदार ||
बढ़िया सन्देश-
गुरुवर आभार ||
दर्शन-प्राशन
"मौसम के सारे फल खाना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
स्वास्थ्य संस्कार |फलों की बहार |
लू का प्रहार -
हारेगा बार बार |
खाइए मौसमी फल-
मजेदार रसदार ||
बढ़िया सन्देश-
गुरुवर आभार ||
सुदृश्य
प्रतुल वशिष्ठदर्शन-प्राशन
पलक लपक मन मथ परख, झपक करत रति कैद ।
नयन शयन कर न सकत, चतुर बुलावें बैद ।।
कमजोर नज़र
Maheshwari kaneri
अभिव्यंजना
अभिव्यंजना
मस्त मस्त दो पंक्तियाँ, भरे अनोखे भाव ।
दीदी बहुत बधाइयां, गूढ़ दृष्टि पा जाव ।।
ब्लॉग-जगत में रविकर ने, किये हैं ऐसे काज |
ReplyDeleteमठाधीश भी काँपते,नहीं सुरक्षित ताज|
नहीं सुरक्षित ताज,लगे छुटभैये डरने|
पुरस्कार सब आज,उसी पर लगे बरसने|
कह'चंचल कविराय',पुरनिया हैं आफत में |
हम देते आशीष ,चमकिये ब्लॉग-जगत में ||
:):):)
DeletePRANAM
जन सन्देश पर छपे कविवर जी के लिए रविकर जी की पंक्तियां पढ़कर मन प्रफुल्लित भया :)
Deleteबहुत सुंदर बेहतरीन प्रस्तुति ,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
वाह...!
ReplyDeleteटिप्पणियों से प्रविष्टी।
व्यष्टि में समष्टि!
रविकर के भी काश, हमें भी कहीं छपाओ ।
ReplyDeleteबिगड़े अब ''ईमान'', चलो अब "तो आ जाओ"।
दिखती नहीं 'छपास' कहीं भी, रविकर जी के पास
इन रोगों से तो ग्रस्त तो होतें हैं कुछ ख़ास .
रविकर जब ठक के बजाता है
ReplyDeleteतबले की आवाज सारंगी में बनाता है
गधे की पोस्ट को आदमी की जगह दिलाता है
आभारी हूँ ।