Wednesday, 13 June 2012

बन जाता कवि भूत, जहाँ घर खाली घूरे -

  ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा


क़त्ल होने को यहाँ तैयार बैठे हैं |
इश्क में हम हार के मनमार बैठे हैं |

मासूम कातिल आज क्या खूब ऐंठे हैं -
खुद गले पर फेरते तलवार बैठे हैं ||


ल्यो आखिर हम भी घोषित रूप से कवि ...!
आज के 'जनसंदेश' में देखें !


कवि पूरे पागल हुवे, यही सही एहसास ।
घूरे के दिन बहुरते, रविकर के भी काश ।

रविकर के भी काश, हमें भी कहीं छपाओ ।
  बिगड़े अब ''ईमान'',  चलो अब "तो आ जाओ"।

बन जाता कवि भूत, जहाँ घर खाली घूरे ।
करके कर्म अभूत, करें कविवर दिन पूरे ।।
(परिवार गाँव गया हुआ है )

"मौसम के सारे फल खाना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

स्वास्थ्य संस्कार |
फलों की बहार |
लू का प्रहार -
हारेगा बार बार |
खाइए मौसमी फल-
मजेदार रसदार ||
बढ़िया सन्देश-
गुरुवर आभार || 


सुदृश्य

प्रतुल वशिष्ठ
दर्शन-प्राशन

पलक लपक मन मथ परख, झपक करत रति कैद ।
नयन शयन कर न सकत, चतुर बुलावें बैद ।।

कमजोर नज़र

Maheshwari kaneri
अभिव्यंजना  

मस्त मस्त दो पंक्तियाँ, भरे अनोखे भाव ।
दीदी बहुत बधाइयां, गूढ़ दृष्टि पा जाव ।।

7 comments:

  1. ब्लॉग-जगत में रविकर ने, किये हैं ऐसे काज |
    मठाधीश भी काँपते,नहीं सुरक्षित ताज|
    नहीं सुरक्षित ताज,लगे छुटभैये डरने|
    पुरस्कार सब आज,उसी पर लगे बरसने|
    कह'चंचल कविराय',पुरनिया हैं आफत में |
    हम देते आशीष ,चमकिये ब्लॉग-जगत में ||

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    1. जन सन्देश पर छपे कविवर जी के लिए रविकर जी की पंक्तियां पढ़कर मन प्रफुल्लित भया :)

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  2. बहुत सुंदर बेहतरीन प्रस्तुति ,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,

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  3. वाह...!
    टिप्पणियों से प्रविष्टी।
    व्यष्टि में समष्टि!

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  4. रविकर के भी काश, हमें भी कहीं छपाओ ।
    बिगड़े अब ''ईमान'', चलो अब "तो आ जाओ"।
    दिखती नहीं 'छपास' कहीं भी, रविकर जी के पास
    इन रोगों से तो ग्रस्त तो होतें हैं कुछ ख़ास .

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  5. रविकर जब ठक के बजाता है
    तबले की आवाज सारंगी में बनाता है
    गधे की पोस्ट को आदमी की जगह दिलाता है

    आभारी हूँ ।

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