नेकी कर दरिया में डाल
ऋता शेखर मधु
मधुर गुंजन
मधुर गुंजन
मेहनत हुई फिजूल सब, दरिया दिया उलीच |
नेकी बही समुद्र में, तट पर ठाढ़ा नीच |
नेकी बही समुद्र में, तट पर ठाढ़ा नीच |
तट पर ठाढ़ा नीच, नीच ने थप्पड़ मारा |
रविकर आँखें मींच, बहाये अश्रु धारा |
दरिया फिर भर जाय, नहीं पर नेकी डाले |
नेकी रखके जेब, नीच को फेंके खाले ||
"आओ अपना धर्म निभाएँ" (चर्चा मंच-915)
चर्चा में कितना करें, समय गुरूजी खर्च |
पाठक-गण वाचन करें, करनी पड़े न सर्च |
पाठक-गण वाचन करें, करनी पड़े न सर्च |
करनी पड़े न सर्च, सजी उत्कृष्ट अनोखी |
खट्टी-मिट्ठी मस्त, प्रस्तुती ताज़ी चोखी |
करूँ नहीं टिप्पणी, पढ़े बिन कुछ भी पर्चा |
होगी यह तौहीन, समय जो लेती चर्चा ||
वारुणी-वर्जना
noreply@blogger.com (पुरुषोत्तम पाण्डेय)जाले
पी पी कर पछता रहे, रोज पियक्कड़ आज ।
नारी धन दौलत गई, लत पर लेकिन नाज ।
लत पर लेकिन नाज, राज की बात बताता ।
काट लीजिये नाक, खुदा फिर साफ़ दिखाता ।
रविकर संध्या होय, लगे इक सिर पर टिप्पी ।
कदम बढ़ें दो सीध, बहकते फिर से पी पी ।।
मुझे लडकी बना दे
मेरा मन
अर्जी कर मंजूर जब, लड़की दिया बनाय ।
मची हाय-तोबा गजब, मुश्किल में मर माय ।
मुश्किल में मर माय, सास ससुरा पति पीटा ।
किया एक का व्याह, कर्ज में गया घसीटा ।
बिन व्याहे दो जन्म, अगर है तेरी मर्जी ।
करे कष्ट आजन्म, सुने ना कोई अर्जी ।। किसी की आहटों का अहसास
Deepti Sharma
स्पर्श
खुद को रखे समेट, दर्द न जाने मेरे |
हैं गंवार ठाठ-ठेठ, छुपे जा कहीं सवेरे |
दीप्ति जी को दाद, समय हित चाँद भरोसा |
सुने नहीं फरियाद, तभी तो रविकर कोसा ||
स्वागत करते महोदया, एक ब्रेक के बाद |
डेढ़ मास में जो शुरू, फिर से ये संवाद |
फिर से ये संवाद, कई नव भाव समेटे |
लगा रखी उम्मीद, शीघ्र हम सब को भेंटे |
मिले लेख सुविचार, धीर न लम्बी धरते |
करिए कुछ तो पोस्ट, आपका स्वागत करते ||
संजय की हो दूर दृष्ट, या नियोग संतान |
या नियोग संतान, कल्पना बनें हकीकत |
होते अनुसंधान, नहीं वैज्ञानिक दिक्कत |
धर्म दिखाए राह, उसी युगकाल स्वर्ण की |
खोजो चाभी जाग, नींद से कुम्भकर्ण की ||
आँखें रहे तरेर, बड़े बब्बर है सारे |
दिखलाते सौ रंग, जिन्दगी सही सँवारे |
बाधाएं भी ढेर, प्यार से करो बंदगी |
गुड़ बारिश शतरंज, प्रेम ही रचे जिंदगी |
और चाँद भी डूबता, निकले घंटा लेट |
एक मास में तीन दिन, खुद को रखे समेट |
एक मास में तीन दिन, खुद को रखे समेट |
खुद को रखे समेट, दर्द न जाने मेरे |
हैं गंवार ठाठ-ठेठ, छुपे जा कहीं सवेरे |
दीप्ति जी को दाद, समय हित चाँद भरोसा |
सुने नहीं फरियाद, तभी तो रविकर कोसा ||
लम्बी अनुपस्थिति के बाद वापसी
अजित गुप्ता का कोनास्वागत करते महोदया, एक ब्रेक के बाद |
डेढ़ मास में जो शुरू, फिर से ये संवाद |
फिर से ये संवाद, कई नव भाव समेटे |
लगा रखी उम्मीद, शीघ्र हम सब को भेंटे |
मिले लेख सुविचार, धीर न लम्बी धरते |
करिए कुछ तो पोस्ट, आपका स्वागत करते ||
विज्ञान कथाएं सामाजिक और वैज्ञानिक युक्तियों के कोष हैं- डॉ0 अरविंद मिश्र
कुम्भकर्ण की नींद हो, या पुष्पक सा यान |संजय की हो दूर दृष्ट, या नियोग संतान |
या नियोग संतान, कल्पना बनें हकीकत |
होते अनुसंधान, नहीं वैज्ञानिक दिक्कत |
धर्म दिखाए राह, उसी युगकाल स्वर्ण की |
खोजो चाभी जाग, नींद से कुम्भकर्ण की ||
गुड़ सी जिंदगी !!!
my dreams 'n' expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन....
रचे जिंदगी पर खरे, सुन्दर सुन्दर शेर |
अनुकृति हर इक शेर है, आँखें रहे तरेर |
अनुकृति हर इक शेर है, आँखें रहे तरेर |
आँखें रहे तरेर, बड़े बब्बर है सारे |
दिखलाते सौ रंग, जिन्दगी सही सँवारे |
बाधाएं भी ढेर, प्यार से करो बंदगी |
गुड़ बारिश शतरंज, प्रेम ही रचे जिंदगी |
बहुत सुन्दर टिप्पणी दिनेश जी.
ReplyDeleteसादर
चर्चा हो छोटी तो पर्चा पढ़ सकते हो |
ReplyDeleteनहीं किया ऐसा तो लल्लू बन सकते हो ||
चर्चा में कितना करें, समय गुरूजी खर्च |
ReplyDeleteपाठक-गण वाचन करें, करनी पड़े न सर्च |
बढ़िया भावपूर्ण रचना प्रस्तुति...
काव्य मय सुन्दर टिप्पणी,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,फुहार....: न जाने क्यों,
जवाब नही आप के अंदाज़ का..
ReplyDeleteकरूँ नहीं टिप्पणी, पढ़े बिन कुछ भी पर्चा |
ReplyDeleteहोगी यह तौहीन, समय जो लेती चर्चा ||
पी पी कर पछता रहे, रोज पियक्कड़ आज ।
नारी धन दौलत गई, लत पर लेकिन नाज ।
बहुत शानदार प्रस्तुति .
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteकल 20/06/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
बहुत मुश्किल सा दौर है ये
वाह जी वाह ... आपके निराले अंदाज़ की दिल्लगी कमाल है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर सुंदर नये नये रंगों के साथ ।
ReplyDeleteयह तो अच्छी काव्यमयी चर्चा है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका टिप्पणी करने के अंदाज इतना उम्दा है कि स्वयं में ही एक नयी रचना सृजित होजाती है.
ReplyDeleteइसे इसी तरह अनवरत चलने दें. बहुत सुंदर. आभार.